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15वें वित्त आयोग पर हंगामा, जेटली के बाद पीएम मोदी की सफाई

प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्वीट का सहारा लेते हुए वित्त आयोग पर लग रहे आरोपों को गलत करार दिया गया है. इस ट्वीट के जरिए प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफेरेंस में कोई गड़बड़ी नहीं है और न ही इसके जरिए किसी राज्य...

पीएम ने दिलाया भरोसा, नहीं होगा किसी के साथ पक्षपात पीएम ने दिलाया भरोसा, नहीं होगा किसी के साथ पक्षपात
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 12 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST

15वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस (संदर्भ की शर्तों) को लेकर विवाद गर्माता जा रहा है. पहले वित्त मंत्री ने विवाद को बेबुनियाद बताया और अब खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्वीट का सहारा लेते हुए वित्त आयोग पर लग रहे आरोपों को गलत करार दिया गया है. इस ट्वीट के जरिए प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफेरेंस में कोई गड़बड़ी नहीं है और न ही इसके जरिए किसी राज्य विशेष अथवा क्षेत्र को केन्द्रीय राजस्व आवंटन में कोई नुकसान होगा.

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प्रधानमंत्री ने यहां तक दावा किया कि नए वित्त आयोग से कहा गया है कि उन राज्यों को राजस्व में वरीयता दी जाए, जिन्होंने बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने में सफलता पाई है. इसका सीधा फायदा तमिलनाडु जैसे राज्यों को पहुंचेगा जिसने जनसंख्या पर लगाम लगाने में अहम बढ़त हासिल की है.

वित्त आयोग यूं करता है राज्यों में राजस्व का आवंटन

केन्द्र सरकार अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा राज्यों में बांटता है, जिससे जिन राज्यों के पास न्यूनतम जीवन स्तर बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है वह केन्द्रीय राजस्व से यह काम कर सके. लिहाजा केन्द्र सरकार के राजस्व का यह बंटवारा करने के लिए केन्द्र सरकार हर 5वें वर्ष वित्त आयोग का गठन करती है. वित्त आयोग इस बंटवारे के लिए राज्यों की जरूरत का आंकलन करती है और सटीक आंकलन के लिए वह कई कसौटियों का इस्तेमाल करती है. इनमें राज्य की जनसंख्या और राज्य की कमाई दो अहम कसौटियां हैं. जहां जनसंख्या से राज्य की जरूरत निर्धारित की जाती है वहीं राज्य की जीडीपी से राज्य में गरीबी का आंकलन किया जाता है.

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इन दोनों कसौटियों के आधार पर ज्यादा गरीबी और अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को ज्यादा से ज्यादा संसाधन देने की कोशिश की जाती है जिससे वह राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं को अपने नागरियों तक पहुंचा सके.

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क्या है विवाद?

गौरतलब है कि चौदहवें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफेरेंस में जनसंख्या के आंकड़ों को इस्तेमाल करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया था. इसके बावजूद राज्यों की जरूरतों का सटीक आंकलन करने के लिए 14 आयोग ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया और उसकी तुलना 1971 की जनगणना के आंकड़ों से की. ऐसे में जो नतीजा मिला उसके आधार पर 14 आयोग ने 2011 की जनसंख्या को 10 फीसदी का वेटेज देते हुए राज्यों को केन्द्रीय राजस्व का 42 फीसदी धन आवंटित करने का काम किया. यह पूर्व में राज्यों को आवंटित सबसे अधिक राजस्व था.

अब 15वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफेरेंस में केन्द्र सरकार ने नया निर्देश दिया है कि राज्यों को राजस्व का आवंटन करने के लिए ऐसे राज्यों का भी संज्ञान लिया जाए जिन्होंने जनसंख्या पर लगाम लगाने में अच्छी पहल की है. सरकार ने ऐसे राज्यों को इस काम के लिए अधिक आवंटन का निर्देश दिया है जिससे बाकी राज्यों को भी जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

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अब 15 आयोग को दिए गए निर्देश पर आपत्ति उठाते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदमबरम ने दावा किया कि मौजूदा केन्द्र सरकार ने नए वित्त आयोग से 1971 के जनगणना आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश दिया है. इसके चलते चिदंबरम की दलील है कि दक्षिण के राज्यों को केन्द्रीय राजस्व से कम पैसा मिलेगा जबकि जनसंख्या को लगाम लगाने की दिशा में उसने लगातार अच्छा काम किया है.

हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग पर सफाई दी है कि 15वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस में नवीनतम जनसंख्या से जाहिर होती ‘जरूरतों’ तथा ‘जनसंख्या पर काबू करने की दिशा में हुई प्रगति’ के बीच ठीक-ठीक संतुलन बैठाया गया है. 15वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस में ऐसा कोई पक्षपात या निर्देश नहीं है जिसके बारे में यह कहा जा सके कि उसके जरिए जनसंख्या की बढ़वार पर काबू करने के लिहाज से बेहतर प्रगति करने वाले राज्यों के साथ भेदभाव किया गया है.

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