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इन 5 कारणों से राजनाथ सिंह नहीं चाहते यूपी का सीएम बनना

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे 11 मार्च को आए और 15 मार्च तक मुख्यमंत्री की दौड़ में केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह सबसे आगे रहे. जब राजनाथ सिंह से पूछा गया कि क्या वह उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं तो उनका दो टूक कहना है- सब बकवास की बात हैं. अब राजनाथ सिंह की इस प्रतिक्रिया का मतलब निकाला लिया जाए तो दो बातें साफ है, पहला, वह मुख्यमंत्री की दौड़ में कभी थे ही नहीं और दूसरा यदि उनका नाम इस दौड़ में शामिल था तो वह खुद इस पद को संभालना नहीं चाहते.

राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 7:32 AM IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे 11 मार्च को आए और 15 मार्च तक मुख्यमंत्री की दौड़ में केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह सबसे आगे रहे. जब राजनाथ सिंह से पूछा गया कि क्या वह उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं तो उनका दो टूक कहना है- सब बकवास की बात हैं. अब राजनाथ सिंह की इस प्रतिक्रिया का मतलब निकाला लिया जाए तो दो बातें साफ है, पहला, वह मुख्यमंत्री की दौड़ में कभी थे ही नहीं और दूसरा यदि उनका नाम इस दौड़ में शामिल था तो वह खुद इस पद को संभालना नहीं चाहते.

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दूसरी संभावना को सच मान लिया जाए तो सवाल उठता है कि आखिर क्यों राज्य के मुख्यमंत्री पद को पहले संभाल चुके राजनाथ सिंह अब केन्द्र में गृह मंत्री के पद को छोड़कर दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते?

1. 15 साल पुरानी राजनीति
राजनाथ सिंह 2000 से 2002 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इसके बाद 2003 से 2004 तक वह अटल बिहारी वाजपाई की केन्द्र सरकार में कृषि मंत्री बने. फिर 2004 से 2014 के बीच बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में अहम किरदार निभाते हुए राजनाथ सिंह एक बार फिर 2014 के चुनावों से पहले बीजेपी अध्यक्ष रहे लेकिन आम चुनावों में जीत का सेहरा नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के सिर बंधा और उन्हें केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री पद के बाद सबसे अहम ओहदा गृह मंत्री का दिया गया. अब गृह मंत्री का पद छोड़कर वापस किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनना राजनाथ सिंह के लिए 15 साल पुरानी राजनीति में कदम रखने जैसा होगा.

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2. पहले मुख्यमंत्री ज्यादा ताकतवर था
उत्तर प्रदेश में बीते दो दशकों से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारें बनी हैं. यह दौर ऐसा था जब प्रदेश का मुख्यमंत्री देश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्रियों में शुमार था. इसी ताकत के चलते समय-समय पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से मुलायम सिंह और मायावती ने केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी को अपनी ताकत का परिचय दिया है. लेकिन अब केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और राज्य में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. जाहिर है केन्द्र और राज्य में एक दल होने के कारण अब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पार्टी के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति में वह रुतबा नहीं रखेगा जो केन्द्र सरकार के गृह मंत्री का होता है.

3. केन्द्र की राजनीति में डिमोशन
राजनाथ सिंह ने 1984 में यूपी बीजेपी के यूथ विंग के अध्यक्ष पद के साथ राजनीतिक सफर की शुरुआत करते हुए 2000 में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को पा लिया. इसके बाद 2003 में वह पार्टी की केन्द्र सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल हुए. इसके बाद राजनाथ सिंह ने 2006 से 2009 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. खास बात यह रही कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले 2013 में राजनीथ सिंह एक बार फिर पार्टी के अध्यक्ष बने और पार्टी ने उनकी अगुवाई में कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका और नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी. राष्ट्रीय राजनीति में यह मुकाम हासिल कर लेने के बाद अब किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनना राजनाथ सिंह के लिए किसी डिमोशन से कम नहीं.

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4. बतौर मुख्यमंत्री सारा श्रेय मोदी को मिलेगा
उत्तर प्रदेश की मौजूदा राजनीति बेहद अहम है. 2014 में राज्य ने 80 में से 71 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को चुना था. इसे मोदी लहर का सबसे साफ संकेत माना गया. एक बार फिर 2017 में 403 सदस्यों की विधानसभा में बीजेपी को 312 सीट मिली है. यह जीत भी मोदी लहर के नाम की जा चुकी है. लिहाजा, प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के सामने बेहद कड़ी चुनौती रहेगी. क्योंकि एक बात साफ है कि बतौर मुख्यमंत्री प्रदेश में प्रत्येक विफलता का जिम्मेदार वह खुद होगा और वहीं प्रत्येक सफलता के श्रेय सीधे प्रधानमंत्री के नाम दर्ज होता रहेगा.

5. कांटो भरा ताज है यूपी की कुर्सी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी जितनी अहम है उतनी ही मुश्किलों से भरी हुई भी है. राज्य में बीते दो दशकों से क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व रहा है. बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों की सरकारों के साथ-साथ कांग्रेस की सरकारों को राज्य की खराब स्थिति के लिए जिम्मेदार बताया है. प्रदेश में लचर कानून-व्यवस्था और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को नया आयाम देने की चुनौती नए मुख्यमंत्री पर रहेगी. इसके साथ ही लंबे अंतराल के बाद सूबे में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. जिसके चलते राज्य में सांप्रदायिक स्थिति हमेशा नाजुक रहने का अनुमान है. वहीं प्रदेश में बीजेपी और आरएसएस की पूरी कोशिश रहेगी कि हिंदू राजनीति करते हुए वह 2019 के आम चुनावों में पार्टी को बड़ा फायदा दिलाए. लेकिन इन कोशिशों के चलते नए मुख्यमंत्री के लिए यह कुर्सी कांटो से भरी होगी.

 

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