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कौन सा मजहब सिखा रहा...बेगुनाह बच्चों को मारना?

कभी खान अब्दुल गफ्फार खान की सरजमीं रहे पेशावर की गली-गली में आज एके-47 की आवाज गूंजती है. आर्मी स्कूल में मासूमों पर बरसे आतंकियों के कहर के बाद इस बार बाचा खान यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया गया.

टेरर कैपिटल ऑफ पाकिस्तान बनता पेशावर टेरर कैपिटल ऑफ पाकिस्तान बनता पेशावर
सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 4:45 PM IST

पहले पेशावर के आर्मी स्कूल और अब पेशावर के बाचा खान यूनिवर्सिटी में गोलियां बरसा कर कायर आतंकवादियों ने यह साबित कर दिया कि वो बच्चों से लड़ता है और बच्चों से डरता है.

बढ़ाई गई थी सुरक्षा
16 दिसंबर 2014 को जब पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में आतंकवादी हमला हुआ था, तभी से इस यूनिवर्सिटी की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई थी. पूरे कैंपस को ऊंची दीवार और कंटीली तारों से घेर दिया गया था.

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सुबह घुसे चार आतंकी
20 जनवरी की सुबह चार आतंकवादी यूनिवर्सिटी के पिछले हिस्से में पहुंचे और इस जगह की दीवार से कैंपस में दाखिल होने के बाद सबसे पहले आतंकवादियों ने होस्टल का रुख किया और अंधाधुंध गोलियां चलाईं.

गोलीबारी करते हुए होस्टल के बाद वे एडमिन ब्लॉक की तरफ बढ़ें. एडमिन ब्लाक से होते हुए आतंकवादियों का इरादा मेन हॉल तक पहंचने का था, जहां एग्जाम चल रहा था और जहां उस वक्त सबसे ज्यादा बच्चे एक साथ इकट्ठा थे.

आतंकियों को मार गिराया
तब तक गोलीबारी की आवाज सुन कर सुरक्षा दस्ता चौंकन्ना हो गया. इसके बाद आतंकवादियों से मुठभेड़ शुरू हो गई. दो आतंकवादियों को मौके पर ही मार गिराया गया. बाकी दो को छत पर घेर कर मारा गया.

जिम्मेदार तहरीक-ए-तालिबान
पेशावर में साल भर पहले स्कूल में हुए हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान ने ली थी, इस बार बाचा खान कॉलेज पर हुए हमले की जिम्मेदारी भी उसी ने ली है. कभी खान अब्दुल गफ्फार खान की सरजमीं रहे पेशावर की गली-गली में आज एके-47 की आवाज गूंजती है.

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अहिंसा की बात करने वाला शहर
कभी अहिंसा की बात करने वाले शहर यानी पेशावर के पठानों ने बंदूक की जुबां, तब बोलनी शुरू की, जब अफगानिस्तान से रूसियों को खदेड़ने के लिए तालिबान का जन्म हुआ.

स्कूलों में बंदूक थामे तालिबानी
उस वक्त किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पेशावर से कभी मुजाहिद्दीन हाथों में बंदूक थाम कर रूसी फौजों से लड़ने निकलते थे. उसी पेशावर की तीसरी पीढ़ी को खत्म करने के लिए हाथों में बंदूक थामे तालिबानी स्कूलों में दस्तक देगें.

टेरर कैपिटल ऑफ पाकिस्तान
आज सच्चाई यह है कि सीमांत गांधी की अहिंसा की सरजमीं अब टेरर कैपिटल ऑफ पाकिस्तान बनती जा रही है. आतंक की लड़ाई और मासूमों के कत्ल की कहानी न जाने कब खत्म होगी और न जाने कब दरवाजे पर खड़े इस शहर को शांति मिलेगी.

 

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