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साहित्य आज तक: ...कुछ पता तो करो चुनाव है क्या, पढ़ें राहत इन्दौरी और नवाज देवबंदी को

साहित्य आज तक के महामंच से देश और दुनिया के अजीम शायर राहत इन्दौरी, डॉ नवाज देवबंदी, आलोक, राजेश रेड्डी, अकील नोमानी और हरिओम मौजूद रहे. 'मुशायरे की मुश्किल' नामक इस सत्र का संचालन सईद अंसारी ने किया. आप भी पढ़ें इन फनकारों की ग़ज़लें और नज्में...

Sahitya Aajtak- Shayari Sahitya Aajtak- Shayari
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST

साहित्य आज तक के महामंच से देश और दुनिया के अजीम शायर राहत इन्दौरी, डॉ नवाज देवबंदी, आलोक, राजेश रेड्डी, अकील नोमानी और हरिओम मौजूद रहे. 'मुशायरे की मुश्किल' नामक इस सत्र का संचालन सईद अंसारी ने किया. आप भी पढ़ें इन फनकारों की ग़ज़लें और नज्में...

हरिओम

खफा है मुझसे तो आंखों में आब पैदा कर, मेरे नसीब में दौरे-अजाब पैदा कर

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मुझे सकून के लम्हात बुरे लगते हैं, मेरे वजूद में सौ इंक़लाब पैदा कर

हुनर पे अपने अगर नाज तुझे है तो चल, तमाम बच्चों के घर मां-साब पैदा कर

मेरे लफ्जों के काबिल कोई पैकर, अभी आया नहीं तैयार होकर

मैं पर्वक काटता हूं आंसुओं से, ये दरिया फूटता है मुझसे होकर

सदियां का सबसे आलीशान लम्हां, उठा है बस अभी सोकर

आलोक

ये सोचना गलत है कि तुम पर नजर नहीं, मसरूफ हम बहुत हैं मगर बेखबर नहीं

अब तो खुद अपने खून ने भी साफ कह दिया, मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं.

छोटे शहरों से धंधे-रोजगार आने के दर्द पर वे कहते हैं...

जरा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है, नदी का साथ देता हूं तो समंदर रूठ जाता है

गनीमत है नगरवालों लुटेरों से लुटे हो तुम, हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है

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राजेश रेड्डी

शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं, मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं

किसी दिन जिंदगानी में करिश्मा क्यों नहीं होता, मैं हर दिन जाग तो जाता हूं, जिंदा क्यों नहीं होता.

मेरी जिंदगी के कितने हिस्सेदार हैं लेकिन किसी जिंदगी में मेरा हिस्सा क्यों नहीं होता

एक आंसू कोरे कागज पर गिरा और अधूरा खत मुकम्मल हो गया

हरेक आगाज का अंजाम तय है, सहर कोई हो उसका शाम तय है

हिरन चाहेगी जो गर कोई सीता, बिछड़ जाएंगे उससे राम तय है

उनकी ही प्रतिनिधि ग़ज़ल

यहां हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है, खिलौना है जो मिट्टी का, फना होने से डरता है

मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा, बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है

अकील नोमानी...

जतन हजार करो फिर भी बच निकलता है, हरेक दर्द कहां आंसुओं में ढलता है

बिछड़ने वाले किसी दिन ये देखने आ जा, चराग कैसे हवा के बगैर जलता है

बोझ बन जाते हैं नग्में भी समात पे कभी, और कभी शोर-शराबा भी भला लगता है...

मंसूर उस्मानी साब...

