
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी के नियमों में बदलाव क्या किया, राजनीतिक पार्टियों में इस बात की होड़ मच गयी है कि कौन सी पार्टी खुद को दलितों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करे. सभी पार्टी को इसकी चिंता है कि कोर्ट के इस फैसले से कहीं दलित वोट बैंक नाराज न हो जाए, क्योंकि कर्नाटक का चुनाव तो बिल्कुल सिर पर है और 2019 के लोकसभा के चुनाव की गहमागहमी भी शुरू हो चुकी है.
यही वजह है कि एक बाद एक पार्टी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटवाने के लिए कुछ न कुछ करते दिखना चाहती है. बीजेपी और एनडीए में शामिल सहयोगी दलों को लगता है कि सरकार में होने की वजह से इस बात का ठीकरा उन्हीं के सर पर फूट सकता है कि वो इस एक्ट की धार को कमजोर होने से बचा नहीं सके.
पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग
बुधवार को केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की अध्यक्षता में एनडीए में शामिल सभी दलों के 20 अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों ने प्रधानमंत्री से संसद में मुलाकात की. उनसे कहा कि सरकार इस मामले में जल्द से जल्द कदम उठाए और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद पासवान ने कहा कि पीएम ने उनकी बातों को गंभीरता से सुना और पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के बारे में उनका रूख सकारात्मक था.
पासवान दलितों की राजनीति करते हैं इसलिए वो इस मामले में एक कदम आगे चल रहे हैं. उनकी पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी इस मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है और इस माममे में पार्टी नहीं होने के बावजूद अपनी तरफ से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुकी है. पासवान की तरह केन्द्रीय मंत्री और रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष रामदास अठावले भी इस मामले में अपनी तरफ से कार्रवाई कर रहे हैं. उन्होंने भी पिछले ही हफ्ते प्रधानमंत्री को चिठ्टी लिख भेजी और कहा कि सरकार को जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर इस फैसले को बदवाने की कोशिश करनी चाहिए.
एक और केंद्रीय मंत्री राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के उपेन्द्र कुशवाहा भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहते थे इसलिए उन्होंने भी मंगवार को प्रधानमंत्री को इस बारे में चिठ्ठी लिखकर मीडिया को जारी कर दिया.
खुद बीजेपी की हालत ये है मंत्री खुद एक दूसरे को चिठ्टी लिख रहे हैं ताकि वो इस बारे में कुछ करते हुए दिखें. सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत इस मामले को लेकर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिख चुके हैं.
विपक्ष भी लगा रहा है दम
उधर कांग्रेस समेत विपक्ष के नेताओं ने एसी/एसटी एक्ट में बदलाव के बारे में बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की. इस बारे में ट्वीट करके राहुल गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे समय पर आया है जब देश भर में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं बढती जा रही हैं.
कांग्रेस ये भी आरोप लगा रही है कि कोर्ट में जो हुआ है उसके लिए मोदी सरकार ही दोषी है, क्योंकि वो कोर्ट के सामने ठीक से मामले की पैरवी नहीं कर सकी. कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि अगर सरकार ठीक से इस मामले को कोर्ट में रखती तो ये फैसला ही नहीं आया होता जिसको लेकर इतनी हायतौबा मची हुई है.
यह था फैसला
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एसी एसटी एक्ट का जमकर दुरूपयोग हो रहा है इसलिए अब इस मामले में सीधे गिरफ्तारी नहीं होकर एसएसपी की मंजूरी के बाद ही गिऱफ्तारी हो सकेगी. अगर मुकदमा सरकारी कर्मचारी के खिलाफ है तो उसे बहाल करने वाले अधिकारी की इजाजत के बिना गिरफ्तारी नहीं हो सकती.
देश में दलितों और आदिवासियों की आबादी करीब 30 प्रतिशत है इसलिए उनके वोटों की जरूरत हर पार्टी को होती है. माना जाता है कि हाल के कई चुनावों में बीजेपी की जीत का कारण यही रहा कि दलितों ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया था.