
तिरंगे में लिपटा स्मार्टफोन, वह भी मेड इन चाईना. जी हां, पहली नजर में जिस 'फ्रीडम 251' मोबाइल फोन ने सबसे सस्ते स्मार्टफोन के बाजार में क्रांति ला दी है, उसको लेकर सस्पेंस भी कम नहीं हैं. मसलन, फोन बुकिंग के चार महीने बाद ही लोगों के हाथ में आएगा. लेकिन जिन खूबियों और सुविधाओं के साथ यह फोन लॉन्च किया गया, उसकी कीमत अचरच ही नहीं, घोर अचरज पैदा करती है.
दरअसल, फोन में जो खूबियां हैं वह आमतौर पर चार हजार रुपये के स्मार्टफोन में ही मिलती है. लेकिन महज 251 रुपये के इस फोन का राज क्या है, इसको लेकर तकनीकी विशेषज्ञ से लेकर उपभोक्ता तक हर कोई हैरत में है. लेकिन जरा ठहरिए, क्योंकि सस्पेंस और सवालों के बीच जिस एडकॉम कंपनी ने इसे बनाया है, उसके नाम को फोन पर ही छिपा दिया गया है.
यकीनन यह हैरत में डालने वाली बात है, लेकिन सच है कि फोन को किसने बनाया है, इसे ही छिपा दिया गया है. यहां तक कि पत्रकारों को रिव्यू करने के लिए जो फोन बांटे गए, उन पर भी स्टिकर लगाकर दिया गया. कथित तौर पर जिस चीनी कंपनी एडकॉम का नाम इसे बनाने को लेकर लिया जा रहा है, उसी के मार्केटिंग मैनेजर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने इस फोन को नहीं बनाया और वो खुद इसकी जांच कर रहे हैं कि उनके नाम का इस्तेमाल कैसे हुआ.
नहीं है कोई मैनुफैक्चरिंग यूनिट
दूसरा सस्पेंस यह कि एडकॉम नाम की एक भारतीय कंपनी भी 2013 में सामने आई थी. उसका पूरा नाम एडवांटेज कंप्यूटर्स इंडिया प्राइवेट लिमटेड यानी एडकॉम ही था और इसने 2013 में एडकॉम थंडर स्मार्टफोन लॉन्च किया था. लेकिन अब सस्पेंस यही है कि फिलहाल रिंगिंग बेल्स की कोई मैनुफैक्चरिंग यूनिट है नहीं. तो ऐसे में सवाल ये भी है कि फोन चाहे बनाया किसी ने भी हो, लेकिन यह लगभग तय है कि इसमें चीनी माल लगा है.
कहीं कोई सब्सिडी तो नहीं?
अगला सवाल 'मेड इन चाइना' के माल को भारतीय तिरंगे के आवरण में लपेटकर बेचने की जरूरत पर है. क्योंकि अगर यह चीन का माल है तो इसे उसी के नाम से बेचा क्यों नहीं गया. आखिर किसे और क्यों इसे तिरंगे के रंगने की जरूरत पड़ी और अगर इसे भारत में ही बनाया जाएगा तो इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन का मानना है कि जब प्रोडक्ट पर सीधे कोई सब्सिडी नहीं मिली है, तो यह इतने कम रेट पर कोई फोन बेच ही नहीं सकता.
क्या वाकई हाथ में आएगा फोन?
सेल्यूलर एसोशियसन तो यहा तक कह रहा है कि यदि ऐसे फोन को ई-कॉमर्स या किसी तरह की सब्सिडाइज्ड सेल पर बेचा जाता है तो भी इसकी कीमत 3,500 से 3800 रुपये आती है. फिर सवाल यह भी है कि 251 रुपये में फोन बेचने वाली कंपनी अभी फोन बुक कर जरूर रही है, लेकिन क्या वो ग्राहकों को वास्तव में फोन मुहैया करा पाएगी.
गुरुवार को ही 'फ्रीडम 251' की ऑनलाइन बिक्री शुरू हुई. साइट पर बिक्री शुरू हुई तो हर सेकेंड छह लाख ऑर्डर भी आए और इससे शुरुआती घंटों में ही साइट क्रैश भी हो गई. अगला सवाल यह कि इतने ऑर्डर की भरपाई कैसे होगी, वो भी तब जब कंपनी की कोई मैनुफैक्चरिंग यूनिट है ही नहीं.
क्या सरकार से है कोई कनेक्शन?
ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या भारत सरकार रिंगिंग बेल्स को मदद कर रही है, क्योंकि बुधवार को नोएडा में जब फोन की लॉन्चिंग हुई तो मुरली मनोहर जोशी समेत कई नेता मौजूद थे. लेकिन सवाल मदद का नहीं, क्वालिटी और डिलिवरी का भी है. बात तब और गंभीर हो जाती है जब मामला सीधे तौर पर तिरेंगे की शान का हो, जिसे फोन के बैककवर पर लगाकर भारतीय होने की दुहाई दी जा रही है और 'मेक इन इंडिया' का नारा बुलंद हो रहा है.