
तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए 7 दिसंबर को वोटिंग होनी है. इस दक्षिणी राज्य के वोटरों पर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख और मौजूदा मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है. केसीआर जीत की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन साझा विपक्ष ‘महाकुटमी’ की चुनौती को कम करके आंकना भी सही नहीं है. पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज (PSE) के निष्कर्षों के मुताबिक 48% वोटर मौजूदा टीआरएस सरकार को ही एक और कार्यकाल देने के पक्ष में हैं. वहीं 38% वोटरों ने राय जताई है कि राज्य में सरकार बदली जानी चाहिए. सर्वे में 14% वोटर अपनी कोई स्पष्ट राय नहीं जता सके.
टीआरएस सरकार को एक और कार्यकाल का मौका देने का समर्थन करने वाले वोटरों की संख्या में एक महीने में 4% का इजाफा हुआ है. बीते महीने जहां टीआरएस सरकार के साथ 44% वोटर खड़े थे, अब 48% वोटर उसके साथ नजर आ रहे हैं. दिलचस्प ये है कि एक महीने में सरकार में बदलाव की हिमायत करने वालों की संख्या में भी 4% बढ़ोतरी हुई है. एक महीने में ये आंकड़ा 34% से बढ़कर 38% हो गया है. जो वोटर अपनी स्पष्ट राय नहीं जता पा रहे थे उनकी संख्या एक महीने में 22% से घटकर 14% रह गई.
तेलंगाना राष्ट्र समिति प्रमुख केसीआर ने 6 सितंबर को विधानसभा भंग करने की सिफारिश की थी. केसीआर की लोकप्रियता का ग्राफ ऊंचा होने के बावजूद ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन राज्य में वोटिंग के ट्रेंड पर असर डालेगा या नहीं.
केसीआर का विधानसभा को भंग करने और समय से पहले चुनाव कराने के फैसले को मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा था. हालांकि उनकी राह को मुश्किल मनाने के लिए अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस और टीडीपी ने हाथ मिलाकर महागठबंधन बनाया और गेम चेंजर होने का दावा किया. इस गठबंधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और नई बनी पार्टी तेलंगाना जन समिति भी शामिल हो गई.
इन चार पार्टियों के हाथ मिलाने से राज्य में विपक्ष की दावेदारी को मजबूती मिली है. सर्वे के मुताबिक कांग्रेस की दक्षिण तेलंगाना के जिलों में अच्छी पकड़ बताई जा रही है. वहीं तेलगू देशम को खम्मम और रंगारेड्डी में मजबूत माना जा रहा है. इस महागठबंधन के लिए पिछड़ी जातियों के वोट निर्णायक होंगे. अगर महाकुटमी को तेलंगाना चुनाव में कामयाबी मिलती है तो इसका 2019 लोकसभा चुनाव पर भी गहरा असर हो सकता है.
तेलंगाना राज्य के गठन के लिए केसीआर ने अहम भूमिका निभाई थी. तेलंगाना राज्य 2014 में वजूद में आया और केसीआर राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. PSE सर्वे से सामने आया कि मुख्यमंत्री केसीआर अब भी टीआरएस की सबसे बड़ी मजबूती बने हुए हैं. पिछले PSE में करीब आधे वोटरों ने केसीआर को ही राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने के पक्ष में राय जताई. इसके अलावा टीआरएस सरकार के मौजूदा कार्यकाल में शुरू की गईं रायथु बंधु और रायथु बीमा योजनाओं से कई परिवारों को लाभ मिला. इसे टीआरएस सरकार की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.
टीआरएस को उत्तर तेलंगाना और हैदराबाद के स्लम इलाकों में मजबूत माना जा रहा है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलीमीन (AIMIM) हैदराबाद से बाहर कुछ मुस्लिम प्रभाव वाले इलाकों में टीआरएस का समर्थन करेगी. तेलंगाना में सत्ता विरोधी रुझान (एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर) बहुत कम कारगर होता दिखाई दे रहा है.
बीजेपी तेलंगाना में सभी 119 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बीजेपी का दारोमदार ग्रेटर हैदराबाद समेत शहरी इलाकों के वोटरों के समर्थन पर टिका है. बता दें कि टीआरएस ने राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में एनडीए का साथ दिया था जबकि ये पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं थी. बीजेपी के लिए तेलंगाना में विन-विन वाली स्थिति है. बीजेपी दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ किसी राज्य में भी अभी तक सत्ता में नहीं रही है.
जहां तक AIMIM का सवाल है तो मुस्लिम आबादी को ओवैसी की पार्टी का वोट बैंक तो माना जाता है लेकिन इस पार्टी के साथ दिक्कत यही है कि इसका सिर्फ 7 विधानसभा सीटों पर ही प्रभाव माना जाता है. ओवैसी की पार्टी ने इस बार आठवीं विधानसभा सीट राजेंद्रनगर से भी अपना उम्मीदवार उतारा है. ये सर्वे तेलंगाना के 17 संसदीय क्षेत्रों में लिए गए टेलीफोन साक्षात्कारों पर आधारित है. इसमें 6,877 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.