
बंगलुरु में नेशनल हेराल्ड के संस्मरणीय संस्करण के लोकार्पण के साथ ही नेशनल हेराल्ड के पुन: प्रकाशन की प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है...उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इसका लोकार्पण किया. इस मौक़े पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के दूसरे बड़े चेहरे भी मौजूद थे. राहुल गांधी ने संस्मरण संस्करण के लिए खास इंटरव्यू भी दिया है जिसमें मोदी सरकार पर निशाना साधा है.
नेशनल हेराल्ड का इतिहास
लखनऊ से 9 सितंबर, 1938 को जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्रता सेनानियों ने नेशनल हेराल्ड पत्रिका की शुरुआत की थी. इसका इस्तेमाल आज़ादी की लड़ाई में किया गया. करीब 70 साल की यात्रा के बाद 2008 में वित्तीय वजहों से पत्रिका को अपना
प्रकाशन बंद करना पड़ा था. 9 सितंबर, 1938 को पत्रिका के शुरुआती दिनों में जवाहरलाल नेहरु ही संपादक थे. प्रधानमंत्री बनने तक जवाहरलाल नेहरू ही हेराल्ड बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन रहे. ख़ुद जवाहरलाल नेहरू पत्रिका के अंतर्राष्ट्रीय संवाददाता की
भूमिका में भी रह चुके हैं. एजेएल यानि असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड कंपनी के तहत नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन किया जाता रहा है और 1968 में दिल्ली से संस्करण की शुरुआत से पहले नेशनल हेराल्ड सिर्फ लखनऊ से प्रकाशित होता था. अंग्रेज़ी में नेशनल
हेराल्ड के अलावा हिंदी में नवजीवन और उर्दू में क़ौमी आवाज के नाम से नेशनल हेराल्ड का संस्करण प्रकाशित होता था.
तीन बार बंद हो चुका है नेशनल हेराल्ड
अपने 79 साल के इतिहास में नेशनल हेराल्ड कई बार मुश्किल दौर से गुज़रा है. अब तक नेशनल हेराल्ड ने अपना प्रकाशन तीन बार बंद किया है. अगस्त, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय अखबारों पर दमनकारी नीति अपनाई
जिसका खामियाजा नेशनल हेराल्ड को भी भुगतना पड़ा. 1942 से लेकर 1945 तक नेशनल हेराल्ड को अपना प्रकाशन बंद करना पड़ा. 1945 में पत्रिका ने फिर से अपना प्रकाशन शुरू किया और 1946 से 1950 तक फिरोज गांधी ने पत्रिका के प्रबंध निदेशक
रहे और इस दौरान पत्रिका की वित्तीय स्थिति भी सुधरी. 1970 के दशक में आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की पराजय के बाद नेशनल हेराल्ड दो साल के लिए बंद रहा.
हालांकि 1986 में भी स्थिति बंद होने की आई, लेकिन राजीव गांधी के हस्तक्षेप के बाद पत्रिका का प्रकाशन होता रहा. साल 2008 में वित्तीय वजहों से एक बार फिर नेशनल हेराल्ड को अपना प्रकाशन बंद करना पड़ा.
कांग्रेस और गांधी परिवार से जुड़ा रहा भविष्य
नेशनल हेराल्ड का जुड़ाव कांग्रेस और गांधी परिवार से बताने की ज़रूरत नहीं. ऐसे में कांग्रेस के बुरे दौर में नेशनल हेराल्ड भी मुश्किल में रहा और अच्छे दिनों में अख़बार भी ठीकठाक चलता रहा. लेकिन 2008 में सत्ता में होने के बावजूद अख़बार को अपना
प्रकाशन बंद करना पड़ा और 2014 में जबकि कांग्रेस सत्ता से बाहर और अपने सबसे बुरे दौर में है तब नेशनल हेराल्ड के भविष्य को एक बार फिर संवारने की कोशिश की जा रही है...
नेशनल हेराल्ड केस और विवाद
नेशनल हेराल्ड को लेकर बीजेपी नेता और अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट में एक केस दर्ज किया. स्वामी ने एजेएल से जुड़े कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और बाकी दूसरे लोगों पर केस दर्ज किया है. आरोप है कि कांगेस पार्टी ने 90 करोड़
का ब्याज रहित लोन एजेएल कंपनी को दिया जिसका भुगतान या तो किया नहीं गया या फिर नक़दी के तौर पर किया गया जो कि इनकम टैक्स कानून 1961 का उल्लंघन है. इसके अलावा आरोप है कि 2010 में यंग इंडियन नाम की कंपनी बनाकर एजेएल
की संपत्ति को यंग इंडियन कंपनी के नाम कर दिया. यंग इंडियन कंपनी में राहुल गांधी और सोनिया गांधी निदेशक हैं. कहा जा रहा है कि, इन्हीं सब बातों से निपटने के लिए आनन-फानन में दोबारा से प्रकाशन की तैयारी शुरू की गई, जिससे गांधी परिवार
पर प्रॉपर्टी हड़पने का आरोप गलत साबित किया जा सके.
नेशनल हेराल्ड का भविष्य
नेशनल हेराल्ड के पुन: प्रकाशन के साथ 9 साल बाद पत्रिका की शुरुआत होगी. नेशनल हेराल्ड ग्रुप का संपादक वरिष्ठ पत्रकार नीलाभ मिश्रा को बनाया गया है. अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन साप्ताहिक तौर पर जल्दी ही होगा. अभी ये वेब पर बतौर ई
पेपर आ रहा है, जबकि क़ौमी आवाज की भी शुरुआत जल्द होनेवाली है. नेशनल हेराल्ड का भविष्य कुछ हद तक आने वाले महीनों और वर्षों में कोर्ट के फ़ैसले पर भी निर्भर करेगा. इस अखबार के ज़रिए कांग्रेस अपनी विचारधारा के मुताबिक अपनी बातें
प्रोफेशनल तरीके से जनता के बीच रखेगी. विभिन्न्न क्षेत्रों के लोगों के आर्टिकल होंगे. साथ ही न्यूज़ के आइटम इस ढंग से होंगे, जो बतौर खबर जनता पर असर छोड़ सकें. मसलन, हाल में एक आर्टिकल में वीरेंद्र सहवाग की पाकिस्तान के खिलाड़ियों पर
इस्तेमाल की गई भाषा पर सवाल उठाया गया, ये कहा गया कि, इससे ना सहवाग का फायदा है और ना देश का. पूरी कोशिश रहेगी कि, विचारधारा की लड़ाई में आरएसएस से प्रोफेशनल तरीके से टकराया जा सके. हालांकि, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल
वोरा का कहना है कि, पार्टी का इससे सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं है, संपादक ही संपादकीय तय करेंगे.