
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य द्वारा छोड़ी गई फूलपुर लोकसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव बीजेपी के लिए नाक का सवाल बना हुआ है. उपचुनाव का नतीजा 2019 के लिए माहौल बनाने का काम करेगा, इसीलिए सपा और बीजेपी दोनों दलों ने जातीय समीकरण साधते हुए यहां से पटेल उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस ने यहां ब्राह्मण कार्ड खेला है, वहीं बसपा ने उपचुनाव न लड़ने का फैसला किया है.
बता दें कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी वोटर सबसे अधिक हैं और इनमें भी पटेल मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. ऐसे में राजनीतिक दलों ने पटेल वोटरों को अपने खेमे में लाने की कवायद की है. सपा और बीजेपी दोनों ने पटेल उम्मीदवार पर दांव खेलकर सियासी जंग को दिलचस्प बना दिया है.
बीजेपी के लिए फूलपुर सीट हर हाल में जीतने की चुनौती है, वहीं विपक्ष की चुनौती उपचुनाव के जरिए दोबारा से अपनी खोई जमीन वापस पाने की है. इस सीट से सपा ने नागेंद्र पटेल को मैदान में उतारा है तो बीजेपी ने डेढ़ सौ किमी दूर से लाकर कौशलेंद्र पटेल पर दांव खेला है. इसके चलते यहां मुकाबला क्षेत्रीय बनाम बाहरी का भी बन रहा है.
कांग्रेस-सपा की घेराबंदी से बीजेपी मुश्किल में
कांग्रेस ने भी फूलपुर के जातीय गणित को देखते हुए ब्राह्मण चेहरे मनीष मिश्रा पर दांवा लगाया है. उनके पिता जेएन मिश्रा आईएएस थे जिन्होंने वीआरएस लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव की जिम्मेदारी संभाली थी. सपा को यहां पटेल, मुस्लिम, यादव और पासी मतदाताओं पर भरोसा है.
मोदी लहर में बीजेपी का खुला खाता
बीजेपी पहली बार मोदी लहर में 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर अपनी जीत का परचम लहराने में कामयाब रही थी. केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी उम्मीदवार के तौर 2014 में फूलपुर सीट से सांसद बने, लेकिन मार्च 2017 में यूपी के डिप्टी सीएम बनने का बाद उनके फूलपुर से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव हो रहा है.
जीत बरकरार रखना आसान नहीं
यूपी में बीजेपी की लहर 2014 के लोकसभा या 2017 के विधानसभा चुनाव जैसी नहीं दिख रही. बीजेपी का जो माहौल था, वह काफी बदल चुका है. योगी के एक साल के कार्यकाल को देखा जाए तो उनके पास गिनाने को कुछ खास उपलब्धियां भी नहीं हैं. कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरा उतारकर बीजेपी का समीकरण और खराब कर दिया है.
फूलपुर में जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है. इस संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब सवा दो लाख है. मुस्लिम, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी इसी के आसपास है. लगभग डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. फूलपुर की सोरांव, फाफामऊ, फूलपुर और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट ओबीसी बाहुल्य हैं. इनमें कुर्मी, कुशवाहा और यादव वोटर सबसे अधिक हैं.
एसपी का मजबूत गढ़
दरअसल फूलपुर सीट पर एसपी का भी मजबूत जनाधार है. यही वजह है कि 1996 से लेकर 2004 तक समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार यहां से लगातार जीतता रहा है. फूलपुर लोकसभा सीट से कुर्मी समाज के कई सांसद बने हैं. प्रो. बी.डी. सिंह, रामपूजन पटेल (तीन बार), जंग बहादुर पटेल (दो बार) एसपी के टिकट पर सांसद रह चुके हैं. इसके बाद एसपी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद को फूलपुर से प्रत्याशी बनाया जो विजयी रहे, लेकिन इसके बाद 2009 के चुनाव में बीएसपी के टिकट पर पंडित कपिल मुनि करवरिया चुने गए और 2014 में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य.