
राजस्थान को पहली बार दो महिला काजी नसीब हुई है. इससे हकीकत में या पर्दों पर काजी के रूप में हमेशा देखी गई छवि बदली है. अब महिला काजी निकाह, तलाक और मेहर पर फैसले दे सकेंगी. लगभग 40 साल की दो महिलाएं जहां आरा और अफरोज बेगम ने दो साल की दीनी तालीम हासिल कर बीते शुक्रवार को 'काजियत' का सर्टिफिकेट हासिल कर लिया है. अब उन दोनों के नाम के पहले काजी और बाद में बेगम कहकर पुकारा जाएगा. दोनों ने दारूल उलूम-ए-निस्वान से यह तालीम हासिल किया है.
निकाह, तलाक और मेहर पर खास ध्यान
इस उपलब्धि के बाद जहां आरा ने कहा कि काजी का दर्जा पाना फख्र की बात है. मैंने कुरान, हदीश और भारतीय संविधान के दायरे में रहते हुए महिला हकों की बुनियादी तालीम हासिल की है. कुरान में भी औरतों को यह सब हक दिए गए हैं. इम्तिहान में जहां आरा को 69 फीसदी अंक मिले हैं. उन्होंने कहा कि काजियत की पदवी महज निकाह पढ़वाने के लिए ही नहीं है.
इससे आगे बढ़कर यह काफी जहीन काम है. जहां आरा ने बताया कि कुरान की आयतों में साफ जिक्र है कि काजी हमेश सच बोलता है और मुसलमानों के हकों की मजहबी और इंसानी हकों की हिफाजत पर जोर देता है. इसके मुताबिक ही हम खास तौर पर निकाह, तलाक और मेहर के मामलों में महिलाओं को बराबर हक दिए जाने पर फोकस करेंगे.
विरोध में उतरे उलेमा, मुफ्ती और काजी
प्रदेश के चीफ काजी के साथ उलेमा और मुफ्ती इस बात के खिलाफ खड़े हो गए हैं. बीते दिनों लखनऊ में एक महिला काजी से निकाह पढ़ाए जाने पर बड़ा हंगामा हुआ था. वहां सामुदायिक एकता बढ़ाने के लिए शिया महिला काजी ने सुन्नी जोड़े को निकाह पढ़ाया था. इस निकाह पर भी उलेमा, मुफ्ती और दूसरे काजी हत्थे से उखड़ गए थे. शिया मौलवियों ने मामूली तौर पर लेकिन कट्टरपंथी सुन्नी नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया था. सुन्नियों के मुताबिक ऐसा किया जाना इस्लामी शरीयत के खिलाफ है और वह इसे नहीं चलने देंगे.