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साहित्य आजतक: उस्ताद राशिद खान के संगीत पर जमकर झूमे लोग

'साहित्य आजतक' का आयोजन दिल्ली के इंडिया गेट स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 16, 17 और 18 नवंबर को हुआ.

साहित्य आजतक, 2018 साहित्य आजतक, 2018
मोहित ग्रोवर/राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:24 PM IST

हिंदी भाषा का सबसे बड़ा महोत्सव साहित्य आजतक 2018 का आयोजन तीन दिन तक राजधानी दिल्ली में हुआ. तीनों दिन देश के कई बड़े लेखकों, कवियों, बॉलीवुड हस्तियों ने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. राय शुमारी के अलावा संगीत, शास्त्रीय संगीत, सूफी का तड़का भी लगा.

साहित्य आजतक के तीसरे और अंतिम दिन की शुरुआत बॉलीवुड अभिनेता अन्नू कपूर के साथ हुई तो अंत शास्त्रीय गायक राशिद खान की गायकी से हुआ. पूरेे दिन कई लेखकों ने अपनी बात कही तो शाम होते-होते जावेद अख्तर ने राष्ट्रवाद पर अपनी बात कही.

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दस्तक दरबार मंच पर 'आओगे जब तुम साजना'

गायक और संगीतकार उस्ताद राशिद खान के नाम साहित्य आजतक 2018 की आखिरी महफिल रही. उन्होंने अपनी गायकी से सभी का मन मोह लिया. उनके द्वारा गाए गए आओगे जब तुम साजना पर दर्शक खूब झूमे.

तिवारी की उड़ान

साहित्य आजतक की हल्लाबोल चौपाल के 'तिवारी की उड़ान' सत्र में दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष और फिल्म अभिनेता मनोज तिवारी ने अपने भोजपुरी अंदाज में लोगों का मन मोह लिया. मनोज तिवारी ने अपने प्रसिद्ध गानों से महफिल में समां बांध दिया.

दस्तक दरबार में मुशायरा

साहित्य आजतक 2018 के तीसरे और आखिरी दिन देश के बड़े शायरों ने अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया. साहित्य आजतक पर हुए इस मुशायरे में मशहूर शायर राहत इंदौरी, वसीम बरेलवी, मंजर भोपाली, आलोक श्रीवास्तव, शीन काफ निजाम, डॉ नवाज देवबंदी, डॉ लियाकत जाफरी, तनवीर गाजी शामिल हुए.

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'साहित्य के अशोक'

साहित्य आजतक में लेखक अशोक वाजपेयी ने 'साहित्य के अशोक' सत्र में हिस्सा लिया और लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति और साहित्य पर चर्चा की. इस दौरान उन्होंने अपने जीवन से जुड़े कई किस्से भी बताए. चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को सबसे ज्यादा खतरा अभी है.

अशोक वाजपेयी ने अपनी पहले किताब संग्रह को लेकर बताया, 'पहला कविता संग्रह 'शहर अब भी संभावना है' आने से पहले मैं करीब 200 कविताएं लिख चुका था, लेकिन मैंने अपने पहले संग्रह में करीब 150 कविताओं खारिज कर दी थी और उसमें सिर्फ 50-55 किताबें शामिल की गई थी. इस पुस्तक से एक पुस्तक के रुप में मेरा साहित्य में प्रवेश हुआ.'

दस्तक दरबार मंच पर साहित्य और हम

मशहूर लेखक और शायर जावेद अख्तर साहित्य आजतक के मंच पर दर्शकों से रूबरू हुए. उन्होंने यहां अपनी मशहूर पंक्तियों, शायरी को लोगों को सुनाया और सभी का मन मोह लिया. जावेद अख्तर ने सुनाया...''मुझे ऐसा लगता है कि किसी ने साजिश रची है.''

जावेद अख्तर ने कहा कि देश में ऐसा कोई नहीं हो सकता जिसे अपने मुल्क से प्यार ना हो, ये सब प्राकृतिक है. हर व्यक्ति को अपने शहर से प्यार होता है, हर किसी को देश से प्यार होता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि मैं किसी से नफरत करता हूं. हमारे सभ्यता में रहा है कि असहमत होना पाप नहीं है.

