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उत्तराखंड के 9 बागी विधायकों को SC से नहीं मिली राहत, विधानसभा सत्र में नहीं हो पाएंगे शामिल

बुधवार को अदालत का माहौल बहुत कुछ विधान सभा जैसा लगा. पक्ष, प्रतिपक्ष और स्पीकर सब एक तरफ और दूसरी तरफ थे फैसले देने वाले 2 न्यायधीश.

सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों की दलीलें नहीं मानीं सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों की दलीलें नहीं मानीं
अहमद अजीम/रोहित गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 6:42 PM IST

उत्तराखंड में कांग्रेस के 9 बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को कोई राहत नहीं मिली. कोर्ट ने स्पीकर को हटाने के प्रस्ताव को एजेंडे में शामिल करने और बागियों को 21 जुलाई से शुरू होने वाली विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं दी. हालांकि कोर्ट ने स्पीकर को हटाए जाने का मुद्दा पहले से ही अदालत में लंबित बागियों की याचिका में शामिल करने की सहमति दे दी.

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बुधवार को अदालत का माहौल बहुत कुछ विधानसभा जैसा लगा. पक्ष, प्रतिपक्ष और स्पीकर सब एक तरफ और दूसरी तरफ थे फैसले देने वाले 2 न्यायधीश. बागी अपनी बीजेपी की नई नवेली सदस्यता भूल कर खुद को फिर से कांग्रेस का सदस्य होने की दुहाई दे रहे थे और अरुणाचल प्रदेश पर फैसले का हवाला देकर समय के चक्र को फिर से घुमाने की मांग कर रहे थे. जबकि दूसरी तरफ स्पीकर और कांग्रेस ने बागियों की अर्जी का विरोध किया.

जज बोले- हम शॉकप्रूफ हो चुके हैं, ऐसे मामले पहले भी देखे हैं
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिघवी ने विरोध करते हुए कहा कि‍ बागी विधायकों की अपील और ये अर्जी महत्वहीन हो गई हैं और इन्हें खरिज किया जाना चाहिए. ये लोग कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और अब ये वापस कांग्रेस में नहीं आ सकते. कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कहा कि ये पहला मामला है, जब बीजेपी खुद अपने विधायकों को कांग्रेस का विधायक बता रही है. इस पर जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा, 'बेशक ये पहला मामला हो लेकिन हम इससे हैरान नहीं हैं. अब हम शॉकप्रूफ हो चुके हैं. हमने ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें स्पीकर खुद पार्टी छोड़ कर चला गया.'

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कोर्ट ने बागियों से सवाल किया की क्या अयोग्य ठहराए जाने के बाद भी कोई सदस्य रह सकता है? कोर्ट ने ये सवाल तब किया जब बागियों की तरफ से बार-बार विधान सभा सत्र में शामिल होने की इजाजत मांगी जा रही थी. बागियों के वकील आर्यमान सी सुन्दरम ने अरुणाचल प्रदेश पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा की वो भी अयोग्य ठहराए जाने से पहले की स्थ‍िति‍ बहाल करने की मांग कर रहे हैं.

बागियों ने अरुणाचल पर फैसले का दिया हवाला
अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो सबसे पहले विधानसभा की कार्यवाही में उसी पर फैसला होना चाहिए बाकी कार्यवाही बाद में हों. इसी को आधार बना कर बागी कह रहे हैं कि‍ उनकी तरफ से स्पीकर को हटाए जाने का जो प्रस्ताव दिया गया था, उस पर पहले फैसला होना चाहिए था जबकि स्पीकर ने उस प्रस्ताव को ठंडे बसते में डाल कर गैरकानूनी तरीके से उन्हें अयोग्य करार दे दिया.

कपिल सिब्बल ने दी ये दलील
इस दलील पर कपिल सिब्बल ने स्पीकर की तरफ से कहा कि‍ स्पीकर को हटाने के दिए गए प्रस्ताव में कोई वजह नहीं दी गई थी और ये पूरी तरह राजनीति‍ से प्रेरित था और इस तरह कोई भी प्रस्ताव दे कर स्पीकर के हाथ बांध सकता है. कोई भी एक सदस्य स्पीकर के खिलाफ प्रस्ताव लाएगा और स्पीकर के हाथ बंध जाएंगे. इसके बाद बाकी सदस्य पार्टी छोड़ देंगे और सरकार गिर जाएगी. सिब्बल ने ये भी कहा की नियम के मुताबिक सत्र से 14 दिन पहले ऐसा नोटिस दिया जाना चाहिए था.

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अगली सुनवाई 27 को
एक वक्त बहस इतनी गंभीर हो गई कि स्पीकर की तरफ से पेश हो रहे कपिल सिब्बल ने मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की मांग कर दी लेकिन कोर्ट ने मांग अनसुनी कर दी. बहरहाल, दिनभर चली सुनवाई के बाद भी बागी विधायकों को कोई राहत नहीं मिली. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारिख तय कर दी है.

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