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माल्या को SC ने सुनाई खरी खोटी, जस्टिस नरीमन ने खुद को सुनवाई से किया अलग

भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खूब खरी खोटी सुनाई. विजय माल्या से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने अब तक एक पैसा भी वापस नहीं किया है.

भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या (फाइल फोटो-PTI) भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या (फाइल फोटो-PTI)
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 20 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

  • विजय माल्या की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
  • जस्टिस नरीमन ने खुद को सुनवाई से किया अलग

भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खूब खरी खोटी सुनाई. विजय माल्या से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने अब तक एक पैसा भी वापस नहीं किया है. इस मामले में जस्टिस आरएफ नरीमन ने खुद को सुनवाई अलग कर लिया है.

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दरअसल, 12 बैंकों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त की गई विजय माल्या की संपत्ति बैंकों को देने की गुहार लगाई है. विजय माल्या ने इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है.

इससे पहले प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के स्पेशल कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और कई अन्य बैंकों को विजय माल्या की जब्त संपत्ति को बेचकर कर्ज वसूली करने की इजाजत दी थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कहा था कि उसे इस वसूली में कोई आपत्ति नहीं है.

माल्या के वकीलों ने आपत्ति की थी कि यह केवल डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल ही तय कर सकता है. हालांकि, स्पेशल पीएमएलए कोर्ट ने इस निर्णय पर 18 जनवरी तक स्टे लगाया था जिससे माल्या इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील कर सकें.

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ब्रिटेन में भी चल रहा माल्या पर मुकदमा

 बैंकों के करीब 9 हजार करोड़ रुपये के लोन न चुकाने, जालसाजी और मनी लॉन्ड्र‍िंग के मामले में ब्रिटेन में माल्या मुकदमे का सामना कर रहा है. गौरतलब है कि दिसंबर महीने में विजय माल्या मामले में लंदन कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट जनवरी में विजय माल्या पर फैसला सुना सकता है.

भारतीय कानूनों पर भी होगा गौर

वहीं, विजय माल्या पर दायर दिवालिया घोषित होने की याचिका खारिज भी हो सकती है या यह याचिका रद्द की जा सकती है या जब तक भारतीय सुप्रीम कोर्ट में माल्या के सेटेलमेंट ऑफर पर सहमति नहीं बन जाती तब तक यह याचिका स्थगित भी की जा सकती है. इस मामले में यूके कोर्ट भारतीय नियमों की प्रासंगिकता पर विचार कर सकता है.

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