
बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने मंगलवार को ऐलान किया कि 2019 के लोकसभा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में वो एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ेगी. शिवसेना के इस फरमान से बीजेपी बेपरवाह है. पार्टी के किसी भी नेता ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जो कि शिवसेना के दम पर सरकार चला रहे हैं, वो भी इससे बेपरवाह दिखे और आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा कि वो शिवसेना से इस तरह की बातों के आदी हो गए हैं .
शिवसेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि मैं कसम खाता हूं कि अपने दम पर देश के सभी राज्यों में चुनाव लड़ेंगे. चाहे जीतें या हारें, लेकिन चुनाव अपने दम पर ही लड़ेंगे. बता दें कि पिछले तीन दशक से बीजेपी और शिवसेना मिलकर कांग्रेस का मुकाबला करती आ रही हैं. दोनों कभी हारे तो कभी कांग्रेस-एनसीपी को हराया भी. लेकिन गठबंधन जस का तस बना रहा. बीजेपी के सहयोगी एक-एक कर उससे दूर होते गए, लेकिन शिवसेना पास ही रही. पर महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना से अलग होकर चुनाव लड़ा. हालांकि चुनाव के बाद दोनों फिल मिलकर सरकार चला रहे हैं लेकिन दोस्ती में जो दरार पड़ी वो जस की तस है.
शिवसेना 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी पर लगातार हमले करती आ रही है. इतना ही नहीं बीजेपी सरकार की नीतियों और पीएम नरेंद्र मोदी पर निजी हमले जितने बड़े शिवसेना ने किए उतने तो विपक्षी दल कांग्रेस ने भी नहीं किए. इसके बावजूद दोनों दलों का गठबंधन बरकरार है. अब जब शिवसेना ने मंगलवार को पार्टी की कार्यकारणी में प्रस्ताव पास करके 2019 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की सभी लोकसभा और सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने और अकेले दम पर 25 लोकसभा सीटें और 150 विधानसभा सीटें जीतने का दावा किया, तो इस बात को लेकर बीजेपी बेपरवाह दिखी.
बीजेपी के साथ रहना शिवसेना की मजबूरी
दरअसल बीजेपी जानती है कि मौजूदा हालात में बीजेपी के संग रहना शिवसेना की मजबूरी है. शिवसेना अगर अलग होती है तो उससे न सिर्फ केंद्र बल्कि राज्य की सत्ता से भी हाथ धोना पड़ेगा. वैचारिक मतभेदों के चलते कांग्रेस के हाथ का साथ भी शिवसेना को नहीं मिल सकेगा.
मुस्लिम मतदाता बीजेपी और शिवसेना दोनों को एक ही तराजू के पल्ले में रखकर देखते हैं. इसी तरह एनसीपी भी शिवसेना के संग नहीं खड़ी होगी क्योंकि मराठा वोट के लिए दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता है. ऐसे में बीजेपी इस बात से बाखूबी वाकिफ है कि शिवसेना के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसीलिए उद्धव की कसम को पार्टी तवज्जो नहीं दे रही.
चाहे देश हो या महाराष्ट्र, बीजेपी अब पहले वाली बीजेपी नहीं रह गई है. देश की सत्ता के साथ-साथ 18 राज्यों में भी बीजेपी की सरकारें हैं. रही बात महाराष्ट्र की तो बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना से अलग होकर अपनी ताकत नाप चुकी है.
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा122 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं शिवसेना के खाते में 63 सीटें आईं. लोकसभा चुनाव दोनों ने साथ लड़ा था तब राज्य की 48 सीटों में से 23 बीजेपी और 18 सीटें शिवसेना ने जीती थीं. अब बीजेपी इस बात को मानकर चल रही है कि शिवसेना लोकसभा में अलग होती है तो वो विधानसभा चुनाव की तरह सभी सीटों पर लड़ेगी और पहले से ज्यादा सीटें उसे मिलेंगी. शिवसेना को तवज्जो न देने के पीछे बीजेपी की यही वजह मानी जा रही है.