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SC का आदेश- कब्र से निकालो शब्बीर अहमद मीर का शव और करो पोस्टमार्टम

पुलिस के मुताबिक, शब्बीर की मौत पैलेट गन से हुई थी, जबकि उसके पिता का दावा है कि शब्बीर की गोली मारकर हत्या की गई.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कश्मीरी युवक शब्बीर अहमद मीर के शव को कब्र से निकालकर पोस्टमार्टम करने के आदेश दिए हैं. बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान शब्बीर की मौत हो गई थी. कोर्ट ने पोस्टमार्टम के साथ ही फोरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं ताकि उसकी मौत की वजह का पता लगाया जा सके.

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पुलिस के मुताबिक, शब्बीर की मौत पैलेट गन से हुई थी, जबकि उसके पिता का दावा है कि शब्बीर की गोली मारकर हत्या की गई. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान टिपण्णी भी की कि प्यार और दुलार से सब कुछ संभव है.

मजिस्ट्रेट अदालत ने दिया केस दर्ज करने का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर सरकार ने याचिका दायर कर हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. मजिस्ट्रेट अदालत ने शब्बीर की मौत की जांच के साथ-साथ एक डीएसपी और कुछ और पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था.

'राज्य को जाना चाहिए कड़ा संदेश'
मजिस्ट्रेट कोर्ट में शब्बीर के पिता ने अर्जी लगाकर उसकी मौत की जांच और पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. पीड़ित की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य को कड़ा संदेश जाना चाहिए और यह पोस्टमार्टम से ही पता चलेगा कि शब्बीर की मौत गोली लगने से हुई या पैलेट से.

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सेशन जज की देखरेख में होगा पोस्टमार्टम
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, श्रीनगर के प्रिंसिपल सेशन जज की देखरेख में पोस्टमार्टम करवाया जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि सेशन जज के सुझाव पर डॉक्टरों का पैनल पोस्टमार्टम करेगा. कोर्ट ने तीन हफ्ते में पोस्टमार्टम रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही पुलिस अफसरों के खिलाफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत के आदेश पर एफआईआर दर्ज करने के फैसले पर रोक लगाई हुई है. कोर्ट ने सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने पर भी रोक लगाई है और पुलिसवालों को गिरफ्तारी न करने के आदेश दिए थे. सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा था कि ऐसे मामलों में मानवता का भी खयाल रखा जाना चाहिए.

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