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सूचना का अधिकार (RTI) कानून के तहत दायर एक अर्जी को देखकर केंद्रीय कानून मंत्रालय भौंचक्का रह गया. दरअसल, अर्जी में पूछा गया था कि संवैधानिक पदों पर नियुक्त किए जाने वाले लोग और सांसद-विधायक जिस ‘ईश्वर’ के नाम पर पद की शपथ लेते हैं वह कौन है.
सत्यमेव जयते का अर्थ पूछा
आरटीआई आवेदक श्रद्धानंद योगाचार्य ने यह सवाल भी किया कि राष्ट्रीय प्रतीक के आधार पर लिखे हुए उद्देश्य ‘सत्यमेव जयते’ का अर्थ क्या
होता है. यह अर्जी राष्ट्रपति सचिवालय को संबोधित की गई थी जिसे वहां से गृह मंत्रालय भेजा गया और फिर बाद में कानून मंत्रालय को सौंप
दिया गया.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई
कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर श्रद्धानंद ने केंद्रीय सूचना आयोग का रूख किया, जहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई के दौरान कानून
मंत्रालय के एक अधिकारी ने उन्हें बताया कि वे सिर्फ वही सूचनाएं मुहैया करा सकते हैं जो रिकॉर्ड का हिस्सा हों.
सूचना देने से इनकार
केंद्रीय जनसूचना अधिकारी एस के चित्कारा ने भी आवेदक को समझाने की कोशिश की कि ‘सत्यमेव जयते’ किसी संवैधानिक प्रावधान का हिस्सा
नहीं है और ‘सत्य’, ‘धर्म’, ‘जाति’ जैसे शब्दों को संविधान के किसी भी भाग में परिभाषित नहीं किया गय. लिहाजा, इस बाबत कोई सूचना नहीं
मुहैया कराई जा सकती.
ईश्वर के बारे में नहीं पूछा जा सकता सवाल
चित्कारा ने आवेदक से कहा कि वह परिस्थितियों के संदर्भ में या कानून की विभिन्न किताबों में उपलब्ध न्यायिक स्पष्टीकरणों के आधार पर
अभिव्यक्तियों को समझने की कोशिश करें. उन्होंने श्रद्धानंद से कहा कि ईश्वर, सत्य, जाति, न्याय एवं धर्म जैसे शब्दों के अर्थ शिक्षक और
आचार्य बताते हैं, लेकिन इनके बारे में आरटीआई कानून के तहत नहीं पूछा जा सकता क्योंकि इस कानून में ‘सूचना’ को स्पष्ट तौर पर
परिभाषित किया गया है.
आवेदक से ही पूछा गया सवाल
आवेदक एवं सीपीआईओ के बीच चल रही बहस में सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु भी कूद पड़े और उन्होंने आवेदक से ही सवाल दाग दिया,
‘क्या आप ईश्वर और सत्य को परिभाषित कर सकते हैं?’ इस पर श्रद्धानंद के पास कोई जवाब नहीं था.
-इनपुट भाषा