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राम जन्मभूमि को लेकर जारी संवाद पर संकट! श्री श्री की पहल को लगा झटका

सबसे पहले रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने ही विरोध का बिगुल फूंक दिया. उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि श्री श्री की मध्यस्थता किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं.

श्री श्री रविशंकर श्री श्री रविशंकर
कौशलेन्द्र बिक्रम सिंह/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के सर्वसम्मत निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट की नसीहत थी कि कोर्ट के बाहर इसे सुलटाना सबसे अच्छा रहेगा. कोशिश की जानी चाहिए. बातचीत जारी रहे. इस सलाह के महीनों बाद कोशिश शुरू हुई तो उस पर भी बयानबाजी शुरू हो गई. हैरत है कि ये बयानबाजी उन हिंदू संगठनों की ओर से ही हो रही है जिनकी ओर से हाईप्रोफाइल धर्मगुरू श्री श्री रविशंकर ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया.

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बातचीत आगे भी बढ़े इसलिए शिया वक्फ बोर्ड के वसीम रिजवी से बातचीत हुई. बात आगे बढ़ने के साथ-साथ विवाद भी आगे बढ़ा. हालांकि रिजवी ने श्री श्री रविशंकर के साथ बातचीत में भी बोर्ड का पुराना रवैया ही दोहराया. उनका कहना था कि रामजन्मभूमि पर मंदिर बने और मस्जिद वहां से थोड़ी दूर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में बना दी जाए. इससे सौहार्द भी बना रहेगा और मंदिर-मस्जिद दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर स्थित हो जाएंगे. दोनों ही जगह इबादत की हैं और इबादत होगी.

सबसे पहले रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने ही विरोध का बिगुल फूंक दिया. उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि श्री श्री की मध्यस्थता किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं. वार्ता करनी होगी तो विश्व हिंदू परिषद और रामजन्मभूमि आंदोलन और रामजन्मभूमि न्यास कर लेगा. क्योंकि जिन रास्तों और मुश्किलों से गुजर कर राम जन्मभूमि आंदोलन यहां तक पहुंचा है उसकी रत्ती भर भी जानकारी और अनुभूति श्री श्री रविशंकर को नहीं है. ये आंदोलन और इसे लेकर बातचीत भावनात्मक ज्यादा है.

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दूसरी ओर अखिल भारत हिंदू महासभा में भी श्री श्री रविशंकर के इस कदम को लेकर ऊहापोह और मतभेद जैसी स्थिति दिखी. महासभा के महासचिव मुन्ना शर्मा ने जहां श्री श्री रविशंकर के कदम को राजनीति से प्रेरित बताते हुए उन्हें किसी तरह की मध्यस्थता के अधिकार को खारिज किया वहीं महासभा के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश कौशिक ने श्री श्री रविशंकर को महान आत्मा और उनके इस कदम का स्वागत किया. महासभा पर इन दोनों के अधिकार को खारिज करते हुए स्वामी चक्रपाणि ने कहा कि असली हिंदू महासभा का नेतृत्व तो हमारे पास है, ये लोग तो फर्जी हैं.

कौशिक ने 'आजतक' से खास बातचीत में कहा कि श्री श्री रविशंकर कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं. जो भी राममंदिर निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाएगा हिन्दू महासभा उसका स्वागत करेगी. अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार संसद में कानून पास कर राममंदिर बनवाए.

विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है कि परिषद की पुरानी परंपरा है कि राम काज के लिए संतों की कोशिशों की हम सराहना ही करते हैं. उनकी आलोचना नहीं करते. क्योंकि जिन्होंने राम का काम किया उनको क्या मिला ये दुनिया गवाह है. साथ ही जिन्होंने राम काम में अड़ंगा लगाया. उनकी क्या दशा हुई ये भी दुनिया के सामने है. ऐसे में परिषद का रुख इस बारे में सकारात्मक है. क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले में भी ये साफ है कि जहां रामलला विराजमान हैं वहां सदियों पहले से मंदिर था.

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अदालत ने ये भी साफ कर दिया था कि जहां रामलला विराजमान हैं उस स्थान को मंदिर ही माना जाएगा और उसकी स्थिति जैसे रही है वैसे ही रहेगी. यानी वहां से मंदिर हटाया नहीं जा सकता. फैसले में ये भी कहा गया था कि विवादित ढांचे के मुताबिक वो इस्लामिक नियमों के मुताबिक मस्जिद नहीं थी. क्योंकि विवादित जगह पर नमाज अल्लाह ताला कभी कबूल नहीं करते.

इन्हीं बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट पांच दिसंबर से विचार करेगा. जाहिर है इसमें चाहे जितना समय लगे. परिषद का मानना साफ है कि संसद या फिर संवाद दो ही रास्तों से इस विवाद का समाधान मुमकिन है. दूसरे रास्ते की शुरुआत हो रही है तो मुश्किल क्या है... बर्फ पिघले तो सही... सिलसिला आगे तो बढ़े...

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