Advertisement

..इसलिए भगत सिंह और उनके साथियों को 11 घंटे पहले दे दी गई थी फांसी

इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए जिसके चलते तीनों वीरों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी.

भगत सिंह भगत सिंह
प्रियंका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

भारत के वीर सपूत क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव 23 मार्च 1931 में देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था.

गौरतलब है कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया, जिसने तीनों को फांसी की सजा सुनाई. तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई. इस मामले में सुखदेव को भी दोषी माना गया था.

Advertisement

शहीद दिवस: भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को देश ऐसे कर रहा है याद

बता दें, केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी. लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी.

तीनों वीरों की फांसी की सजा पूरे देश में आग की तरह फैल गई. जिसके बाद फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे अंग्रेजी सरकार डरी हुई थी. जिसका नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई थी.

जानें क्या हुआ फांसी के दिन

Advertisement

जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे.

जब कहां 'ठीक है अब चलो'

भगत सिंह को जब जेल के अधिकारियों ने यह सूचना दी कि उनकी फांसी का समय आ गया है तो उन्होंने कहा था- 'ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले. फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - 'ठीक है अब चलो'.

फांसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू तीनों मस्ती से गा रहे थे

मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे

मेरा रंग दे बसन्ती चोला

माय रंग दे बसंती चोला

भगत सिंह पर वायरल मैसेज का ये है सच, जानिए 14 फरवरी से रिश्ता

ऐसे थे भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. यह कोई सामान्य दिन नहीं था, बल्कि इसे भारतीय इतिहास में गौरवमयी दिन के रूप में जाना जाता है. अविभाजित भारत की जमीन पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जो शायद इतिहास लिखने के लिए ही पैदा हुआ था. जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के गांव बावली में क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था. भगत सिंह को जब ये समझ में आने लगा कि उनकी आजादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित है तो उन्हें दुख हुआ. वो बार-बार कहा करते थे कि अंग्रजों से आजादी पाने के लिए हमें मांगने की जगह रण करना होगा.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement