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चिराग पासवान: हीरो से राजनेता तक का सफर

एलजेपी के सांसद और मुखिया रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का नाम बिहार के सियासी पटल पर तेजी से उभरते राजनेताओं में शामिल है. बिहार में सियासी रूप से तेजी से अपना कद बढ़ा रहे चिराग पासवान के सफर पर आइए डालते हैं एक नजर:

एलजेपी सांसद चिराग पासवान एलजेपी सांसद चिराग पासवान
aajtak.in
  • पटना,
  • 23 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 12:43 PM IST

एलजेपी के सांसद और मुखिया रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का नाम बिहार के सियासी पटल पर तेजी से उभरते राजनेताओं में शामिल है. बहुत कम समय में चिराग पासवान ने राजनीतिक गलियारे में अपनी जगह बनाई है. एक युवा नेता के रूप में, एक संगठनकर्ता के रूप में और मौके को भांपकर तेजी से फैसले लेने की अपनी क्षमता के बल पर. बिहार में सियासी रूप से तेजी से अपना कद बढ़ा रहे चिराग पासवान के सफर पर आइए डालते हैं एक नजर:

1. चिराग पासवान की सबसे बड़ी पहचान है उनका लोक जनशक्ति पार्टी यानी LJP नेता रामविलास पासवान का पुत्र होना. लेकिन केवल इतने भर से चिराग पासवान के सियासत को आंका नहीं जा सकता. आज के वक्त में चिराग पासवान बिहार की सियासत के प्रभावशाली शख्सियतों में शामिल हैं और न केवल पार्टी बल्कि एनडीए गठबंधन में भी अच्छी-खासी सक्रियता दिखाते हैं.

2. चिराग पासवान सिनेमा की ग्लैमरस दुनिया से राजनीति में आए हैं. 31 अक्टूबर 1982 को उनका जन्म हुआ था. कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने वाले चिराग पासवान एक फैसन डिजायनर भी हैं. लेकिन उन्होंने फिल्म में अभियन की दुनिया में भी हाथ आजमाया.

3. चिराग पासवान ने पहले फिल्म की दुनिया में अपनी किस्मत आजमाई. 2011 में आई फिल्म 'मिले ना मिले हम' से चिराग पासवान ने अपने फिल्मी करियर का आगाज किया. इस फिल्म के लिए चिराग का नामांकन 'कल के सुपर स्टार' कैटेगरी में स्टारडस्ट अवार्ड के लिए हुआ. फिल्म चल नहीं पाई और चिराग पासवान के फिल्मी करियर का अंत भी इसी फिल्म के साथ हो गया.

4. फिल्मी करियर फ्लॉप हुआ तो इसके बाद चिराग पासवान ने राजनीति का रुख किया . यहां चिराग को ज्यादा मुश्किलें नहीं आईं. पिता रामविलास पासवान जमे-जमाए राजनीतिज्ञ हैं और चिराग पासवान को लांचिंग पैड आसानी से मिला गया. आज चिराग पासवान बिहार के जमुई लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं और एलजेपी के संसदीय कमेटी के प्रमुख हैं.

5. हालांकि, जब चिराग ने राजनीति में कदम रखा तो रामविलास पासवान के लिए मुश्किल दौर था. लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था और खुद रामविलास पासवान जैसे-तैसे राज्यसभा तक पहुंचने का जुगाड़ बनाए पाए थे. राज्य विधानसभा में पार्टी की सदस्य संख्या कोई प्रभाव छोड़ने लायक नहीं थी.

6. चिराग पासवान ने इस मुश्किल घड़ी में राजनीति का दामन थामा और पार्टी के लिए नए सिरे से संभावनाएं तलाशने का काम शुरू किया. लोजपा तेजी से अलोकप्रिय हो रही यूपीए के खेमे में दिख रही थी और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर रामविलास पासवान के लिए भाजपा के खेमे में जाना मुश्किल लग रहा था. खासकर जब भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ने का फैसला कर चुकी थी. चिराग पासवान ने यहीं से पार्टी की सियासत का रुख और राजनीतिक किस्मत दोनों को बदलने वाला फैसला किया.

7. जब नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के खिलाफ भाजपा से अलग हो गए तो भाजपा को बिहार में नए साथी की तलाश थी. 2014 के आम चुनावों के लिए ऐसे वक्त में एलजेपी भाजपा के साथ खड़ी हुई. माना गया कि रामविलास पासवान और एलजेपी के इस फैसले के पीछे पूरी तरह से चिराग पासवान की रणनीति काम कर रही थी.

8. चिराग पासवान के इस फैसले ने सबकुछ बदल दिया. भाजपा को पिछले साल हुए चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिला. लोक जनशक्ति पार्टी के 6 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंच गए. खुद चिराग पासवान ने जमुई में आरजेडी के सुधांशु शेखर भास्कर को 85 हजार वोटों से हराकर लोकसभा की सदस्यता हासिल की और 32 साल की उम्र में सांसद के रूप में नई पारी शुरू की.

9. सियासत और रणनीति में आए इस बदलाव ने एलजेपी को केंद्र की सरकार में सहयोगी बनाया . आज रामविलास पासवान नरेंद्र मोदी सरकार में उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री हैं.

10. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी 243 में से 40 सीटों पर लड़ रही है. एनडीए में बीजेपी के अलावा एलजेपी, HAM और रालोसपा शामिल है. एनडीए में सीट बंटवारे का मसला हो या पार्टी के टिकट बंटवारे का फैसला हर जगह चिराग पासवान प्रमुखता से नजर आए और ये राजनीति में उनके बढ़ते कद को दर्शाता है.

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