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जावेद अख्तर बोले कि हर किसी को देश का छोटा सा हिस्सा दिया गया है, उस व्यक्ति के पास अपनी गली है मोहल्ला है लेकिन क्या वह अपनी उस जगह से प्यार करता है. बात देश से प्यार करने की हो रही है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अलग विचार होना जरूरी है, अगर एक विचार हो तो दिक्कत है. जो लोग देश को हिट करना चाहते हैं वो कम्युनल नहीं होंगे.

मशहूर शायर जावेद अख्तर ने कहा कि मुझे अपने देश प्रेम पर इतना भरोसा है कि मुझे परवाह नहीं है कि कोई मेरे बारे में क्या कहेगा. हमें किसी का डर नहीं है, पाकिस्तान में हम जाकर नहीं डरे. उन्होंने कहा कि कम्युनल मुसलमानों को सेक्यूलर हिंदू बुरे लगते हैं. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व नया-नया खतरे में आया है, इस्लाम तो बरसों से खतरे में है. हिंदुत्व पर खतरा आए दो-तीन साल ही हुए हैं.

सीधी बात मंच के 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा'

'साहित्य आजतक' के सीधी बात मंच के 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' सत्र उन घुमक्कड़ लेखकों के नाम रहा जिन्होंने यात्रा को लेखन में उतार कर हम तक पहुंचाया. द सफारी के लेखक संदीप भूतोड़िया, दर्रा-दर्रा हिमालय के लेखक अजय सोडानी और जेएनयू की प्रोफेसर और लेखिका गरिमा श्रीवास्तव ने इस सत्र में शिरकत की. 

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गरिमा श्रीवास्तव ने अपने क्रोएशिया प्रवास के संस्मरण  'देह ही देश' में युद्ध के दौरान महिलाओं की दशा पर लिखी है. उन्होंने कहा कि वहां की महिलाएं की देह पर युद्ध के अनगिनत घाव हैं, फिर भी वे यह सोच कर जी रही हैं कि जिंदगी न मिलेगी दोबारा.

उन्होंने बोस्निया, सर्बिया, हर्जेगोविना में दो दर्जन के करीब यातना शिविर देखे, जहां सैनिकों से कहा जाता था कि स्त्रियों से बलात्कार करना उनको पुरस्कृत करने जैसा था. बड़े पैमाने पर स्त्रियों को बंदी बनाया गया उनकी देह पर खेल रचे गए. उन्होंने कहा कि ऊपर से देखने में यूरोप जितना शांत है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है.

दस्तक दरबार मंच पर आशुतोष राणा

साहित्य आजतक 2018 के तीसरे दिन मशहूर बॉलीवुड अभिनेता आशुतोष राणा ने शिरकत की. आशुतोष ना सिर्फ अपने अभिनय के लिए बल्कि कविताओं के लिए भी जाने जाते हैं. आशुतोष ने अपनी किताब में से कुछ व्यंग्य पढ़ लोगों को सुनाए. आशुतोष ने इस दौरान अपनी लव स्टोरी भी लोगों को सुनाई, उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने अपनी पत्नी रेणुका को प्रपोज़ किया. उन्होंने सुनाया कि ''क्या कहते हो मेरे भारत से चीनी टकराएंगे? अरे चीनी को तो हम पानी में घोल घोल पी जाएंगे''

दस्तक दरबार मंच पर 'साहित्य का धर्मक्षेत्र'

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युवा पीढ़ी में खासे लोकप्रिय लेखक अमीष त्रिपाठी ने साहित्य आजतक में हिस्सा लिया. यहां उन्होंने अपनी किताबों के बारे में चर्चा की, उन्होंने ये भी बताया कि आगे उनकी किताबें किस विषय पर आधारित होंगी. अमीष त्रिपाठी ने रावण, राम, सीता, शूर्पणखा किरदारों पर खुलकर अपनी बात रखी.

सीधी बात मंच पर एक नवाब शायर

साहित्य आजतक के सीधी बात मंच पर हिंदुस्तान के मशहूर शायर वसीम बरेलवी भी शामिल हुए. उन्होंने अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया. वसीम बरेलवी ने मंच से अपनी मशहूर नज्में पढ़ीं और शेर सुनाए. वसीम बरेलवी ने सुनाया कि...

