
मुस्लिम महिला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. जस्टिस अनिल आर. दवे और एके गोयल ने वरिष्ठ वकील अमित सिंह और बालाजी श्रीनिवासन की दलीलें सुनने के बाद नोटिस जारी किया.
शायरा बानो नाम की महिला ने याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ के इन प्रावधानों को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया है. महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति ने शादी के बाद साथ रहने के दौरान उसके साथ बदसलूकी की और बाद में उसे तलाक दे दिया. इसके खिलाफ उसने याचिका दायर कर एक सम्मानजनक जिंदगी जीने, धर्म और जेंडर के आधार पर भेदभाव मिटाने की गुहार लगाई है.
'भारतीय संविधान के खिलाफ है ये नियम'
महिला ने याचिका में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आने वाले तलाक-ए-बिदात (ट्रिपल तलाक के जरिए रिश्ता तोड़ना), निकाह हलाला (तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने पर रोक) और बहुविवाह प्रथा गैरकानूनी हैं और भारतीय संविधान के खिलाफ हैं.
मामले की सुनवाई के दौरान कहा गया कि कोर्ट ने पहले ही इस बात पर गौर किया है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को मिटाने की जरूरत है, साथ ही कानून को बदलने की जरूरत पर भी जोर दिया गया था.
'मूल अधिकारों से जुड़ा है ये मामला'
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह न सिर्फ पॉलिशी का मामला है, बल्कि मूल अधिकारों से जुड़ा मामला भी है. कई बार पति मनमाने तरीके से तलाक लेने या पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करने जैसे कदम उठाते हैं और ऐसे मामले में मुस्लिम महिलाएं भेदभाव का शिकार हो जाती हैं.