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कांग्रेस नेता की किताब से खुलासा, राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि प्रणब मुखर्जी बनें प्रधानमंत्री

वीपी सिंह सरकार के पतन के बाद साल 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन चाहते थे कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें लेकिन राजीव गांधी कुछ और ही सोच रहे थे. यह दावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के वफादार रहे माखनलाल फोतेदार की किताब ‘द चिनार लीव्ज’ में किया गया है.

ब्रजेश मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2015,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

वीपी सिंह सरकार के पतन के बाद साल 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन चाहते थे कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें लेकिन राजीव गांधी कुछ और ही सोच रहे थे. यह दावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के वफादार रहे माखनलाल फोतेदार की किताब ‘द चिनार लीव्ज’ में किया गया है.

किताब में फोतेदार ने लिखा है कि 1990 में जब वीपी सिंह के इस्तीफे के संबंध में राजनीतिक स्थिति पर विचार-विमर्श करने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति वेंकटरमन से मुलाकात की तो राष्ट्रपति ने जोर देते हुए उनसे कहा था कि राजीव को मुखर्जी का समर्थन करना चाहिए.

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राजीव गांधी थे सबसे बड़े दल के नेता
फोतेदार ने लिखा है ‘मैंने राष्ट्रपति वेंकटरमन से मुलाकात की और राजनीतिक स्थिति पर उनके साथ चर्चा की. मैंने उन्हें बताया कि वर्तमान हालात में केवल कांग्रेस पार्टी ही समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चल सकती है और एक मजबूत व स्थिर सरकार दे सकती है.’ उन्होंने आगे लिखा है ‘मैंने उनसे आग्रह किया कि वह अगली सरकार का नेतृत्व करने के लिए राजीव को आमंत्रित करें क्योंकि राजीव लोकसभा में अकेले सबसे बड़े दल के नेता थे. इस पर राष्ट्रपति ने मुझे जोर देते हुए कहा कि मुझे राजीव गांधी को यह बताना चाहिए कि अगर वह प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का समर्थन करते हैं तो वह (राष्ट्रपति) उसी शाम उन्हें पद की शपथ दिलाएंगे.’

जल्द आने वाली है किताब
हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित यह किताब जल्द ही बाजार में आने वाली है. किताब में बताया गया है कि जब तक राजीव गांधी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का विचार इंदिरा गांधी के दिमाग में नहीं आया था तब तक वह सोचती थीं कि मुखर्जी, पीवी नरसिंह राव और वेंकटरमन उनके बाद कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभाल सकते हैं.

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इंदिरा गांधी के पूर्व सहायक फोतेदार ने किताब में बताया है कि प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा पालने वाले माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1999 में एक वोट से वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को समर्थन देने के बारे में मुलायम सिंह यादव की राय बदलने के लिए किस तरह अमर सिंह का इस्तेमाल किया था.

सोनिया के इस काम से कई कांग्रेसी थे खफा
वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सोनिया की ओर से मनमोहन सिंह का नाम लिए जाने के बारे में फोतेदार ने किताब में लिखा है ‘पार्टी में कई लोगों को जब पता चला कि सोनिया जी की पहली पसंद डॉ. सिंह हैं तो कुछ लोगों की त्यौरियां तन गईं और प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने वाले माधव राव सिंधिया ने कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को समर्थन देने के बारे में मुलायम सिंह यादव की सोच बदलने के लिए अपने मित्र अमर सिंह का इस्तेमाल किया.’

उन्होंने लिखा है ‘सोनिया जी तब चुनावी राजनीति में नहीं थीं. उन्होंने राष्ट्रपति से मुलाकात कर दावा किया कि उनकी पार्टी के पास 272 लोकसभा सदस्यों का समर्थन है. राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात के ठीक पहले एक दिलचस्प वाकया हुआ. सोनिया जी जो मूल पत्र राष्ट्रपति को सौंपना चाहती थीं उसमें संकेत दिया गया था कि डॉ. मनमोहन सिंह पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. हालांकि मैंने उन्हें सिंह का नाम हटाने की सलाह दी और गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के वास्ते पार्टी को बुलाए जाने पर जोर देने को कहा. इस तर्क को सोनिया जी ने सराहा और वह किया जिसकी जरूरत थी.’

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मनमोहन सिंह को PM बनाने के पीछे यह थी सोच
प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए सिख कांग्रेसी मनमोहन सिंह के बारे में फोतेदार ने कहा कि इस पसंद से सोनिया गांधी की ‘चतुर राजनतिक सोच’ का पता चला क्योंकि सिंह का कोई राजनीतिक आधार नहीं था और वह उनके नेतृत्व के लिए कभी खतरा नहीं बन सकते थे. साथ ही वह सिख समुदाय से संबद्ध थे जो ऑपरेशन ब्लूस्टार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के कारण गांधी परिवार से अत्यधिक नाराज था.

उन्होंने कहा ‘यह अपने बच्चों की सुरक्षा की खातिर शांति बनाने के लिए सोनिया जी का तरीका था.’ इंदिरा गांधी के पूर्व राजनीतिक सचिव फोतेदार केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. वह कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के वरिष्ठ सदस्य हैं.

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