
उत्तराखंड के पारंपरिक लिपुलेख सीमा तक की सड़क बन जाने के बाद तीर्थयात्री सड़क मार्ग से कैलाश मानसरोवर के दर्शन करके एक-दो दिन में ही भारत लौट सकेंगे. उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के रास्ते कैलाश मानसरोवर पहुंचने के रास्ते पर युद्धस्तर पर काम चल रहा है. सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ इस काम में वायुसेना की भी मदद ले रहा है. 'आज तक' को मिली खास जानकारी के मुताबिक ऊंचे पहाड़ों पर सड़क बनाने के इस काम में वायुसेना के एमआई-17 और 26 हेलीकॉप्टरों का अभी इस्तेमाल किया जा रहा है. पीएमओ के अधिकारी खुद इस परियोजना पर नजर रख रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया से मंगवाई गईं मशीनें
यह सड़क सेना के सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा ऋषिकेश-अल्मोड़ा-धारचूला-लिपुलेख सीमा तक बनाई जा रही है. इसके लिए पहाड़ काटने के लिए ऑस्ट्रेलिया से विशेष अत्याधुनिक मशीनें मंगवाई गई हैं. इन मशीनों की मदद से करीब तीन माह के अंदर 35 किलोमीटर से अधिक पहाड़ काट लिया गया है और दिन-रात तेजी से काम चल रहा है. घटियाबगढ़ से लेकर लिपुलेख तक करीब 75.54 किलोमीटर रोड का काम बीआरओ कर रहा है. लिपुलेख की तरफ 62 किलोमीटर तक रोड का काम पूरा हो चुका है. घटियाबगढ़ से आगे की तरफ पहाड़ काटकर सड़क बनाने का काम चल रहा है. हालांकि ऊँचे पहाड़ होने के वजह से मुश्किलें आ रही हैं.
मोदी सरकार के एजेंडे में कैलास मानसरोवर यात्रा
मोदी सरकार के एजेंडे में कैलास मानसरोवर की यात्रियों की सुविधा का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है. पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे सिक्किम में नाथू ला का मार्ग खोलने का आग्रह किया था, जिसे उन्होंने तुरंत मान लिया था. इस वर्ष करीब ढाई सौ लोगों ने उस मार्ग से यात्रा की थी. लिपुलेख दर्रे के पार चीन में सीमा से मानसरोवर की दूरी महज 72 किलोमीटर है और सीमा से वहां चीन ने शानदार सड़क पहले ही बना रखी है. सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार की योजना धारचुला में पर्यटक आधार शिविर को विकसित करने की है, जहां से तीर्थयात्री एक दिन में ही मानसरोवर के दर्शन करके भारत लौट सकें.
पीएम के साथ इसी मार्ग पर यात्रा करना चाहते हैं गडकरी
पिछले साल सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि अप्रैल 2017 में पिथौरागढ़ के इस नए रास्ते से वे पीएम मोदी को लेकर कैलाश मानसरोवर जाना चाहते हैं. ऐसे में बीआरओ दिन-रात काम करके कैलाश मानसरोवर के इस नए रास्ते को बनाने में जुटा है. हालांकि अप्रैल 2017 तक इस सड़क का काम पूरा होने के आसार नहीं हैं. इस सड़क के बन जाने से कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद है. लिपुलेख दर्रे के दुर्गम मार्ग से पैदल यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को करीब एक से डेढ़ लाख रुपए प्रति यात्री व्यय करने पड़ते हैं और सुविधाओं के अभाव के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. दूसरा इस यात्रा में 15-16 दिन का समय लगता है.