
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को सत्ता में आए हुए एक महीना पूरा हो चुका है. सरकार का दावा है उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों और उसकी स्थितियों में सुधार आ जाएगा. लेकिन उससे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की मौजूदा स्थिति कैसी है ?
सूबे के सरकारी स्कूलों का जायजा लेने के लिए आज तक की टीम कानपुर और उत्राव जिले में रिएलिटी चेक करने पहुंची. उम्मीदों से भी परे इन सरकारी स्कूलों में वह तस्वीर देखने को मिली, जो उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों को लेकर किए जाने वाले तमाम बड़े-बड़े दावों की पोल खोलती है.
पहला स्कूल
कानपुर-उन्नाव मार्ग पर कांशीरामनगर का प्राथमिक विद्यालय पहुंचें. स्कूल के प्रांगण में बने सरकारी नल के नीचे छोटे-छोटे बच्चे मिड डे मील खाने के बाद अपनी थाली खुद ही धोते हुए दिखाई दिए. गौरतलब है कि हमें देख स्कूल के प्रधानाचार्य आनंद कुमार भी पहुंचे, लेकिन बच्चों द्वारा बर्तन धोने जाने पर जब हमने उनसे सवाल पूछा तो गोलमोल जवाब देने लगे. प्रधानाचार्य का कहना है कि बच्चे मिड डे मील खाने के बाद सिर्फ अपनी जूठन थालियां साफ करते हैं और उसके बाद रसोईया बाकी बर्तन धोता है.
स्कूल में बदहाल शिक्षा व्यवस्था
प्रधानाचार्य महोदय स्कूल में स्टाफ की कमी का रोने लगे.इतना ही नहीं स्कूलों के अंदर तस्वीरें देखकर शिक्षा व्यवस्था की ओर सरकार के दावों से आपको चिढ़ होने लगेगी. स्कूल में 4 कमरे हैं लेकिन इन कमरों में छोटे छोटे बच्चों को बैठने के लिए ना तो बेंच हैं और ना ही पढ़ने के लिए मेज. छोटे-छोटे बच्चे चटाइयों पर बैठकर पढ़ते दिखाई दिए.
दूसरा स्कूल
कानपुर के कांशीराम नगर में सरकारी स्कूल का रिएलिटी टेस्ट करने के बाद हम आगे पहुंचे उन्नाव जिले के गरेरेपुरवा गांव में. शहरों की स्थिति के मुकाबले गांव में सरकारी स्कूलों की स्थिति ज्यादा बदतर है. यहां की तस्वीर भी कानपुर से ज्यादा अलग नहीं है. यह सभी बच्चे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठकर पढ़ते नजर आए.
स्कूल में बदहाल शिक्षा व्यवस्था
इस सरकारी स्कूल में कुल मिलाकर 3 अध्यापक हैं जिसमें एक प्रधानाचार्य एक सहायक अध्यापक और 1 शिक्षा मित्र हैं. लेकिन जब हम पहुंचे तो शिक्षामित्र स्कूल में मौजूद नहीं थीं. खुद प्रधानाचार्य महोदय ने बताया कि शिक्षा मित्र अपने पारिवारिक कारणों से छुट्टी पर हैं और बच्चों का सारा दारोमदार इन 2 शिक्षकों पर है.
तीसरा स्कूल
गरेरेपुरवा के बाद स्कूलों के रिएलिटी टेस्ट के लिए हम उन्नाव जिले के कान्हवापुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में पहुंचे. स्कूल में पढ़ने वाले तीनों अध्यापक यहां मौजूद थे. लेकिन स्कूल के कमरों की तस्वीर निराशाजनक थी. यहां भी पहले जैसे हालत मिले. बुनियादी जरूरतों की कमी पर जब हमने सवाल पूछा तो प्रधानाचार्य समेत बाकी दोनों महिला शिक्षिकाएं प्रशासन और सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों की ओर ध्यान न देने की तस्वीरें सामने रखने लगीं.
स्कूल में बदहाल शिक्षा व्यवस्था
शिक्षिका महोदय ने बताया उन्होंने बच्चों को जानवरों के फलों के सब्जियों के नाम लिखना सिखाया है लेकिन जब हमने बच्चों से संतरे का अंग्रेजी में नाम पूछा तो चौथी कक्षा के बच्चे जवाब नहीं दे पाए बच्चों को केले का अंग्रेजी में नाम भी नहीं पता था. एक बच्चे ने यह भी कहा कि उसे फलों के नाम अंग्रेजी में नहीं पता है. नाक को अंग्रेजी में नोज कहते हैं यह कुछ बच्चों को पता था लेकिन नोज के अंग्रेजी में अक्षरों के बारे में बच्चों को कुछ भी नहीं पता.
चौथा स्कूल
हम और आगे बढ़े और उन्नाव जिले के ही मुरलीपुर गांव में पहुंचे. स्कूल में पहुंचते ही पता चला कि प्रधानाध्यापक महोदय छुट्टी पर हैं. स्कूल में शिक्षा मित्र और सहायक शिक्षक आएं तो हैं लेकिन प्रधानाचार्य महोदय मौजूद नहीं थे. पिछले बाकी के स्कूलों की तरह यहां पर भी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के लिए बैठने के लिए ना तो बेंच है ना ही मेज. जमीन पर बिछी गंदी चटाई और उत्तरप्रदेश की अगली पीढ़ी अपना भविष्य मिट्टी में सुनहरा करने की कोशिश कर रही है.
स्कूल में बदहाल शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा का स्तर जानने के लिए हम कक्षा आठ में पहुंचे, छात्रों से हमने किसी भी पांच फलों के नाम अंग्रेजी में पूछे. बड़ी मेहनत करने के बाद भी पहली छात्रा जवाब नहीं दे पाई. हमने दूसरे से पूछा तो जवाब संतरा और केला के बाद पपीते पर गलती के साथ खत्म हो गया. इस क्लास में हमने आठवीं कक्षा की एक और छात्रा से किताब का अंग्रेजी में मतलब और उसके अंग्रेजी में अक्षर पूछें लेकिन जवाब नहीं मिला. आठवीं कक्षा की एक लड़की से हमने 17, 16 और 14 का पहाड़ा भी जानना चाहा लेकिन जवाब नहीं मिला. आठवीं कक्षा के लड़कियों के बाद अब लड़कों की बारी थी. अंग्रेजी में पांच फलों के नाम भी सही से नहीं निकले. हालांकि क्लास में एक बच्चे को शरीर के 5 अंगों के नाम अक्षर के साथ अंग्रेजी में बखूबी पता थे. छठी कक्षा के छात्राओं को हमने उन्हीं की अंग्रेजी की किताब का पहला पन्ना पढ़ने को कहा. आपको जानकार ताज्जुब होगा की पूरी क्लास में सिर्फ दो बच्चों ने हाथ उठाया जो किताब पढ़ने में खुदको समर्थ मान रहे थे. और इस तरह की पढ़ाई के तरीकों पर जब हमने शिक्षिका महोदय से सवाल किया तो उनका सवाल भी बेहद गोलमोल और काम चलाऊ था.
कुल मिलाकर कानपुर और उन्नाव में सरकारी स्कूल रिएलिटी टेस्ट में फेल हो गए. उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ना तो बुनियादी सुविधाएं हैं और ना ही बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा के इंतजाम।.ऐसे में उत्तर प्रदेश की अगली पीढ़ी फिलहाल अंधकार में नजर आ रही है.