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न कोई दोस्त, न कोई दुश्मनः मोदी-नीतीश में ये हैं दिलचस्प समानताएं

नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है. साथ ही उन्होंने बिहार को विकास की नई दिशा में आगे बढ़ाया. बीमारू राज्य कहे जाने बिहार को नीतीश कुमार ने न सिर्फ बिजली दी, बल्कि सुदूर गांवों तक सड़कें भी पहुंचाईं. दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी को गुजरात में विकास के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.

पीएम मोदी और नीतीश कुमार पीएम मोदी और नीतीश कुमार
जावेद अख़्तर
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  • 27 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

बुधवार शाम जैसे ही नीतीश कुमार बिहार के राज्यपाल को त्यागपत्र सौंपकर राजभवन से बाहर आकर मीडिया से मुखातिब हुए, इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी. पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए शुभकामना दी. कुछ देर बाद नीतीश कुमार ने भी ट्वीट कर उनका शुक्रिया अदा किया. मोदी के इस ट्वीट के साथ ही लगभग ये तय हो गया था कि बीजेपी नीतश कुमार को समर्थन देकर बिहार में सरकार बनवाएगी. यानी नीतीश की एक बार 'घर वापसी' हो गई.

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इससे एक बार फिर ये साबित हो गया कि राजनीति में न कोई दोस्त होता है, न कोई दुश्मन. वैसे पीएम मोदी और नीतीश कुमार की बात की जाए तो दोनों के बीच काफी समानताएं भी हैं.

 

1. विकास का एजेंडा

नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है. साथ ही उन्होंने बिहार को विकास की नई दिशा में आगे बढ़ाया. बीमारू राज्य कहे जाने बिहार को नीतीश कुमार ने सिर्फ बिजली दी, बल्कि सुदूर गांवों तक सड़कें भी पहुंचाईं.

दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी को गुजरात में विकास से सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात ने विकास की नए मुकाम हासिल किए. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी सिर्फ और सिर्फ विकास पर बल देते हुए नजर आते हैं.

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2. सीएम की कुर्सी संभालने के बाद हारे नहीं

नीतीश मार्च 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, इस टर्म में वो सिर्फ 7 दिनों तक सीएम रहे. मगर, इसके बाद 2005 में नीतीश कुमार ने सीएम की कुर्सी संभालकर अपना कार्यकाल पूरा किया. 2010 में वो फिर एक बार बिहार की सत्ता पर काबिज हुए. दूसरा कार्यकाल पूरा होने से कुछ दिन पहले नीतीश ने इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को सीएम बना दिया. मगर 9 महीने बाद एक बार फिर वो खुद वापस आ गए. 2015 में आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार की कुर्सी तक पहुंच गए.

वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2001 में पहली बार गुजरात के सीएम पद की शपथ ली. इसके बाद 2002 के चुनाव में जीत के साथ मोदी फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बने. फिर 2007 और 2012 में भी मोदी प्रचंड जीत के साथ गुजरात की सत्ता पर काबिज हुए.

 

3. पार्टी से बड़ा कद

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार भले ही खुद को पार्टी कार्यकर्ता के रूप में पेश करते हों, मगर उनका कद पार्टी से बड़ा नजर आता है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से शरद यादव के हटने के बाद नीतीश कुमार इस पद पर काबिज हुए. ये माना जाता है कि जेडीयू में फैसले लेने की सभी ताकतें नीतीश कुमार के पास है.

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वहीं दूसरी तरफ पार्टी विद ए डिफरेंस के नारे के साथ काम करने वाली बीजेपी में संगठन को सर्वोपरि माना जाता है. मगर, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के सबसे करीबी अमित शाह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. जिसके बाद कई मौकों पर पार्टी में मोदी-शाह की जोड़ी के फैसले ही अंतिम निर्णयों के रूप में सामने आए.

 

4. अचानक फैसले लेने में सक्षम

नरेंद्र मोदी ने पीएम पद पर रहते हुए अचानक 8 नवंबर, 2016 को देश में नोटबंदी का ऐलान कर दिया. इससे पहले वो अफगानिस्तान से लौटते हुए अचानक पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को जन्म दिन की बधाई देने पाकिस्तान पहुंच गए. हरियाणा के सीएम के रूप में मनोहर लाल खट्टर की नियुक्ति कर सबको चौंका दिया. राष्ट्रपित उम्मीदवार के रूप में रामनाथ कोविंद के नाम ने राजनीतिक पंडितों के कयासों धराशाई कर दिया.

वहीं नीतीश कुमार की बात की जाए तो बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया. इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में जब जेडीयू की दुर्गति हुई तब एक बार फिर नीतीश ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को कुर्सी पर बिठा दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद की पार्टी राजद, नीतीश की जदयू और कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन का ऐलान किया.

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5. छवि से समझौता नहीं

दोनों नेताओं में अपनी छवि को लेकर भी जबरदस्त चिंता है. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर कम की चर्चा हुई. वहीं नीतीश कुमार भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति को अपनाते हैं.

 

 

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