तुझे जो देखा तो आंखों में आ गए आंसू

तेरी नजर से तेरी आरजू छुपा ना सका

लगा रहा हूं तेरे नाम का फिर एक गुलाब

मलाल ये है ये पौधा भी सूख जाएगा

दस्तक दरबार में 'सुरीली बिटिया'

सोशल मीडिया सेंशेसन मैथिली ठाकुर ने साहित्य आजतक में अपनी गायिका से लोगों का दिल जीत लिया. उन्होंने रश्क-ए-कमर गाने से शुरुआत की, जिसके बाद कई प्रसिद्ध गानों को गुनगुनाया.

हल्लाबोल मंच का पांचवां सत्र 'बोल के लब आजाद हैं तेरे'

साहित्य आजतक के हल्लाबोल मंच का पांचवां सत्र 'बोल के लब आजाद हैं तेरे' गायक हरप्रीत सिंह के नाम रहा. हरप्रीत ने सूफी संगीत और हिंदी कविता को नई दिशा में मोड़ा है और उसे नौजवानो से जोड़ा है.

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इस सत्र की शुरूआत हरप्रीत ने कबीर के 'इस घट अंतर बाग-बगीचे, इसी में सिरजनहारां. इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा' से की. हरप्रीत को कबीर का निर्गुण बेहद पसंद है और इसे सुरों में बांधकर उन्होंने नया आयाम दिया है.

सीधी बात मंच पर सत्र 'रंग दे बसंती चोला'

साहित्य आजतक के तीसरे दिन सीधी बात मंच पर सत्र 'रंग दे बसंती चोला' में देशभक्ति के जज्बे को सलाम करने का वक्त था. इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे देशभक्तों के लेखक सुधीर विद्यार्थी और खुले विचारों के लिए पहचाने जाने वाले लेखक प्रोफेसर चमनलाल. प्रोफसर ने शहीद भगत सिंह पर ढेर सारा काम किया है और जेएनयू में अध्यापन कर चुके हैं.

भगत सिंह की विरासत पर बोलते हुए सुधीर विद्यार्थी ने कहा कि आज के दौर में समाज ने भगत सिंह का बंटवारा कर दिया है. अलग-अलग विचारधारा के लोग उन्हें अपने खेमे में खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन भगत सिंह का कद इतना ऊंचा है कि वो किसी धर्म, जाति, विचारधारा के छाते के भीतर नहीं समा सकते. प्रोफेसर चमनलाल ने कहा कि भगत सिंह जैसा सेल्फ मेड इंसान होना आज के बच्चों के लिए एक प्रेरणादायी कहानी है.

डेंजर दलित: 'संगीत की कोई जाति नहीं होती'

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'साहित्य आजतक' के हल्लाबोल मंच का चौथा सत्र 'डेंजर दलित' में युवाओं के दलित आंदोलन की आवाज बन चुकीं जालंधर की दलित लोक गायिका गुरकंवल भारती उर्फ गिन्नी माही ने अपने क्रांतिकारी गीतों से समा बांधा.

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानने वाली गिन्नी ने कहा कि यदि आज हम लड़कियां इस मंच पर हैं तो वो बाबा साहेब की बदौलत है.  इस सत्र की शुरुआत गिन्नी ने लड़कियों को समर्पित पंजाबी गीत से किया. इस गीत के जरिए एक लड़की अपनी बात कहने की कोशिश कर रही है कि मेरे पैदा होने पर आप निराश मत होइए, क्योंकि लड़की होकर भी मैं लड़कों की तरह काम करना और नाम कमाना चाहती हूं.

गिन्नी ने कहा कि संगीत की कोई जात नहीं होती, वो भविष्य में बॉलीवुड की पार्श्व गायिका बनना चाहती हैं. अपने विवादित गीत 'डेंजर चमार' की चंद पंक्तियां सुनाने के साथ उन्होंने  इसके बारे में बताया कि, च से चमड़ी, मा से मांस और र से रक्त होता है और इनसे मिलकर एक इंसान बनता है.

