
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दायर करने वाले वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर सीबीआई को इस मामले में नियमित केस दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की है. इस पर कोर्ट जल्द सुनवाई करेगा.
सीबीआई ने मानी थी केस बनने की बात
चतुर्वेदी ने अपनी अर्जी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में सीबीआई को उनके द्वारा लगाए आरोपों की जांच करने को कहा था. सीबीआई ने प्राथमिक जांच में मामला बनने की बात भी कही थी, फिर भी नियमित
केस दर्ज नहीं किया.
यादव परिवार के खिलाफ पूरा मामला
ये पूरा मामला एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कन्नौज से लोकसभा सांसद डिंपल यादव और मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ है. विश्वनाथ चतुर्वेदी ने अपनी याचिका में कहा था कि इन सभी की संपत्ति इनकी आय से ज्यादा है.
जज के रिटायर होने की वजह से नहीं आया था आदेश
चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस तरफ भी खींचा है कि अदालत ने 2009 में सीबीआई के बार-बार बदलते स्टैंड पर एक आदेश सुरक्षित रखा था जो अब तक नहीं आया है. चतुर्वेदी ने अपनी इस नई अर्जी में कहा है
की चार अलग-अलग अर्जियों पर 10 फरवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन फैसला अब तक नहीं सुनाया गया है. उस समय इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच में शमिल एक जज
सीरिएक जोसफ बिना फैसला सुनाए रिटायर हो गए थे.
100 गुना ज्यादा हुई थी मुलायम की संपत्ति
2005 में विश्वनाथ चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिका दायर कर कहा था कि 1977 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में पहली बार मंत्री बने थे, तब से लेकर 2005 तक उनकी संपत्ति करीब 100 गुना
ज्यादा बढ़ गई थी. ऐसे में इस बात की जांच होनी चाहिए कि आखिर इतनी संपत्ति उन्होंने और उनके परिवार ने कैसे अर्जित कर ली.
मुलायम ने दायर की थी पुनर्विचार याचिका
सुप्रीम कोर्ट के 1 मार्च 2007 को आए सीबीआई जांच के फैसले के खिलाफ मुलायम सिंह और उनके परिवार ने पुनर्विचार याचिका डाली थी. साल 2012 में आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर तो रोक लगाने
से इनकार कर दिया था, लेकिन मुलायम सिंह की बहू डिंपल यादव को जांच के दायरे से ये कहते हुए बाहर कर दिया था कि वो उस समय सार्वजानिक पद पर नहीं थीं.