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देश में अपनी कोख किराए पर देने वाली माताओं और किराए पर कोख के माध्यम से पैदा हुए बच्चों के हितों की रक्षा के लिए कानून बनाने के संबंध में लोकसभा में एक महत्वपूर्ण गैर सरकारी विधेयक पेश किया गया है.
बीजेडी के वरिष्ठ सदस्य भृतुहरि मेहताब द्वारा पेश किए गए ‘किराए की कोख (विनियमन) विधेयक 2014’ के कारणों और उद्देश्यों में कहा गया है कि देश में किराए पर कोख देने वाली माताओं और किराए पर कोख के माध्यम से पैदा हुए बच्चों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी उपबंध करना जरूरी है.
विधेयक के कारणों और उद्देश्यों में बताया गया है कि भारत में यह प्रक्रिया कम खर्चीली होने के कारण यह किराए पर कोख देने संबंधी सेवाओं के केंद्र में लगातार उभर रहा है. इससे जहां किराए पर कोख देने संबंधी तकनीकों से बहुत से निराश दंपतियों के जीवन में खुशी आई है, वहीं इसके अत्याधिक दुरुपयोग और इसमें शामिल विभिन्न नैतिक मुद्दों के कारण इसकी आलोचना भी हो रही है.
इसमें कहा गया है कि महत्वपूर्ण लिंग चयन और सामान्य गर्भ धारण वाले मामलों में भी इसका उपयोग किए जाने जैसी समस्याएं आ रही हैं. किराये पर कोख देने की प्रथा को विनियमित करने के लिए किसी भी विधायी ढांचे के अभाव ने किराये की कोख देने संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है.
कारणों और उद्देश्यों में आगे कहा गया है कि इसके अलावा भी कई सारी समस्याएं हैं जिनका समाधान किया जाना जरूरी है. जैसे, किराये पर कोख देने में विदेशी नागरिकों के शामिल होने की सूरत में बच्चों की नागरिकता, विवाह विच्छेद या किराये पर कोख देने का कार्य सौंपने वाले माता पिता की मृत्यु की स्थिति में किराये की कोख से पैदा हुए बच्चे का भविष्य, किराए पर कोख देने वाली माता के अधिकार और अन्य समस्याएं शामिल हैं.
विधेयक के जरिए उन शर्तों को निर्धारित करना है, जिनके तहत किराए पर कोख ली जा सकती है. इसमें किराये पर कोख देने का अनिवार्य पंजीकरण का उपबंध भी शामिल है. साथ ही किराए पर कोख देने में लिंग चयन को अपराध बनाना है.
विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किराये की कोख देने का कार्य सौंपने वाले माता पिता अपने विवाह विच्छेद, मृत्यु या किसी भी कारण से बच्चे को अपनी देखरेख में लेने में असमर्थ या विफल रहते हैं, तो पहले से ही एक वैकल्पिक अभिभावक नियुक्त किया जाए जो बच्चे की देखरेख की जिम्मेदारी ले.
साथ ही इसमें कहा गया है कि भारत में किराये पर कोख देने के माध्यम से पैदा हुए शिशु को देश में जैविक शिशु के रूप में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी.
इसमें कहा गया है कि यदि किराये पर कोख देने का कार्य सौंपने वाले माता पिता ऐसे बच्चे में किसी भी जन्मजात विकृति या रोग के कारण बच्चे को लेने से इंकार करते हैं, तो उन्हें साधारण कारावास (जो दो वर्ष से कम नहीं होगा) या पचास हजार रूपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा.
- इनपुट भाषा से