हल्लाबोल चौपाल पर 'कहानी क्राइम की'

'साहित्य आजतक' के हल्ला बोल मंच का तीसरा सत्र कहानी क्राइम पर केंद्रित रहा. इसमें पॉपुलर उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने भाग लिया, जो 160 उपन्यास लिख चुके हैं. उनसे बात की शम्सताहिर खान ने.

मुख्यधारा और उससे अलग साहित्य का विभाजन गलत है, लिखने वाला साहित्यकार होता है चाहे वह कैसा भी लिख रहा हो, वशर्ते पब्लिक उसे पसंद करे. ये बातें कहीं प्रसिद्द उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने.

उन्होंने आगे कहा कि उनकी सफलता से जलने वाले लोगों ने विभाजन की ऐसी लकीर खींची. उन्होंने चुनौती दी कि वह साहित्यकारों जैसा लिख सकते हैं लेकिन कोई है जो उनके जैसा लिखे.

दस्तक दरबार पर सत्र 'एक थी इंदिरा'

साहित्य आजतक के तीसरे दिन दस्तक दरबार के मंच पर एक थीं इंदिरा सत्र में कांग्रेस नेता जयराम रमेश मौजूद हैं. जयराम ने कहा कि इंदिरा के दो चेहरे हैं, लोग एक की प्रशंसा करते हैं और दूसरे की आलोचना लेकिन असली इंदिरा राजनीतिक व्यक्ति नहीं थीं. उनको शौक भी नहीं था राजनीति का. लेकिन राजनीति में उनका जन्म हुआ, पली-बढ़ी और अंत तक रहीं लेकिन वो पहले रूप में पर्यावरण प्रेमी थीं. जयराम रमेश ने कहा कि उनकी किताब उस पर्यावरणप्रेमी इंदिरा पर ही है.

जयराम रमेश ने कहा कि इंदिरा सिर्फ पर्यावरण की या सिर्फ विकास की बात नहीं करती थीं वो बैलेंस की बात करती थीं क्योंकि उनका कहना था कि हिंदुस्तान विकसित नहीं, बल्कि विकासशील देश है.

जून 72 में पहला विश्व पर्यावरण सम्मेलन हुआ स्टॉकहोम में, उसमें केवल एक राष्ट्राध्यक्ष मौजूद था और वो थीं इंदिरा गांधी. उस समय पर्यावरण की बात करना बहुत मुश्किल था. उस समय इसकी बात करना अपने आप में अनोखा था. उस दशक में जो कानून बने वो आज भी हमारे सामने हैं. उन्हीं के कानून के आधार पर हमारी नीतियां बनी हैं. इंदिरा दूरदर्शी थीं पर्यावरण के मामले में.

जयराम रमेश ने कहा कि इंदिरा का योगदान ऐतिहासिक है. कोई भी उनका योगदान नहीं मिटा सकता. उनके कुछ निर्णय सकारात्मक थे लेकिन इमरजेंसी जैसे निर्णय भी हैं जहां उनकी आलोचना होती है. आज मैं मथुरा रिफाइनरी नहीं लगने देता लेकिन उस वक्त के हालात बहुत अलग थे. इंदिरा देश की पहली और आखिरी प्रधानमंत्री थीं जो पर्यावरण को लेकर इतनी चिंतित रहा करती थीं.

राहुल के नेतृत्व पर भरोसे के बारे में पूछे गए सवाल पर जयराम रमेश ने कहा कि राहुल हमारे अध्यक्ष हैं और रहेंगे. इसपर किसी को शक नहीं हैं. गुजरात, कर्नाटक के चुनाव के समय उन्होंने जो किया उसपर किसी को शक नहीं है. उनकी रणनीति, चुनाव अभियान कांग्रेसियों के लिए शक से परे है.

सीधी बात मंच पर सत्र 'कहानी ऑन डिमांड'

साहित्य आजतक के तीसरे दिन सीधी बात मंच पर सत्र 'कहानी ऑन डिमांड' में साहित्यकार के मन को टोटलने की कोशिश की गई. इस सत्र में युवा ब्लॉगर प्रत्यक्षा, जानेमाने कथाकार पंकज सुबीर, लेखक प्रवीण कुमार ने हिस्सा लिया. तीनों मेहमानों से जानने की कोशिश की गई कि आखिर रचनाकार क्यों और कब लिखता है साथ ही उसके पात्र कहां से लाए जाते हैं.

