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सूखे और प्यास के बीच अंधविश्वास की एक तस्वीर

यूपी के बुंदेलखंड में मान्यताओं और परपंराओं के नाम पर अपने जिस्म को नुकीले सरियों से छिदवा कर देवी मां को खुश करने की रवायत हर साल नवरात्रि की नवमी पर निभाई जाती है.

परंपरा के नाम पर खतरों से खेलते लोग परंपरा के नाम पर खतरों से खेलते लोग
सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 19 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 3:10 AM IST

बेशक कहर आसमानी है, मगर लापरवाही जमीन पर रहने वालों की भी है. आसमान का थोड़ा सा गर्म होना या बादलों का जरा सा मुंह मोड़ लेना कैसे जमीन को प्यासा कर देती है, इसका गवाह इस वक्त हिंदुस्तान के ना मालूम कितने ही इलाके हैं. इस सूखे और प्यास के बीच से अंधविश्वास की ऐसी तस्वीरें बाहर आएंगी, ये देख कर भी यकीन नहीं होता.

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एक परंपरा ऐसी भी...
यूपी के बुंदेलखंड में मान्यताओं और परपंराओं के नाम पर अपने जिस्म को नुकीले सरियों से छिदवा कर देवी मां को खुश करने की रवायत हर साल नवरात्रि की नवमी पर निभाई जाती है. चैत्र नवरात्रि की नवमी पर हर साल एक मेले का आयोजन होता है.

पैदल तय करते हैं मंदिर का सफर
मेले में जहां दूर-दराज से हजारों महिलाएं अपने सिर पर ज्वार की बालियां लिए पहुंचती हैं, वहीं मर्द अपने जिस्म पर सांग धारण कर देवी मां को खुश करने का जतन करते हैं. इसमें त्रिशूल की तरह दिखनेवाले अस्त्र यानी सांग से श्रद्धालु अपने जिस्म के हिस्सों को छिदवा कर पैदल ही सांग को पकड़े हुए मंदिर तक का सफर पूरा करते हैं.

खतरनाक है ऐसे चलना
सांग बेहद भारी और नुकीला होता है, इसे जिस्म में लगा कर पैदल चलना अपने-आप में बेहद खतरनाक है क्योंकि सांग में दूसरे छोर पर हुई मामूली सी हरकत भी घाव बड़ा कर सकती है और श्रद्धालु को बुरी तरह जख्मी कर सकती है.

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होता है चमत्कार!
स्थानीय लोगों की मानें, तो ये देवी मां का चमत्कार ही है कि यहां सांग छिदवाने से खून निकलना तो दूर, इसे निकालने के बाद घाव का दाग तक नहीं बचता और कई बार तो एक ही श्रद्धालु अपने जिस्म में एक या दो नहीं बल्कि पांच-पांच सांग तक छिदवा लेता है.

...तो नहीं होगी बारिश
जिस तरह से सूखे की वजह से सांग छिदवाने के चलन में तेजी आई है, वो अपने आप में एक बड़ी विंडबना है क्योंकि यहां लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने इसका पालन नहीं किया, तो बदले में बारिश नहीं होगी.

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