बेसबब इंतहान मत देना, तुम मोहब्बत में जान मत देना

आंख मुंसिफ है दिल अदालत है, कोई झूठा बयान मत देना

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चाहे दिल ही जले रोशनी के लिए, हमसफर चाहिए जिंदगी के लिए

दुश्मनी के लिए सोचना है गलत, देर तक सोचिए दोस्ती के लिए

जिस सदी में वफा का चलन ही नहीं, हम बनाए गए उस सदी के लिए

हमारे जैसे किसी की उड़ान थोड़ी है, जहां पे हम हैं वहां आसमान थोड़ी है

बस एक खुलूस का धागा है जिन्दगी अपनी, बिखरते-टूटते रिश्तों में जान थोड़ी है

हमारा प्यार महकता है उसकी सांसों में, बदन में उसके कोई जाफरान थोड़ी है

हौसला गम का यूं बढ़ाया सर, आंख भीगे तो मुस्कुराया कर

क्या जरूरी है कोई बहाना हो, हमसे वैसे भी रूठ जाया कर

भूल जाऊं मैं सारी दुनिया को, इतनी शिद्दत से याद कर

जख्म दिल के दुहाई देने लगे, बात इतनी भी मत बढ़ाया कर

सब फरिश्ता कहां जहां तुझको, ऐसी महफिल से उठ आया कर

डॉ नवाज देवबंदी...

हमनें इश्क की सबसे पहली मुश्किल को आसान किया, दिल खुद को दाना कहता था, दाना को नादान किया

राज पहुंचे हमारे गैरों तक, मशवरा कर लिया था अपनों से

जफा के किस्से वफा की किताब में लिक्खे, सितम भी सब उसके हिसाब में लिक्खे

सवाल भेजे थे कल खत में लिख के उसको, हमारे शेर ही उसने जवाब में लिक्खे

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बादशाहों का इंतजार करें, इतनी फुर्सत कहां फकीरों को

जिन पर लुटा चुका था मैं दुनिया की दौलतें, उन वारिसों ने मुझे कफन नाप कर दिया

वो जो अनपढ़ हैं तो ठीक है, हम पढ़े-लिक्खों को तो इंसान होना चाहिए

हिन्दू, मुस्लिम चाहे जो लिक्खा हो माथे पर मगर, आपके सीने पर हिन्दुस्तान होना चाहिए

राहत इन्दौरी...

किसने दस्तक दी ये दिल पर, कौन है, आप तो अंदर हैं बाहर कौन है

राज जो कुछ हो, इशारों में बता भी देना, हाथ जब उसे मिलाना तो दबा भी देना

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं

जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते हैं खामोशी, जो आंखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैं

सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या

फैसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए, जंग हो या इश्क हो भरपूर होना चाहिए

कट चुकी है उम्र सारी जिनकी पत्थर तोड़ते, उनके हाथों में कोहिनूर होना चाहिए

चलते फिरते हुए महताब दिखाएंगे तुम्हें, हमसे मिलना कभी, पंजाब दिखाएंगे तुम्हें

चांद हर छत पर है, सूरज है हर आंगन में- नींद से जागो तो कुछ ख्वाब दिखाएंगे तुम्हें

पूछते क्या हो कि रुमाल के पीछे क्या है, फिर किसी रोज ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें

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नई हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है, कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते, सजा न देकर अदालत बिगाड़ देती है

राजेश रेड्डी

ये कब चाहा कि मशहूर हो जाऊं, बस अपने आप को मंजूर हो जाऊं

बहाना तो कोई जिंदगी दे, कि जीने कि लिए मजबूर हो जाऊं

मेरे अंदर से गर दुनिया निकल जाए, मैं अपने आप में भरपूर हो जाऊं

न बोलूं सच तो कैसा आईना मैं, जो बोलूं सच तो चकनाचूर हो जाऊं

आलोक...

सखी पिया को जो मैं न देखूं, जिनमें उनकी ही रोशनी हो,स कहीं से ला दो मुझे वो अंखियां

दिलों की बातें दिलों के अंदर, जरा सी जिद से दबी बनी हुई है

वो सुनना जुबां से सबकुछ, मैं करना चाहूं नजर से बतिया

ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है, सुलगती सांसें, तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां

मैं कैसे मानूं बरसते नैनों कि तुमनें देखा है पी को आते, न काग बोले, न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटकी कलियां...

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