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साहित्य आजतक: 'मैं गरीब के रुदन के आंसुओं की आग हूं'

साहित्य आजतक के दूसरे दिन सत्र ए वतन तेरे लिए में वीर रस के जाने-माने कवि हरिओम पंवार ने शिरकत की और उन्होंने देशभक्ति की कविताओं के साथ देश के अहम मुद्दों का जिक्र किया.

हरिओम पंवार हरिओम पंवार
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:36 PM IST

साहित्य आजतक के मंच पर सत्र 'ए वतन तेरे लिए' में कवि हरिओम पंवार ने देशभक्ति से माहौल सराबोर कर दिया. इस दौरान उन्होंने देश के सामने मुंह बाए खड़ी गरीबी, आतंकवाद जैसी कई समस्याओं पर अपनी कविता की धार से तीखी चोट की. उनकी कविताओं को सुनकर वहां मौजूद साहित्यप्रेमियों में जोश भर गया.

पंवार ने अपने सेशन में फूड सिक्योरिटी, भूख से मर रहे लोगों के मुद्दों पर कविता सुनाई. साथ ही उन्होंने विदेशी कानूनों के बारे में जिक्र किया. सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने आतंकियों को दिए जा रहे वीआईपी ट्रीटमेंट, गरीबी आदि का जिक्र किया. भूख पर लिखी उनकी इस कविता ने खूब वाहवाही बटोरी.

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मेरा गीत चांद है, ना चांदनी है आजकल

ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल

मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये

साहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये

मैं गरीब के रुदन के आंसुओं की आग हूं

भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूं.

कहानीकार विनीत पंक्षी ने कहा- मैं जितना भी भागा, तू मेरे आगे ही रही, माफ किया जिंदगी

डॉ हरिओम पंवार भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान के कवि हैं. उनकी कविताओं में देश की आन, बान, शान ही नहीं उसे लेकर उनका जुनून भी साफ झलकता है. वीर रस और देशभक्ति उनकी पहचान है. 'मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं' जैसी कविता से उन्होंने देश के हर हिंदीभाषी घर और देशभक्त युवाओं के दिल में जगह बनाई है.

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