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12 और साहित्यकारों ने लौटाया पुरस्कार, समर्थन में रुश्दी, चेतन भगत बोले- अवार्ड लौटाना राजनीति

बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक सलमान रुश्दी आख‍िरकार सांप्रदायिकता के जहर के प्रसार और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ लेखकों के बढ़ते विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं. इस बीच सोमवार को 12 और लेखकों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया.

लेखक सलमान रुश्दी लेखक सलमान रुश्दी
स्‍वपनल सोनल
  • नई दिल्ली,
  • 12 अक्टूबर 2015,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक सलमान रुश्दी आख‍िरकार सांप्रदायिकता के जहर के प्रसार और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ लेखकों के बढ़ते विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं. इस बीच सोमवार को 12 और लेखकों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया.

रुश्दी ने अपने ट्वीट में कहा, 'मैं नयनतारा सहगल और कई अन्य लेखकों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करता हूं. भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरनाक समय.' जवाहर लाल नेहरू की 88 वर्षीय भांजी सहगल उन शुरुआती लोगों में थीं, जिन्होंने असहमति की आवाज उठाने पर लेखकों और अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ताओं पर बार-बार हमले को लेकर अकादमी की चुप्पी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.

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कश्मीरी लेखक गुलाम नबी खयाल, उर्दू उपन्यासकार रहमान अब्बास, कन्नड़ लेखक और अनुवादक श्रीनाथ डीएन ने कहा कि वे अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा रहे हैं.

श्रीनाथ के साथ ही हिंदी लेखकों मंगलेश डबराल और राजेश जोशी ने सोमवार को कहा कि वे अपने प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों को लौटा देंगे, वहीं वरयाम संधु और जीएन रंगनाथ राव ने अकादमी को अपने फैसले की सूचना दे दी है. खयाल ने भी इन लेखकों के समर्थन में उतरते हुए कहा कि आज देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित और डरा हुआ महसूस कर रहे हैं.

रंगमंच कलाकार ने भी लौटाया सम्मान
दिल्ली की रंगमंच कलाकार माया कृष्ण राव ने भी दादरी में एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या किए जाने और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपना संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार लौटा दिया. उन्होंने नागरिकों के अधिकारों के पक्ष में बोलने में सरकार के विफल रहने पर निराशा जाहिर की.

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पंजाब के चार और लेखक और कवि सुरजीत पत्तर, बलदेव सिंह सडकनामा, जसविंदर और दर्शन बट्टर सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और कहा कि वे भी विरोध स्वरूप अपना पुरस्कार लौटा रहे हैं.

इसके साथ ही कम से कम 21 लेखकों और कवियों ने अपना पुरस्कार लौटाने के फैसले की घोषणा की है. कुछ ने चेतावनी दी है कि देश में अल्पसंख्यक आज असुरक्षित और भयभीत महसूस कर रहे हैं. लेखकों ने चेतावनी देते हुए कहा, 'सांप्रदायिकता का जहर देश में फैल रहा है और लोगों को बांटने का खतरा बड़ा है.' कई जगहों से निशाने पर आने के बाद अकादमी ने 23 अक्तूबर को कार्यकारिणी बोर्ड की एक बैठक बुलाई है.

'अंधकारमय है अल्पसंख्यकों का भविष्य'
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि संस्थान भारत के संविधान में वर्णित मुख्य धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध है. खयाल ने कहा, 'मैंने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है. देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित और भयभीत महसूस कर रहे हैं. वे महसूस कर रहे हैं कि उनका भविष्य अंधकारमय है.'

उर्दू लेखक रहमान अब्बास ने कहा, 'दादरी घटना के बाद उर्दू लेखक समुदाय बेहद नाखुश है, इसलिए मैंने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया. कुछ और उर्दू लेखक भी हैं जो विरोध में शामिल होना चाहते हैं. यही समय है कि हमें अपने आसपास हो रहे अन्याय के प्रति खड़े होना चाहिए.' अब्बास को उनके तीसरे उपन्यास 'खुदा के साये में आंख मिचौली' के लिए वर्ष 2011 में पुरस्कार प्रदान किया गया था.

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श्रीनाथ ने कहा, 'कलम की जगह अब गोलियां चलाई जा रही हैं. लेखक कलबुर्गी की हत्या कर दी गई. केंद्र और राज्य को अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं हों.' श्रीनाथ को भीष्म साहनी द्वारा लिखी लघु हिंदी कहानियों का कन्नड़ में अनुवाद करने के लिए वर्ष 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था.

चेतन भगत ने साहित्य अकादमी को राजनीति से जोड़ा
चेतन भगत ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने को राजनीति से जोड़ दिया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि पहले पुरस्कार लेना और फिर लौटाना राजनीति है.

उन्होंने सवाल भी उठाया कि यदि आप किसी सरकार को पसंद नहीं करते हैं तो क्या अपना पासपोर्ट, कॉलेज डिग्री भी लौटा देते हैं? फिर सिर्फ एक अवार्ड ही क्यों? सोशल मीडिया पर बहस बढ़ी तो भगत ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की आलोचना भी की. कहा कि इस पुरस्कार को पाने की मेरी हसरत उतनी ही है, जितनी कि साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली किताबें आपने पढ़ी हैं. यानी शून्य.

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