
लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह पांचवां और वर्तमान मोदी सरकार का यह अंतिम संबोधन था. देश चार साल से ज़्यादा समयावधि का उनका कार्यकाल देख चुका है और इससे पहले चार बार बतौर प्रधानमंत्री वो भारत की जनता को लाल किले के प्राचीर से संबोधित कर चुके थे.
पहले वर्ष यानी 2014 में जब अपनी पहली गैर कांग्रेस बहुमत वाली सरकार के साथ प्रधानमंत्री इस किले पर देश को आज़ादी के दिन संबोधित करने के लिए खड़े हुए थे तो उसमें एक दृष्टि थी. यह दृष्टि थी उनकी संकल्पना के भारत की और उन वादों के क्रियान्वयन की जो उन्होंने लोगों से चुनाव प्रचार के दौरान किए थे.
इस भाषण में उन्होंने एक अलग तरह से देश को आगे ले जाने के और आक्रामक तरीके से बदलाव लाने के संकेत दिए थे. बाद के भाषणों में वो विपक्ष पर प्रहार करते, अपने कामकाज को गिनाते और लोगों को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बोलते नज़र आए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अबतक के कार्यकाल में ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब वो चुनाव अभियान की मुद्रा में न नज़र आए हों. इसके पीछे वजह भी थी. देश में एक के बाद एक राज्यों के चुनाव सामने आते रहे और उनके भाषणों की शैली और विषय वस्तु उसको ध्यान में रखकर लोगों के सामने आती रही.
लेकिन लाल किले से पांचवां संबोधन प्रधानमंत्री मोदी के लिए खासा मायने रखता था. प्रधानमंत्री का इस वर्ष का संबोधन अपनी उपलब्धियों को गिनाने से लेकर नए काम और कार्यक्रमों का लेखाजोखा देने जैसा था. आरक्षण पर पारित बिल से भाषण की शुरुआत करके मोदी ने अपने पूरे संबोधन को 2013 बनाम 2018 बनाए रखा.
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उन्होंने अपने कामकाज के मंत्र गिनाए, आगे के लिए कुछ संकल्प लिए और सत्ता में बने रहते हुए कई नए कीर्तिमानों को स्थापित करने की बेचैनी और अधीरता भी जाहिर की. इस तरह वो लोगों को ये संकेत देते नज़र आए कि अगर विकास के इस सिलसिले को आगे लेकर जाना है तो आगामी चुनाव में उनकी वापसी ही एकमात्र विकल्प है.
प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि आगामी चुनावों में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़त मिलेगी इसलिए बखानों में उत्तर-पूर्व के कायाकल्प को खास महत्व मिला. साथ ही महिला सुरक्षा पर मध्य प्रदेश और राजस्थान का नाम लेने से वो नहीं चूके. दोनों ही राज्यों में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं.
रक्षात्मक मोदी
मोदी अपने भाषण में सदा से आक्रामक रहे हैं. लेकिन 2014 की तुलना में मोदी का यह भाषण रक्षात्मक ज़्यादा नज़र आया. वो विवादों से बचते रहे. ऐसे शब्दों से दूर रहे जो उन्हें या उनकी कमियों को जाहिर करते.
गोहत्या से लेकर गंगा की सफाई तक, पाकिस्तान से लेकर एनआरसी तक, दलित उत्पीड़न से लेकर मॉब लिंचिंग तक और नौकरियों के अवसर से लेकर किसानों की आत्महत्या तक मोदी देश को कुछ भी संदेश देने से बचे.
हालांकि अल्पसंख्यकों के ज़िक्र से बचते मोदी ट्रिपल तलाक पर प्रतिबद्धता दोहराते नज़र आए. किसानों के समर्थन मूल्य और दोगुनी आय की उन्होंने चर्चा की. सर्जिकल स्ट्राइक और रोज़गार के बढ़ते अवसरों का ज़िक्र किया. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा की बात भी उन्होंने जोर देकर कही.
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भले ही चीन और पाकिस्तान से लेकर पूरे दक्षिण एशिया में भारत की कमज़ोर होती स्थिति पर वो खामोश ही रहे. और तो और, जम्मू-कश्मीर में जो पीडीपी भाजपा को बार-बार यह याद दिलाती रही कि वर्तमान सरकार को फिर से अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीर विज़न पर ध्यान देना चाहिए, उस विज़न की याद भी प्रधानमंत्री को तब आई जब पार्टी ने राज्य में पीडीपी से गठबंधन तोड़ दिया.
महंगाई को लेकर मोदी जिस तरह के भाषण पहले देते रहे, कालेधन पर सरकार कितनी सफल रही और रुपये की गिरती साख पर उनके जो विचार पहले थे, उनपर अब वो क्या सोचते हैं, यह भी मोदी के भाषण में कहीं भी जाहिर नहीं हुआ.
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खाली होता शब्दकोश
प्रधानमंत्री के लगभग सभी भाषणों को सुनें तो उसमें एक तरह की पुनरावृत्ति देखने को मिलेगी. नीम कोटेड यूरिया से लेकर शौचालयों का निर्माण, भाई-भतीजावाद से मुक्ति और भ्रष्टाचार पर लगाम, कामकाज में पारदर्शिता और सैनिकों का सम्मान, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, मेक इन इंडिया, ईज़ ऑफ डुइंग बिजनेस... ऐसे कई नारे और विशेषण मोदी अपने भाषणों में दोहराते रहे हैं.
इस लिहाज से प्रधानमंत्री का यह पांचवां संबोधन एक सुरक्षित पुनरावृत्तियों का संबोधन भर बनकर रह गया.
प्रधानमंत्री की बॉडी लैंग्वेज पहले से कुछ कमज़ोर दिखी. वो शब्दों को दोहराते हुए अपने जादू को कायम रख पाने में कमज़ोर पड़ते नज़र आए. ऐसा लगा कि जैसे नए सपने दिखाने की जो कला उनके पास है, उसके लिए उनके शब्दकोश में आगे के पन्ने खाली हो गए हैं, शब्द रिक्त हो चुके हैं.
मोदी 82 मिनट बोले. लेकिन इसबार न आकर्षण दिखा और न ही उत्साह. क्योंकि आकर्षण और उत्साह के जो मापदंड उन्होंने खुद स्थापित किए हैं, उनका आज का भाषण उन्हीं मापदंडों पर पिछड़ता नज़र आ रहा था.
देखना यह है कि आज के सधे, रक्षात्मक और दोहराए जाते शब्दों वाले एक चुनाव अनुकूल भाषण के बाद जब मोदी चुनाव के मैदान में होंगे तो वहां कितनी ऊर्जा और कितने जोश के साथ वो नए जादू को कायम करने की कोशिश करेंगे.