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रियो ओलंपिक: मेडल से चूकने के बाद फूट-फूटकर रोईं दीपा करमाकर, कोच बोले- यह खेल ताउम्र याद रहेगा

सपनों और उम्मीदों के टूटने के दर्द से ज्यादातर भारतीय एथलीटों को दो चार होना पड़ रहा है, दिन रात मेहनत करने के बाद अपने लक्ष्य को हासिल ना करना पाने का एहसास किसी को भी तोड़ सकता है

दीपा करमाकर दीपा करमाकर
अमित रायकवार/BHASHA
  • रियो डी जेनेरियो,
  • 15 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

इस मुस्कान के पीछे गहरा दर्द छिपा था, शिकस्त के बावजूद उसके होंठों पर मुस्कान तैर रही थी. ये अहसास कराते हुए कि बेशक जिम्नास्टिक हॉल में वो पदक से चूक गई थीं. लेकिन उनके लिए खेल हार और जीत से आगे की बात है. खेल उनकी जिंदगी का वो हिस्सा है, जिसे वो हार और जीत की लकीरों को मिटाकर पूरी शिद्दत से जीती हैं.

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रियो ओलंपिक में ढलती शाम में जिम्नास्टिक हॉल भारत की एकमात्र जिम्नास्ट दीपा करमाकर फाइनल में अपना अहम मुकाबला हारने के बाद बार बार कुछ ऐसा ही अहसास रहा होगा, दीपा अपने कोच के साथ फाइनल इवेंट खत्म होने के बाद मुस्कुराते हुए जिम्नास्टिक हॉल से जरूर निकलीं, लेकिन उम्मीदें टूटने का दर्द उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. खेलगांव पहुंचते ही वो फूट-फूट कर रोने लगी.

फूट-फूट कर रोने लगी दीपा
सपनों और उम्मीदों के टूटने के दर्द से ज्यादातर भारतीय एथलीटों को दो चार होना पड़ रहा है, दिन रात मेहनत करने के बाद अपने लक्ष्य को हासिल ना करना पाने का एहसास किसी को भी तोड़ सकता है. दीपा के कोच ने बिश्वेश्वर नंदी कहा कि 'खेलगांव आने के बाद दीपा को संभालना मुश्किल हो गया था. मामूली अंतर से कांस्य से चूकना हमारे लिए जिंदगी के सबसे दुखदायी समय रहा.’दीपा और उसके कोच पूरी शाम खेलगांव में एक दूसरे को ढांढस बंधाते रहे, कोच ने कहा ,‘हर कोई खुश था लेकिन हमारी तो दुनिया ही मानो उजड़ गई और वह भी इतने मामूली अंतर से यह सबसे खराब स्वतंत्रता दिवस रहा मैं धरती पर सबसे दुखी कोच हूं यह खेद ताउम्र रहेगा'

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मामूली अंतर से चूका मेडल
महिलाओं के वोल्ट फाइनल में दीपा का स्कोर 15.266 था और वो स्विटजरलैंड की जिउलिया स्टेनग्रबर से पीछे रही जिसने 15 . 216 के साथ कांस्य पदक जीता.

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