इस सत्र का संचालन करते हुए संजय सिन्हा ने कहानी की काल्पनिकता को लेकर सवाल पूछा. इसके जवाब में प्रत्यक्षा ने कहा कि बगैर कल्पना के कोई कहानी मुमकिन नहीं है, उसमें कुछ बातें जीवन की सच्चाई से जुड़ी हो सकती है लेकिन फिर भी उसका ज्यादा बड़ा हिस्सा कल्पनाओं पर आधारित ही होगा. कहानीकार का पंकज सुबीर ने कहा कि कहानी लिखने के लिए अनुभव होना जरूरी है, बिना किसी बीज के कहानी की लिखावट नहीं हो सकती.

दस्तक दरबार पर लोक संगीत और साहित्य

रचनाओं के चयन का उनका आधार क्या है. ‘लोक संगीत और साहित्य’ सत्र में लेखिका उषाकिरण खान और लीलाधर जगुड़ी ने कई विषयों पर चर्चा की. साहित्य के क्षेत्र के ये दिग्गज कवि और कथाकारों ने अपने अनुभवों और विचारों को साझा किया.

हल्ला बोल मंच पर 'मेरी अपनी जबान' सत्र

'साहित्य आजतक' के हल्ला बोल मंच का दूसरा सत्र स्थानीय भाषा या बोली और लोक कला पर केंद्रित रहा. 'मेरी अपनी जबान' सत्र में भोजपुरी और अवधी को लेकर काम कर रहे मुन्ना पाण्डेय और अमरेंद्र त्रिपाठी ने हिस्सा लिया. अमरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भाषा और बोली में कोई खास अंतर नहीं. एक बोली जिसका व्याकरण हो, साहित्य हो और उसे बोलने वाले की अच्छी खासी आबादी. यदि बोली ताकतवर हो जाती है तो वो भाषा हो जाती है.

दस्तक दरबार पर '3 मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ'

दिल्ली के इंडिया गेट स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में हो रहे साहित्य आजतक के तीसरे दिन मशहूर लेखक चेतन भगत ने शिरकत की. थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ नाम के सत्र में चेतन भगत ने मीटू मुहिम और देश की राजनीति पर खुलकर अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने साहित्य आजतक की तारीफ भी की. उन्होंने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिट फेस्ट बन चुका है.

सीधी बात मंच पर पहला सत्र 'हिंदी-विंदी'

साहित्य आजतक के तीसरे दिन सीधी बात मंच पर सत्र 'हिंदी-विंदी' में हिन्दी के बड़े पत्रकार और लेखक राहुल देव के साथ अनंत विजय, अतुल कोठारी ने शिरकत की. कार्यक्रम में बोलचाल की हिन्दी, बाजार की हिन्दी और मानक हिन्दी के विभिन्न आयामों पर बातचीत हुई. इसके अलावा हिंदी भाषा और आलोचना के क्षेत्र में काम कर रहे इन दिग्गजों से हिन्दी के मौजूदा हालात पर भी चर्चा की गई.

अंग्रेजी की बढ़ती महत्ता और हिन्दी के हालात पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि आजादी के बाद हमें राजनीतिक आजादी मिली लेकिन प्रशासनिक आजादी नहीं मिल पाई. आजादी से पहले अंग्रेजी की जो जड़ें ब्रिटिश भारत लेकर आए थे, वही आजादी के बाद भी आगे बढ़ती रही. अंग्रेजी के आगे हिन्दी ही नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं की हालत पस्त पड़ती दिख रही है.

हल्ला बोल मंच पर पहला संगीत और कविता

साहित्य आजतक में हल्ला बोल के मंच पर दूसरे दिन की शुरूआत जानी मानी शास्त्रीय संगीत गायिका चिन्मयी त्रिपाठी के सत्र से हुआ. म्यूजिक और पोयट्री प्रोजेक्ट के बारे में उन्होंने बताया कि छायावाद की कुछ कविताओं को उन्होंने गीतों में ढाला है, उन्होंने शुरुआत महादेवी वर्मा की कविताओं से की 'जाग तुझको जाना'.

