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अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, साल 2012 में जोशी ने नगर निगम से RTI के जरिए पूछा था कि साल 2000 से 2012 तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर कितनी बिजली और पैसा खर्च किया हुआ था.
सूचना आयोग की सख्ती के बाद नगर निगम ने तकरीबन दो साल बाद जोशी की RTI का जवाब दिया. जवाब में 40 हजार पेज का पुलिंदा उनके घर भेज दिया गया. जबकि सूचना के अधिकार कानून के तहत किसी भी विभाग को RTI का जवाब एक महीने के अंदर देना होता है. लेकिन आगरा के इस विभाग ने एक तो कानून की अवहेलना की और साथ ही सूचना को काफी बढ़ा चढ़ाकर दिया.
जोशी ने बताया कि विभाग ने आरटीआई का जो जवाब आया है, उसमें उनके सारे सवालों का जवाब नहीं है.