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5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी के लिए भारत को इन 5 चुनौतियों से पाना होगा पार

2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर (320 लाख करोड़ रुपये) की अर्थव्यवस्था बनने की राह में कई चुनौतियां भी हैं, जिनसे मोदी सरकार को निपटना होगा.

5 लाख करोड़ की इकोनॉमी बनने की राह में कई चुनौतियां हैं (FILE PHOTO) 5 लाख करोड़ की इकोनॉमी बनने की राह में कई चुनौतियां हैं (FILE PHOTO)
विकास जोशी
  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 12:57 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्व‍िट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थ‍िक मंच के वार्ष‍िक सम्मेलन को जब संबोधित किया, तो उन्होंने नये भारत का खाका भी दुनिया के सामने रखा. उन्होंने इस दौरान भारत में निवेश की संभावनाओं का जिक्र करते हुए देश के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी पेश किया.

उन्होंने कहा कि भारत साल 2025 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहा है. लेक‍िन 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर (करीब 320 लाख करोड़ रुपये) की अर्थव्यवस्था बनने की राह में कई चुनौतियां भी हैं, जिनसे मोदी सरकार को निपटना होगा.

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भारतीय इकोनॉमी को 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, तो उसे सिर्फ दुनिया के अन्य देशों से निवेश लाने पर नहीं, बल्क‍ि घर में भी हालत सुधारने होंगे. भारत में कई चुनौतियां खड़ी हैं, जिनसे पार पाए बिना 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनने की राह आसान नहीं होगी.

खेती-किसानी की लचर हालत

कृष‍ि देश की जीडीपी में 17 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी रखती है. यह क्षेत्र 50 फीसदी वर्कफोर्स को रोजगार देता है, लेक‍िन इस सेक्टर के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं. मानसून की मार, कम एमएसपी, कर्ज का बोझ और बेहतर बाजार तंत्र न होने की वजह से यह क्षेत्र काफी बुरे दौर से गुजर रहा है.

वर्ष 2016-17 में कृष‍ि निर्यात गिरा है. 2013-14 के 43.23 अरब डॉलर के निर्यात के मुकाबले यह गिरकर 33.87 अरब डॉलर पर आ गया है. दूसरी तरफ कृषि आयात लगातार बढ़ता जा रहा है. 2013-14 में यह 15.03 अरब डॉलर था, जो वित्त वर्ष 2016-17 में 25.09 अरब डॉलर हो गया है.

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ऐसे में अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को 2025 में 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनना है, तो उसे सबसे ज्यादा ध्यान कृष‍ि पर देना होगा. कृष‍ि और किसानों की हालत सुधारने पर जोर देना होगा. ऐसी उम्मीद है कि इस साल के बजट से ही इस चुनौती से निपटने की शुरुआत हो सकती है.

रोजगार पैदा करने की चुनौती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही ये कहें कि देश में रोजगार बढ़े हैं, लेक‍िन नये रोजगार पैदा करने की चुनौती लगातार बनी हुई है. अंतरराष्ट्रीय श्रम‍िक संगठन (ILO) की हालिया रिपोर्ट ने इस चुनौती की तरफ इशारा किया है. संस्था ने 'वर्ल्ड एंप्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक-ट्रेंड्स 2018' में कहा है कि 2018 और 2019 में बेरोजगारी दर 3.5 फीसदी रहेगी. यही स्थ‍िति 2017 और 2016 में भी थी. आईएलओ ने 2016 और 2017 के लिए बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया था.

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी मंगलवार को एक कार्यक्रम में कहा कि आर्थिक वृद्धि के लिए रोजगार पैदा करना एक अहमह पहलू है. उन्होंने जीडीपी अनुपता सुधारने पर भी फोकस करने की बात कही. उन्होंने कहा कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा 35 वर्ष  से कम उम्र का है.

इसलिए यह वक्त की जरूरत है कि उनके लिए नौकरी के पर्याप्त मौके पैदा किए जाएं. ILO की रिपोर्ट और उपराष्ट्रपति की ये हिदायत साफ इशारा करती है कि देश में रोजगार सृजन अच्छी स्थ‍िति में नहीं है. ऐसे में नये मौके पैदा करने की जरूरत है, तब ही अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है.  

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श‍िक्षा में सुधार

तीसरी बड़ी चुनौती सरकार के सामने श‍िक्षा में सुधार की है. हाल ही में आई एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) में श‍िक्षा में सुधार की जरूरत बताई गई है. खासकर ग्रामीण भागों में. रिपोर्ट के मुताबिक 8 साल तक स्कूल की श‍िक्षा लेने के बाद 14 से 18 साल के 43 फीसदी बच्चों को गुणा भाग करने में दिक्कत पेश आती है.  ये फैक्ट बताता है कि हमारी श‍िक्षा व्यवस्था कितनी सुस्त है और इसमें सुधार की सख्त जरूरत है.

सिर्फ ASER ही नहीं, विश्व बैंक ने अपनी 'वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट' में भी इस बात का जिक्र किया था. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले ऐसे बच्चे, जो पढ़ना नहीं जानते, उनकी संख्या युगांडा और घाना के मुकाबले भारत में ज्यादा है. दिसंबर, 2017 में आई रिसर्च ऑन इंप्रूविंग सिस्टम ऑफ एजुकेशन (RISE) में भी यही बात कही गई है.  ऐसे में सरकार का फोकस शिक्षा में सुधार पर भी होना चाहिए.

ग्रामीण भाग को मजबूत करने की जरूरत

दावोस में अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने जलवायु परिवर्तन को लेकर काफी चिंता जताई. भारत में जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार ग्रामीण भाग पर पड़ रही  है. इसकी वजह से फसल बरबादी जैसी घटनाएं काफी बड़े स्तर पर बढ़ी हैं.  प्रथम एनजीओ की तरफ से जारी की गई एनुअल स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, 2017 में बताया गया है कि ग्रामीण युवा किसानी नहीं करना चाहते, बल्क‍ि वह इंजीनियर और अन्य क्षेत्रों में जाने की ख्वाहिश रखते हैं.

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ग्रामीण युवाओं का किसानी और खेती करने से मन हटना लाजमी है. इसके लिए कृष‍ि की खराब हालत जिम्मेदार है. हालांकि इंजीनयिर और डॉक्टर बनने के सपनों के लिए जरूरी है कि उनकी श‍िक्षा व्यवस्था उस ढंग से हो सके. दूसरी तरफ, भले ही सभी गांवों में सड़कें पहुंचने लगी हों, लेक‍िन आज भी कई गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था का खस्ता हाल है. ग्रामीण भागों में बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भी ध्यान देना होगा, तब ही हम 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की तरफ बढ़ सकते हैं.

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