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मृत्युदोष से बचाने के लिए बच्चों की कुत्ते से शादी!

बच्चों के दूध के दांत आने पर उसकी मुस्कान और भी प्यारी हो जाती है. अगर ये दांत ऊपर के पहले आ जाएं तो जानिए फिर ये लोग बच्चों के साथ क्या करते हैं...

संथाल आदिवासी मानते हैं इस हैरान कर देने वाली प्रथा को संथाल आदिवासी मानते हैं इस हैरान कर देने वाली प्रथा को
मेधा चावला/IANS
  • रायपुर,
  • 18 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

छत्तीसगढ़ के कोरबा-बाल्को मार्ग पर स्थित बेलगिरी में संथाल आदिवासियों में एक हैरान कर देने वाली परंपरा है. मकर संक्रांति के मौके पर वे अपने बच्चों के जीवन में मृत्युदोष दूर करने के लिए उनकी शादी कुत्ते से करा देते हैं.  इससे भी ज्यादा हैरानी आपको यह जानकर होगी कि वे इस मृत्युदोष का पता किस तरह लगाते हैं.

जब बच्चों के दूध के दांत आते हैं तो उसकी मुस्कान और भी भोली लगने लगती है. लेकिन मूलत: ओडिशा के रहने वाले संथाल आदिवासियों के लिए यह घड़ी चिंता लेकर आती है. अगर उनके बच्चों के ऊपर के दांत पहले आ जाएं, तो वे इसे मृत्युदोष मानते हैं. यही नहीं, इस दोष बचने के लिए वे एक अनोखा अनुष्ठान करते हैं, जिसमें बच्चों की शादी कुत्ते से कर दी जाती है.

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वर्षों से निभा रहे हैं परंपरा
संथाल आदिवासी वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. इस अनोखे रिवाज के तहत मकर संक्रांति के मौके पर बेलगिरी बस्ती में करीब साढ़े तीन साल के एक बालक की शादी कुत्ते से कराई गई. इस तरह अधिकतम पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की शादी कराई जाती है.
अगर 'यह दोष' किसी बालक पर है तो मादा और बालिका हो तो नर पिल्ले के साथ उसका धूमधाम से यह संस्कार पूरा किया जाता है. उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनके नन्हे-मुन्नों की जिंदगी पर आने वाला संकट हमेशा के लिए दूर हो जाता है. इस दौरान पूरी बस्ती में किसी बड़े आयोजन जैसा माहौल रहता है.
इस परंपरा को मानने वाले संथाल आदिवासी कोरबा के बाल्को क्षेत्र में लालघाट, बेलगिरी बस्ती, शिवनगर, प्रगतिनगर लेबर कालोनी और दीपका से लगे कृष्णानगर क्षेत्र में निवास करते हैं.

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कहते हैं 'सेता बपला'
आदिवासियों ने बताया कि पूर्वजों के वक्त से ऐसी मान्यता रही है कि जिन बच्चों के मुंह में पहले दांत ऊपर की ओर आए तो उनके जीवन में मृत्युदोष होता है. उन्हें कभी तेज बुखार आ सकता है और उनकी मौत हो सकती है. ऐसे बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए इस दोष से मुक्ति जरूरी होती है, जिसके लिए वे उनकी शादी कुत्ते के बच्चे से करा देते हैं.
इस अनोखी शादी को संथाल आदिवासी 'सेता बपला' कहते हैं. उनकी भाषा में सेता का अर्थ कुत्ता व बपला यानी शादी होती है, जिसका पूरा अर्थ कुत्ते से शादी होती है.
संथाल आदिवासियों के समुदाय में कुत्ते के अलावा बच्चों की शादी पेड़ से भी करके यह दोष मिटाया जाता है. इसमें पेड़ से बच्चों की शादी को 'दैहा बपला' कहते हैं. इन आदिवासियों का यह भी मानना है कि इस तरह के विवाह के बाद बच्चे के जीवन का संकट कुत्ते या उस पेड़ पर चला जाता है. इनका कहना है कि शादी के बाद उस कुत्ते को विधियां पूरी कर बस्ती से कहीं दूर जाकर छोड़ दिया जाता है.

डॉक्टरों ने बताया अंधविश्वास
शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज ध्रुव ने बताया कि छोटे बच्चों में दांत आना एक साधारण शारीरिक प्रक्रिया है. अब पहले ऊपर के दांत आते हैं या नीचे के, यह प्रकृति पर निर्भर है. कई बार दांत आते वक्त उस स्थान पर गुदगुदी होती है, जिसे महसूस कर बच्चे चीजों को हाथ में लेकर चबाने लगते हैं. ऐसे में अगर वह वस्तु दूषित है तो उन्हें साधारण तौर पर दस्त की शिकायत हो सकती है.
पर इसका अर्थ यह नहीं कि बच्चे के ऊपर के दांत पहले आ गए तो उन पर किसी प्रकार का ग्रह दोष ही होगा. यह मेडिकल की भाषा में अंधविश्वास ही है.

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