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नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के कर्जदार बैंक चाहते हैं कि सरकार उनकी कंपनियों का अधिग्रहण कर ले. इन कर्जदारों का मानना है कि इससे पहले कि बैंक नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की कंपनियों को दिवालिया घोषित करें, सरकार को इन कंपनियों को अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए.
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के कर्जदार बैंकों का मानना है कि पीएनबी महाघोटाले में सरकार को सत्यम कंप्यूटर की तरह कदम उठाने चाहिए. सरकार ने सत्यम कंप्यूटर को चलाने और इसकी संपत्ति को बचाने के लिए एक बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का गठन किया था.
हालांकि, कर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार इन कंपनियों के अधिग्रहण के मूड में नहीं है, क्योंकि इसके बाद इन कंपनियों की देनदारी सरकार की जिम्मेदारी बन जाएगी.
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया का विरोध कुछ बैंक ही कर रहे हैं. ये वे बैंक हैं जिन्होंने इन कंपनियों को पीएनबी के कहने पर कर्ज दिया था. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इन दोनों ग्रुप को कम से कम 34 बैंकों ने कर्ज दिया है. सबसे बड़ा कर्ज पीएनबी का है. इस बैंक ने करीब 900 करोड़ रुपये दिए हैं. गीतांजलि और नीरव मोदी की कंपनियों को करीब 8 हजार से 9 हजार करोड़ रुपये तक का कर्ज दिया गया है.
अगर नीरव मोदी की कंपनी और चोकसी की गीतांजलि ग्रुप ऑफ कंपनीज को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू होती है तो सबमिशन डेट के 270 दिनों के भीतर रेज्योलूशन प्रक्रिया पूरा करना होगा. अगर कोई रेज्योलूशन योजना सामने नहीं आती है तो कंपनियों को बंद ही करना पड़ेगा. कंपनियों को दिवालिया घोषित करने से इनके करीब 1000 कर्मचारियों पर भी असर पड़ेगा.
पीएनबी ने मेहुल चोकसी की कपंनी गीतांजलि को नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित किया है. हालांकि, दूसरे कर्जदार बैंकों ने अभी ऐसा नहीं किया है. अगर घोटाला साबित हो जाए या भुगतान में 90 दिनों से ज्यादा की देरी हो जाए तो ऐसा होता है. मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस मामले में दिए गए सभी कर्ज 31 मार्च तक एनपीए घोषित हो जाएंगे.