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सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) का कई राज्यों ने विरोध किया. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से इस पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या राज्य इस साल अलग से परीक्षा करवा सकते हैं?
शुक्रवार को फिर से सुनवाई
कोर्ट के सवाल पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वे केंद्र सरकार से निर्देश लेकर शुक्रवार को अदालत को सूचित करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यदि राज्यों को अनुमति दी जाती हैं तो प्राइवेट कालेजों टेस्ट नहीं करवा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह संभव है कि 1 मई को परीक्षा देने वाले छात्र 24 जुलाई को फिर से टेस्ट में भाग ले सकते हैं?' सॉलिसिटर जनरल ने कहा एनईईटी फेज 1 में भाग लेने वालों को एनईईटी फेज 2 के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती.
महाराष्ट्र ने रखा पक्ष
महाराष्ट्र ने कहा कि राज्य में 4.09 लाख राज्य की CET परीक्षा गुरुवार को दे चुके हैं. हमारा और सीबीएसई का सिलेबस अलग है. 1 मई के NEET के पेपर को टीचर्स को दिखाया गया, जिसमें 35 सवाल राज्य के सिलेबस से बाहर थे. हमारे लिए NEET 2018 में लागू किया जाए ताकि हम सिलेबस में बदलाव कर लें. भाषा एक परेशानी हैं, ग्रामीण छात्रों को ज्यादा दिक्कत होगी. हमारे यहां मराठी और उर्दू में भी टेस्ट होता है.
जम्मू-कश्मीर भी विरोध में
जम्मू कश्मीर की ओर से कहा गया कि कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार विशेष दर्जा प्राप्त है. बिना विधानसभा में लाए हुए इसे जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता. वर्तमान में राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्थानीय कश्मीरी छात्रों के लिए आरक्षण है. इससे वो भी प्रभावित होगा.
गुजरात ने भी मना किया
गुजरात ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिए हमारे पास 68 हजार छात्र हैं, जिसमें से करीब 60 हजार गुजराती में टेस्ट देंगे. वे अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते. हमारा पाठ्यक्रम सीबीएसई से 30 प्रतिशत अलग है. अंग्रेजी शब्दावली के साथ परिचित होने के लिए कम से कम एक साल की जरूरत है. गुजरात की ओर से गुजराती पेपर की एक कॉपी सुप्रीम कोर्ट में दी गई और कहा गया कि कोर्ट के आदेश के बाद ऐसी दिक्कत गुजराती छात्रों को भी आएगी.