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शब्दकोष में जहां शब्दों के अर्थ होते हैं वहीं साहित्य में शब्दों के भाव होते हैं: आशुतोष

साहित्य आज तक के मंच से भारतीय सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता जनता से हुए रू-ब-रू. हमारा हिंदीस्तान सत्र में श्रोताओं को अपनी कविताएं सुनाकर किया मंत्रमुग्ध.

आशुतोष राणा आशुतोष राणा
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 12 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:22 PM IST

आज तक के साहित्यिक महाकुंभ, साहित्य आज तक में श्रोताओं से मुखातिब होने पहुंचे सिने कलाकार और रंगकर्मी आशुतोष राणा ने कहा कि साहित्य का प्रयोग सत्कार के लिए होना चाहिए, धिक्कार के लिए नहीं. हालांकि हो ऐसा रहा है कि मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया के माध्यम से लोग सत्कार की जगह धिक्कार की भाषा को ज़्यादा समय दे रहे हैं.

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आशुतोष कहते हैं कि शब्दकोष में जहां शब्दों के अर्थ होते हैं वहीं साहित्य में शब्दों के भाव होते हैं. यही वजह है कि हमें साहित्यकारों के नाम जीवनपर्यंत याद रह जाते हैं.

वे हिन्दी को अंग्रेजी की तरह ही व्यापार की भाषा बनाने की बात कहते हैं. इसे छोड़ने पर खुद से छूट जाने की बात कहते हैं. उसे उसका वाजिब हक देने की बात कहते हैं. हिन्दी को राजभाषा के बजाय लोक की भाषा बनाए जाने की वकालत करते हैं.

अपनी वीररस की कविता से श्रोताओं को उत्साहित करते आशुतोष कहते हैं कि सोशल मीडिया पर भी विचार आ रहे हैं. वे फेसबुक जैसे सामाजिक माध्यमों पर होने वाली बहस पर तंज करते हैं कि कैसे वहां देश-दुनिया को बदलने की क्रांति चल रही है. आंदोलन चल रहा है. इंटरनेट के दौर में वे उससे दूर रहने पर वे कहते हैं कि देश चलता नहीं मचलता है. मुद्दा हल नहीं होता चलता है. वे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर असहमति और सहमति गड्डमगड्ड है. यहां विचारों का विरोध करने के बजाय व्यक्तियों का विरोध होने लगता है. सोशल मीडिया से तर्क गायब हो गए हैं. हम तो सत्य खोज रहे हैं. गांधी, राम और कृष्ण जैसे लोग इंसान के तौर पर पैदा हुए थे. फिर धीरे-धीरे व्यक्तित्व बने.

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अपने अतीत में गोता लगाते हुए राणा कहते हैं कि वो रामलीला में रावण बनना चाहते थे लेकिन उस समय उम्र आड़े आती थी. हमसे बड़े लोग रावण बन जाते थे. वे तंज कस देते थे कि तुम इस लायक नहीं. अब लायक हैं तो कोई यह रोल नहीं देता.

अंग्रेजी और हिन्दी का सवाल
वे अंग्रेजी में या हिन्दी में बोलने पर आत्मविश्वास की वकालत करते हैं. वे भाषा के बजाय भाव को तरजीह देने की बात करते हैं. हालांकि अंग्रेजी का जुड़ाव आर्थिकी से है. शायद यही वजह है कि सारा मामला गड्डमगड्ड हो जाता है. अंग्रेजीदां होना कोई बड़ी बात नहीं. अंत में विचार ही बचे रह जाते हैं. आपकी सोच महत्वपूर्ण होती है. देश के अलग-अलग हिस्सों की विविधता ही उसकी पहचान है. हमारा देश तो विविधता के लिए ही जाना जाता है.

बाग में हर फूल की अपनी महत्ता है और शायद यही वजह है कि बंगाल से चलकर आने वाला रसगुल्ला पूरे देश में पसंद किया जाने लगता है. राजमा पंजाब से निकल कर पूरे देश में पसंद किया जाने लगता है. वे देश की विविधता को ही खूबसूरती और मजबूती की वजह बताते हैं.

उन्होंने कहा कि आज तक ने इस तरह का आयोजन करके समाचार को विचार के तौर पर स्थापित करने का काम किया. इसके लिए आज तक को बहुत-बहुत बधाई

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