
राम मंदिर मामले पर कोर्ट से बाहर सेटलमेंट के लिए सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तमाम पक्षों को अपनी राय रखनी है. इस बीच कोर्ट ने मामले पर तुरंत सुनवाई से इनकार किया है. इससे पहले की सुनवाई में देश की शीर्ष अदालत ने इसे धर्म और आस्था से जुड़ा मामला बताते हुए तमाम पक्षकारों से आपसी बातचीत के जरिए हल खोजने को कहा था. यहां तक कि कोर्ट ने जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता की पेशकश भी की थी. कोर्ट ने एक हफ्ते का समय दिया था. अब अदालत सुलह की कोशिशों के लिए और समय देने के पक्ष में है. अदालत की इस पहल से पूरे देश को दशकों से चले आ रहे इस संवेदनशील मामले के जल्द समाधान की उम्मीद जगी है. लेकिन कितनी गुंजाइश है इस मामले में कोर्ट से बाहर सुलह की:
क्या कहते हैं पक्षकार?
अयोध्या मामले का एक सबसे बड़ा पहलू है कि इस मामले को लेकर देश में जितना भी विवाद उठा हो लेकिन अयोध्या में कभी दंगे नहीं हुए. इस मामले के तमाम पक्षकार कहते हैं कि इसका शांतिपूर्वक समाधान संभव है बस बाहर के लोग माहौल खराब न करें. हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञानदास ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर मामले को उलझा दिया है. सबकी सहमति से और न्यायलय की मध्यस्थता में इस मामले का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए. दोनों पक्ष इसपर सहमत हो सकते हैं. वहीं दूसरे पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि परिसर में ही राम मंदिर और मस्जिद का निर्माण हो सकता है. हाईकोर्ट ने इसी आधार पर फैसला सुनाया था. इस मामले में नए राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिशें नहीं होनी चाहिए. बातचीत से मामले का हल निकल सकता है.
किन 4 शर्तों पर अटक रही बात?
अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद आजतक ने बातचीत की पहल की. आज तक ने दोनों पक्षकारों से इस मामले पर बात की और मुद्दे के समाधान को लेकर उनकी राय को सामने लाने की कोशिश की. हिंदू और मुसलमान दोनों ही पक्षों ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार दोनों पक्षों से अलग-अलग बात करे. पक्षकारों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कई बाते रखीं जिनमें चार शर्तें सामने आईं-
शर्त 1- उसी 2.7 एकड़ जमीन पर बने राम मंदिर-मस्जिद.
शर्त 2- शर्त- पहल आगे बढ़ाने के लिए केंद्र नुमाइंदे भेजे.
शर्त 3- सुब्रमण्यम स्वामी और हाजी महबूब जैसे विवाद बढ़ाने वाले लोग दूर रहें.
शर्त 4- अयोध्या में दोनों पक्षकार एक साथ बैठें.
किसे रोड़ा मान रहे हैं पक्षकार
सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की अहम सुनवाई से ठीक पहले इस मामले में मुख्य पक्षकार स्वर्गीय हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाये जाने पर सख्त विरोध किया है. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखकर शिकायत की है. शिकायत में कहा गया है कि सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले में पक्षकार नहीं हैं, उनका इस केस से कोई लेना देना नही हैं, उन्होंने इस मसले में पार्टी बनने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी, जिस पर कई पक्षकारों ने एतराज जाहिर किया था. इकबाल अंसारी और वक्फ बोर्ड के मुताबिक अदालत ने अभी तक स्वामी को पक्ष बनाने के बारे में कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन इसके बावजूद 21 मार्च को स्वामी ने, मामले के असल पक्षकारों को सूचित किए बिना ही जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में ये मामला उठा दिया.
सुलह की 9 कोशिशें हो चुकी हैं विफल
ऐसा नहीं है कि इस मामले में सुलह की ये पहली कोशिश है. इससे पहले 9 बार सुलह की कोशिश हो चुकी है और प्रधानंमत्री के स्तर से भी कोशिशें हो चुकी हैं.
-बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर सुलह की पहली कोशिश 1859 में हुई थी. हिन्दू और मुसलमान के बीच दंगे के बाद अंग्रेज अफसरों ने दोनों पक्षों के जिम्मेदार लोगों को बैठाकर मामले को खत्म कराने की कोशिश की और बाड़ लगाकर विवादित जगह को दो भागों में बांट दिया. लेकिन इससे हल नहीं निकला. -1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद नमाज पढ़ा जाना बंद हो गया.
-1992 में बाबरी विध्वंस के बाद देशभर में दंगे हुए. पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री के काल में एक कमीशन गठित किया गया, दोनों पक्षों से बातचीत की कोशिशें हुईं लेकिन बातचीत नतीजे तक ना पहुंच पाई.
-अटल बिहारी वाजपेयी ने भी की सुलह की कोशिश अपने कार्यकाल के दौरान की. वाजपेयी ने इसको लेकर दोनों पक्षों से बात भी की लेकिन वो दोनों पक्षों को समझौतों के लिए एक मंच पर नहीं ला पाए.
-31 मई 2016 को भी विवाद को लेकर हाशिम अंसारी और महंत नरेंद्र गिरी के बीच बैठक तय हुई थी लेकिन हाशिम अंसारी का इससे पहले की इंतकाल हो गया और ये बैठक फिर कभी ना हुई.
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं.
68 साल का सफरनामा
1528: दावा किया जाता है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ.
1949: बाबरी मस्जिद में गुप्त रूप से भगवान राम की मूर्ति रख दी गई. दावा किया गया कि भगवान राम का यही जन्म हुआ था. इसके बाद ये दावे सामने आए कि मंदिर हटाकर बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी.
1984: मंदिर निर्माण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया.
1986: इस विवादित स्थल को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया. इसी साल 1986 में ही बाबरी मस्जिद कमेटी का गठन किया गया.
1990: लाल कृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की. साल 1991 में रथयात्रा का पायदा बीजेपी को हुआ और वो यूपी की सत्ता में आ गई. मंदिर बनाने के लिए देशभर से ईंटें भेजी गईं.
1992: 6 दिसंबर के दिन हजारों की संख्या में सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए.
1992: न्यायूमूर्ति लिब्रहान की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया गया. 1993: इस आयोग ने जांच शुरू की.
2002: विवादित स्थल पर सैकड़ों श्रद्धालुओं का जमावड़ा शुरू हुआ. हाईकोर्ट के एएसआई को इस बात की जांच करने के लिए कहा गया कि 1528 में पहले वहां मस्जिद थी या नहीं.
2003: एएसआई ने कहा कि मंदिर अवशेष के सबूत हैं.
2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी.
2010: हाईकोर्ट ने इन विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया.
2011: सुप्रीम कोर्ट नें हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया.
क्या है आगे की राह?
सुप्रीम कोर्ट ने दोनो पक्षों को आपसी सुलह से बीच का रास्ता निकालने का मौका दिया और साथ ही कहा है कि अगर बात नहीं बनती तो अदालत अपना फैसला सुनाएगी. अब बातचीत को आगे बढ़ाने का दारोमदार केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार पर है. बीजेपी ने बातचीत से मामले का हल निकलने की उम्मीद जताई है साथ ही कहा है कि गतिरोध को दूर कर राम मंदिर बनेगा. कांग्रेस ने इसे समाधान का बड़ा मौका बताया है. लेकिन बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी के इस बयान पर बवाल मचा कि मस्जिद सरयू पार बनाया जाए. साथ ही कि अगर मंदिर मुद्दे पर सहमति नहीं बनती है तो 2018 में जब राज्यसभा में भी बीजेपी का बहुमत होगा तो कानून बनाया जाएगा. देखना होगा कि सियासत के बीच राम मंदिर का मुद्दा किस ओर बढ़ता है वो भी तब जब देश की शीर्ष अदालत सुलह के पक्ष में है.