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14 फरवरी 2014 को पहली बार दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने 49 दिनों की सत्ता को त्यागा था. ठीक एक साल बाद 14 फरवरी 2015 को रामलीला मैदान में अरविंद केजरीवाल ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और सरकार बनाई. लेकिन इस बार की सरकार पिछली 49 दिनों की सरकार से भिन्न थी. ना 'आप' को अब कांग्रेस की बैसाखी की जरूरत थी और ना ही हर फैसले के लिए जनमत की आवश्यकता रह गई थी क्योंकि जीत 70 में से 67 सीटों पर मिली थी, यानी जनता पूरी तरह से 'आप' पर न्योछावर. अब एक बार फिर 14 फरवरी, लेकिन इस बार छोड़ने की मजबूरी नहीं बल्कि AAP सरकार की पहली सालगिरह मनाई जा रही है.
वादे, विवाद और केजरीवाल सरकार
केजरीवाल सरकार 2014 में बनी मोदी सरकार की तरह एक लोकप्रिय सरकार के रूप में उभरी. बड़े-बड़े सपने दिखाकर सत्ता में आई 'आप' से जनता की उम्मीदें बंध गईं. अब एक साल पूरे होने पर सरकार का आकलन किया जा रहा है. कामकाज का हिसाब मांगा जा रहा है और वादों की लिस्ट फिर से चेक की जा रही है. इस सबके बीच दिल्ली सरकार मीडिया की सुर्खियों में खूब छाई रही, ये काम को लेकर कम बल्कि विवादों की वजह से ज्यादा था. संगठन में कलह हो, केंद्र सरकार से टकराव, उपराज्यपाल से तीखे रिश्ते या दिल्ली पुलिस से छत्तीस का आंकड़ा पूरे साल इन विवादों ने सरकार को न्यूज चैनलों पर और अखबार के फ्रंट पेज पर जीवित रखा.
'आप' सरकार के एक साल पूरे होने पर बात इसी सरकार से जुड़े 10 विवादों की.
1- योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकाला
सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही पार्टी के अंदरुनी मसले बाहर आने लगे. परिणाम ये हुआ कि एक समय संगठन की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाने वाले योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. दोनों ने पार्टी पर नीतियों से भटकने के आरोप लगाए थे.
2- मंत्री की फर्जी डिग्री पर बवाल
दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जीतेंद्र तोमर की फर्जी डिग्री उन्हें जेल की सलाखों के पीछे तक ले गई. यहां तक की उनकी कानून की डिग्री ही फर्जी नहीं बल्कि बीएससी की डिग्री भी नकली निकली.
3- 'आप' की रैली में किसान की आत्महत्या
किसानों को मुआवजा देने के मुद्दे पर जंतर-मंतर पर हो रही रैली में राजस्थान के किसान गजेंद्र ने आत्महत्या कर ली. जिस वक्त गजेंद्र दम तोड़ रहा था उस वक्त अरविंद केजरीवाल भाषण दे रहे थे. इस पर सरकार की जमकर आलोचना हुई और विरोधियों ने भी खूब कोसा.
4- भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री को हटाया
केजरीवाल ने जब आसिम को मंत्री बनाया तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वो पार्टी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाएंगे. आसिम पर बिल्डर से रिश्वत मांगने का आरोप लगा. इस बार पार्टी ने मामला सामने आने से पहले ही गड़बड़ी का खुलासा कर आसिम को मंत्री पद से हटा दिया. साथ ही कोंडली से विधायक मनोज कुमार की वजह से भी केजरीवाल और पार्टी के दामन पर दाग लगे. मनोज कुमार को जमीन की खरीद में हेराफेरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
5- केंद्र सरकार से टकराव
दिल्ली में सरकार बनने के साथ ही केजरीवाल की केंद्र से ठन गई. दोनों बात-बात पर आमने-सामने होने लगे. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार दिल्ली सरकार का एंटी करप्शन ब्यूरो था. लेकिन एसीबी के मुखिया के नाम पर भी एलजी नजीब जंग और केजरीवाल में ठन गई. एक अरसे तक तो यही साफ नहीं हुआ कि एसीबी के चीफ हैं कौन. सरकार से नियुक्त एसएस यादव या फिर एलजी के बनाए मुकेश मीणा. साथ ही एलजी ने इस दौरान ऊर्जा सचिव शंकुतला गैमलीन को कार्यकारी मुख्य सचिव बना दिया. सरकार ने असहमति जताई और केजरीवाल ने खुलेआम गैमलीन पर कई आरोप मढ़ दिए.
यही नहीं गैमलिन की नियुक्ति का पत्र निकालने वाले अनिंदो मजूमदार के दफ्तर पर ताला जड़ दिया गया. बवाल इतना बढ़ा कि केन्द्र और केजरीवाल की जंग में नौकरशाहों के पसीने छूटने लगे. उधर सरकार का आरोप था कि एलजी के बहाने केंद्र सरकार दिल्ली को हथियाना चाहती है.
6- MCD कर्मचारियों की तनख्वाह पर हंगामा
दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच कूड़े पर राजनीति शुरू हुई तो पूरी दिल्ली ही कूड़ा-कूड़ा हो गई. एक साल के अंदर एमसीडी के सफाईकर्मियों ने दो बार हड़ताल की. दोनों बार एमसीडी कर्मचारियों की सैलरी के मुद्दे पर फंड को लेकर सरकार और एमसीडी में ठनी.
7- विज्ञापनों के खर्च पर बवाल
विज्ञापनों के माध्यम से दिल्ली सरकार ने अपने काम के बखान के साथ-साथ मोदी सरकार पर भी खूब हमला किया. ऐसे में सरकार पर विज्ञापन में बेहताशा खर्च और नियमों के उल्लंघन के खूब आरोप लगे.
8- जनलोकपाल पर असहमति
एक मजबूत जनलोकपाल की मांग ने ही दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था. इसी मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने 49 दिनों में सत्ता छोड़ दी थी. लेकिन दूसरी बार जब अरविंद सत्ता में आए तो जनलोकपाल बिल पर सरकार की खामोशी बवाल का कारण बनती रही. बाद में जनलोकपाल बिल पास जरूर हुआ लेकिन केजरीवाल के पुराने साथी और विरोधी एक साथ सरकार पर बिफर पड़े. योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने बिल को जनता के साथ धोखा बताया.
10- विधायकों की सैलरी में 400 फीसदी बढ़ोतरी
बंगला, गाड़ी और वीआईपी कल्चर के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करने वाले केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आकर वहीं सब किया जो तमाम दूसरी सरकारें और नेता करते रहे हैं. सैलरी न मिलने से एमसीडी कर्मचारी हड़ताल करते रहे, अस्थाई कर्मचारियों की नौकरी पक्की नहीं हुई, लेकिन विधायकों की सैलरी 400 फीसदी बढ़ गई.