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14 साल के छात्र ने साइन की 5 करोड़ की डील, जानें क्या है खास

अगर हौसलों में उड़ान भरने का जज्बा हो तो कोई भी आपको नहीं रोक सकता. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है हर्षवर्धन जाला. इस 14 साल के छात्र ने एक ड्रोन का डिजाइन किया है, जिसके प्रॉडक्शन के लिए सरकार ने हर्षवर्धन के 5 करोड़ रुपये की डील की है...

हर्षवर्धन जाला हर्षवर्धन जाला
गोपी घांघर
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 11:56 AM IST

वाइब्रेंट गुजरात समिट में 14 साल के एक लड़के ने अपने बनाए ड्रोन के लिए पांच करोड़ की डील पर साइन किया है. हर्षवर्धन जाला ने एक ऐसा बनाया है जिससे युद्ध के मैदान में लगे बारूदी सुरंग का पता लगाया जा सकेगा और फिर ड्रोन की मदद से उसे निष्क्रिय भी किसा जा सकेगा.

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एरोबैटिक्स 7 के मालिक हैं हर्षवर्धन
हर्षवर्धन के पिता अकाउंटेंट हैं और मां निशाबा जाला गृहिणी हैं. फिलहाल इस 14 साल के छात्र ने अपनी खुद की कंपनी खड़ी की है जिसका नाम है - एरोबैटिक्स 7 जिसकी और गैजेट बनाने की योजना है.

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ड्रोन का नाम 'ईगल'
ईगल नामक इस ड्रोन में मकैनिकल शटर वाला 21 मेगापिक्सल के कैमरे के साथ इंफ्रारेड, आरजीबी सेंसर और थर्मल मीटर लगा है. कैमरा हाई रिजॉलूशन की तस्वीरें भी ले सकता है. ड्रोन जमीन से दो फीट ऊपर उड़ते हुए आठ वर्ग मीटर क्षेत्र में तरंगें भेजेगा. ये तरंगें लैंड माइंस का पता लगाएंगी और बेस स्टेशन को उनका स्थान बताएंगी. ड्रोन लैंडमाइन को तबाह करने के लिए 50 ग्राम वजन का बम भी अपने साथ ढो सकता है.

हर्षवर्धन ने किए MoU पर हस्ताक्षर
अहमदाबाद में हुए वायब्रेंट गुजरात समिट में हर्षवर्धन ने MoU पर हस्ताक्षर किए हैं. हर्षवर्धन का कहना है कि मैंने पहले तो बारूदी सुरंग का पता लगाने के लिए एक रोबोट बनाया था लेकिन मुझे लगा कि उसका वजन ज्यादा होने की वजह से वो ब्लास्ट को ट्रिगर कर सकता है. इसलिए मैंने ड्रोन के बारे में सोचा जो एक उचित दूरी पर रहकर भी सुरंग का पता लगा पाएगा. स्टेट गवर्नमेंट ने हर्ष के फायनल प्रोटोटाइप के आधे हिस्से को वित्त सहायता भी दी है.

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गुजरात सरकार प्रोजेक्ट में करेगी मदद
गुजरात काउंसिल ऑन साइंस एंड टैक्नॉलॉजी (GUJCOST) के प्रमुख डॉ नरोत्तम साहू का कहना है कि हर्षवर्धन के साथ MoU साइन हो गया है और आने वाले दिनों में गुजरात सरकार उनके साथ इस प्रोजेक्ट पर काम करेगी.

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लागत पर हो रहा है विचार
ड्रोन की लागत पर बात करते हुए हर्ष ने दावा किया कि फायनल प्रोटोटाइप की लागत करीब 3.2 लाख थी और उसमें और सुधार किये जाएंगे तो लागत बढ़ जाएगी. लेकिन इसके बावजूद यह सेना में फिलहाल जो सिस्टम काम कर रहा है, उससे सस्ता ही होगा.

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