
डीटीसी की खस्ता हालत पर हुए खुलासे के बाद अब केजरीवाल सरकार कटघरे में है. डीटीसी बसों की संख्या में कमी और लगातार कम हो रहे मुसाफिरों को लेकर सरकार के दावों पर सवाल उठ रहे हैं, जिसमें सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट को दुरुस्त करने की बात करती है.
पर्यावरण के लिए काम करने वाले एनजीओ सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने एक रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से दावा किया है कि पिछले पांच साल में डीटीसी में सफर करने वाले मुसाफिरों की संख्या में भारी कमी आई है और डीटीसी की बसों में सफर करने वाले मुसाफिर 35 फीसदी तक कम हो गए हैं. यही नहीं दिल्ली को फिलहाल 11 हजार बसों की जरूरत है, उसके मुकाबले दिल्ली में बसों की संख्या पांच हजार के आसपास है, जबकि 2020 तक दिल्ली की जरूरत 15 हजार बसों तक बढ़ जाएगी.
एनजीओ के इन आंकड़ों के बाद विपक्ष ने दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ा किया है और सरकार से जवाब मांगा है कि उसके दावों के उलट इन आंकड़ों की सच्चाई क्या है. विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली सरकार से सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की डीटीसी के संबंध में जारी की गई रिपोर्ट पर श्वेतपत्र जारी करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में डीटीसी के कुप्रबन्धन को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं. सरकार ने इस पर चुप्पी साधी हुई है. सरकार को इसमें लगाए गए आरोपों का जवाब देना होगा और बताना होगा कि राजधानी की सार्वजनिक बस सेवा की इतनी खराब हालत क्यों हुई और सरकार इसको दुरूस्त करने में क्या कदम उठाने जा रही है?
विजेंद्र गुप्ता ने रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लिया. विपक्ष के नेता ने कहा कि केजरीवाल सरकार अपने पौने तीन वर्ष के कार्यकाल में दिल्ली के निवासियों को डीटीसी के माध्यम से भरोसेमंद और सुदृढ़ यातायात व्यवस्था उपलब्ध कराने में बुरी तरह असफल सिद्ध हुई है. 2011-12 के बाद अब तक कोई बस नहीं खरीदी गई. ईपीसीए के मुताबिक अगर यही हाल रहा तो वर्ष 2025 तक डीटीसी खाली हो जाएगी.
विजेंद्र गुप्ता ने याद दिलाया कि आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कम से कम 5 हजार डीटीसी की नई बसें खरीदने का वादा किया था, लेकिन अब तक एक भी बस नहीं खरीदी है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित ईपीसीए की डांट के बाद सरकार सो कर जागी और 2000 नई बसें खरीदने की घोषणा कर डाली. इनमें से 1 हजार बसों के लिए 30 नवंबर तक टेंडर आमंत्रित किए जाने थे, लेकिन आज तक टेंडर भी जारी नहीं हो पाए. विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि ये चिंता की बात है कि हर रोज 700 बसें डिपों में बेकार खड़ी रहती हैं, क्योंकि उनकी मरम्मत व रख-रखाव की आवश्यकता होती है. किसी भी शहर के लिए इतनी बड़ी संख्या में बसों का डिपो में खड़ा रहना बताता है कि वहां की सरकार सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के प्रति कितनी गंभीर है.