दस्तक दरबार पर दूसरा सत्र: सिनेमा और महिलाएं

साहित्य आजतक 2018 के अहम मंच दस्तक दरबार पर दूसरे सत्र सिनेमा और महिलाएं में लेखक और निर्देशक अनुभव सिन्हा, सेंसर बोर्ड सदस्य वाणी त्रिपाठी और एक्टर ऋचा चड्ढा ने शिरकत की. इस सत्र का  संचालन अंजना कश्यप ने किया. सत्र में ऋचा ने कहा कि आज बॉलीवुड में महिलाओं की बल्ले-बल्ले हो रही है. लोगों को अब भरोसा हो रहा है कि औरतें भी बॉक्स ऑफिस पर कमा कर दे सकती हैं.

क्या महिलाओं के बिना सिनेमा की कोई कल्पना की जा सकती है? अगर नहीं, तो भी सिनेमा को पुरुष प्रधान क्यों माना जाता है? वह भी तब जब ‘मदर इंडिया’, ‘उमराव जान’, 'आंधी', 'भूमिका', 'अर्थ', 'मिर्च मसाला', 'दामिनी', 'चांदनी बार', 'कमला’, 'नो वन किल्‍ड जेसिका','द डर्टी पिक्चर',' 'सात खून माफ' और कहानी जैसी सफल महिला प्रधान फिल्मों की भरमार.

क्या बिना महिला कथानकों और महिला कलाकारों के मुगल-ए-आजम, अनारकली, दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे, मैंने प्यार किया, कभी खुशी कभी गम जैसी फिल्में भी बन सकती थीं. अगर नहीं तो फिर क्या वजह है कि हीरो और हीरोइन के पेमेंट से लेकर महिला ऐक्टरों को उतने मौके नहीं मिलते, जितने पुरुषों को उपलब्ध हैं.

दस्तक दरबार पर पहला सत्र: सुहानी बात

साहित्य आजतक 2018 अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया गया है. तीसरे दिन की शुरुआत एक्टर अन्नू कपूर के  सत्र सुहानी बात से हुई. इस सत्र का संचालन मीनाक्षी कांडवाल ने किया.

अन्नू कपूर ने कहा कि कबीर को एक जुलाहे ने पाला और वह किसी मदरसे में नहीं गए लेकिन उन्हें खुदा ने हुनर से नवाजा और अमर हो गए. अन्नू कपूर ने कहा कि उनका बचपन गरीबी और मुफलिसी में बीता इसके बावजूद वह कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना अस्तित्व तलाशने लगे. दिल्ली में स्थापित होने के बाद पैसे कमाने के लिए उन्होंने मुंबई का रुख किया. अन्नू ने कहा कि पैसा जीवन में बेहद मायने रखता है.

विक्की डोनर के किरदार पर अन्नू कपूर ने कहा कि उन्हें करियर की शुरुआत से ही ऐसे किरदार मिलते रहे जो मेनस्ट्रीम कलाकारों को इस लिए नहीं दिया गया क्योंकि रोहल बेहद जटिल थे. अन्नू ने कहा कि बॉलिवुड में सहज और अधिक पुरस्कार का किरदार नए और स्मार्ट लड़कों को दिया जाता है और जब किरदार कठिन चुनौती भरा होता है तब उनके जैसे कलाकारों को मौका मिलता है.

अन्नू ने अपनी बात के  लिए तर्क दिया कि करियर की शुरुआत में उन्हें एक सीरियल में कबीर का किरदार दिया गया. इस वक्त वह महज 26 साल के थे और उन्हें 70 साल के कैरेक्टर का किरदार अदा करना था.   

पूरा सेशन पढ़ें... साहित्य आजतक: 'वो भगवा-हरा चिल्लाएंगे, तुम तिरंगे पर अड़े रहना'

दूसरे दिन की पूरी कवरेज यहां पढ़ें... साहित्य आजतक 2018: नूरां सिस्टर्स की धूम, सूफियाना हुआ माहौल

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