
उत्तराखंड में अब धर्म बदलना आसान नहीं होगा. उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा सदन में धर्म स्वतंत्रता विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया है. इसमें गैर कानूनी ढंग से धर्म बदलने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी. उत्तराखंड में विश्व हिंदू परिषद बीजेपी सरकार के गठन से ही धर्मांतरण पर कानून बनाने के लिए दबाव बनाए हुई थी. शनिवार को गैरसैंण विधानसभा सदन में सरकार ने ये विधेयक पारित किया.
इस कानून के तहत अगर कोई बिना अनुमति के धर्मांतरण करता है या फिर ऐसी साजिश में शामिल पाया जाता है तो उसे अधिकतम पांच साल जेल की सजा काटनी होगी. वहीं अवयस्क महिला या फिर एससी-एसटी जाति के धर्म परिवर्तन गैर कानूनी ढंग से कराने पर सजा का प्रावधान सात वर्ष तक किया गया है. सरकार ने ऐसे धर्मांतरण को मान्यता ना देने प्रावधान कर दिया है.
क्या होगी कार्रवाई?
-धर्म परिवर्तन शून्य घोषित होगा.
-न्यूनतम तीन माह और अधिकतम पांच साल तक की जेल.
-जुर्माने का भी प्रावधान, संबंधित संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन निरस्त होगा.
किन पर होगा लागू?
प्रलोभन देकर (नकद, रोजगार, निशुल्क शिक्षा, बेहतर जीवन, दैवीय कृपा), धमकाकर (कोई व्यक्ति किसी को डरा-धमका कर धर्मांतरण को विवश करता है) या षड्यंत्र रच कर (धर्मांतरण कराने के लिए किसी की सहायता करना, मनोवैज्ञानिक दबाव या फिर साजिश रचना. इसमें पारिवारिक सदस्य भी होंगे तो वे भी दायरे में आएंगे) धर्म परिवर्तन कराने की स्थिति में ये कानून लागू होगा.
1954 में पहली बार संसद में धर्म परिवर्तन का मुद्दा उठा था
संसद में पहली बार इस मुद्दे को वर्ष 1954 में उठाया गया था. उस समय इस बिल का नाम भारतीय धर्मांतरण (नियम और पंजीकरण) विधेयक था. इस बिल को वर्ष 1960 में फिर से संसद में उठाया गया. अल्पसख्ंयकों के विरोध की वजह से इस बिल का समर्थन नहीं मिल सका और यह बिल पास नहीं हो पाया.
ओडिशा और मध्य प्रदेश में बनाए गए नियम
वर्ष 1968 में ओडिशा और मध्य प्रदेश में इससे जुड़े नियम बनाए गए. इन नियमों को मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अभियान और ओडिशा फ्रीडम ऑफ रिलीजियन एक्ट के नाम से जाना गया. इन कानूनों के तहत किसी को भी जबरन उसके धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता था सिर्फ उनकी आस्था के बाद ही यह कदम वैध माना गया. इसके बाद तमिलनाडु और गुजरात में भी इन्हीं नियमों को लाया गया. इन राज्यों में आईपीसी के तहत दंडात्मक करार दिया गया, जिसके तहत जबरन धर्मांतरण में तीन साल की जेल और 20 हजार रुपये का जुर्माना भी तय किया गया.
क्या कहती हैं लॉ कमीशन की सिफारिशें
भारतीय लॉ कमीशन को इस बात की जिम्मेदारी दी गई थी कि वह उन मुद्दों पर नजर रखे, जिसके तहत जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. इस कमीशन की अहम सिफारिशें इस तरह से हैं-
· धर्म परिवर्तन के एक माह के अंदर धर्म परिवर्तन वाले व्यक्ति को अपने इलाके से संबंधित उस अधिकारी को एक उद्घोषणा पत्र भेजना होगा, जिसके पास शादियों का रजिस्ट्रेशन करने की जिम्मेदारी है.
· उस अधिकारी को इसकी एक कॉपी अपने ऑफिस के नोटिस बोर्ड पर लगानी होगी.
· जो भी उद्घोषणा की जाएगी, उसकी कॉपी में धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति की जन्मतिथि, उसका स्थाई पता और उसका वर्तमान पता, पिता या पति का नाम, वह वास्तविक तौर पर जिस धर्म का अनुयायी है, उसकी जानकारी होगी.
· साथ ही उस धर्म की भी जानकारी, जिसे उसने धर्मांतरण के बाद स्वीकार किया है, जगह का नाम जहां पर पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया और किस तरह की प्रक्रिया के तहत उसका धर्मांतरण किया गया.
· 21 दिनों के अंदर उसे इस उद्घोषणा पत्र को भेजना होगा.
· धर्म परिर्वतन कराने वाले व्यक्ति को इस दौरान पंजीकरण अधिकारी के सामने पेश होना होगा.
· यहां उसे उद्घोषणा पत्र में दी गई जानकारियों की पुष्टि करनी होगी.
· अधिकारी को उन तथ्यों को रिकॉर्ड करना होगा और इस मकसद के लिए एक रजिस्टर भी बनाना होगा.
· अगर उसे किसी भी तरह का कोई विरोधाभास नजर आता है, तो वह सिर्फ व्यक्ति का नाम और उसके विरोध की अहम बातें और विरोध किस तरह का यह रिकॉर्ड करेगा.
· उद्घोषणा की प्रमाणित कॉपी को अनुरोध पर उस व्यक्ति को मुहैया कराना होगा, जिसने यह जानकारियां दी हैं या फिर उसकी ओर से पेश होने वाले कानूनी सलाहकार को इन जानकारियों की कॉपी देनी होगी.
· लॉ कमीशन ने इस बात को साफ किया कि राज्यों में जहां कानूनी आधार पर धर्मांतरण होते हैं, वहां इन सिफारिशों की कोई जरूरत नहीं होगी.