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निर्मोही अखाड़ा ने मांगा रामलला की पूजा का हक, कहा-सदियों से कर रहे सेवा

निर्मोही अखाड़ा ने भी ट्रस्ट के स्वरूप पर आपत्ति जताते हुए ट्रस्ट से रामलला की सेवा और पूजा का अधिकार अक्षुण्ण बनाए रखने की गारंटी मांगी है. अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि निर्मोही अखाड़े के वैष्णव बैरागी सदियों से रामलला की सेवा करते रहे हैं.

निर्मोही अखाड़े की पंचायत के महंत दिनेंद्रदास न्यास के सदस्य हैं निर्मोही अखाड़े की पंचायत के महंत दिनेंद्रदास न्यास के सदस्य हैं
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 15 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

  • ट्रस्ट में जाति देखकर सदस्य बनाने पर भी जताई आपत्ति
  • कहा- ट्रस्ट मंदिर-पूजा के लिए होगा, राष्ट्रीय स्मारक के लिए नहीं
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट गठन के ऐलान के बाद से ही हलचल तेज है. कई संगठन ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व न मिलने को लेकर नाराज हैं, तो कई नेता ब्राह्मण और दलित सदस्यों का हवाला देते हुए पिछड़ों को भी सदस्य बनाने की मांग को लेकर. इन सबके बीच अब निर्मोही अखाड़ा ने भी ट्रस्ट के स्वरूप पर आपत्ति जताते हुए ट्रस्ट से रामलला की सेवा और पूजा का अधिकार अक्षुण्ण बनाए रखने की गारंटी मांगी है.

अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि निर्मोही अखाड़े के वैष्णव बैरागी सदियों से रामलला की सेवा करते रहे हैं. इसके लिए वैष्णव बैरागियों ने मुगलों और अंग्रेजों से लड़ाइयां लड़ीं और शहादतें भी दीं. उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़ा 19 फरवरी को होने वाली श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहली बैठक में अपनी बात पुरजोर तरीके से रखेगा.

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अखाड़े के प्रवक्ता ने कहा कि वैष्णव बैरागियों के सेवायत अधिकार और उसके हित को सुरक्षित रखने पर सुप्रीम कोर्ट तक में किसी भी पक्ष को कोई आपत्ति नहीं रही है. उन्होंने कहा कि अखाड़े के संतों को सेवा और पूजा की परंपरा की जानकारी भी है और रामलला को लाड लड़ाने का सेवा भाव भी. निर्मोही अखाड़े की पंचायत के महंत दिनेंद्रदास न्यास के सदस्य हैं, लेकिन अखाड़े का मानना है कि उनके लंबे योगदान और भावना को देखते हुए ट्रस्ट में इस पंचायती अखाड़े के प्रतिनिधि सदस्यों की संख्या भी पांच तक होनी ही चाहिए.

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निर्मोही अखाड़े के संतों का कहना है कि रामलला के मंदिर की सेवा और पूजा अर्चना के विधि विधान रामानंदी परंपरा के अनुरूप ही होने चाहिए. अखाड़े का मत है कि ट्रस्ट में दक्षिण भारत के मठाधीशों की बजाय रामानंदी वैष्णव बैरागियों को शामिल करने पर जोर होना चाहिए था, न कि चिकित्सकों और अन्य क्षेत्रों के लोगों को. ट्रस्ट बनाते समय ये ध्यान रखना जरूरी था कि ये मंदिर और सेवापूजा के लिए होगा, ना कि कोई राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए.

जाति नहीं होना चाहिए आधार

इसके अलावा निर्मोही अखाड़े ने ट्रस्ट में सदस्य बनाते समय जात-पात के आधार पर भी नाराजगी जाहिर की है. अखाड़े ने कहा है कि जाति के आधार पर ट्रस्ट में पिछड़े-अगड़े, दलित आदि को सदस्य बनाने की परिपाटी से बचना चाहिए था. संतों का कहना है- जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान. एक बार रामानंदी वैरागी संन्यासी बनने के बाद वैसे भी दूसरा जन्म होता है. निर्मोही अखाड़े के रुख से यह साफ है कि न्यास की पहली बैठक में चर्चा जोरदार होगी.

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