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सपा और कांग्रेस के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाने के बाद अब यूपी में लड़ाई के त्रिकोणीय होने की उम्मीद है. अभी तक असल लड़ाई में सपा, बीएसपी, बीजेपी और कांग्रेस थी. अब नए सियासी समीकरण में वोटर के सामने मुख्य रूप से तीन विकल्प होंगे सपा कांग्रेस गठबंधन, बीएसपी और बीजेपी. लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर कविराज भी इस बात की तस्दीक करते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में उन्होंने विस्तृत रूप से अपने विचार साझा किए...
चुनाव पूर्व गठबंधन करना समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी हो गया था. ऐसा नहीं है कि 27 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस के लिए दोबारा खड़ा होने के लिए किसी सहारे की जरूरत थी बल्कि इस बार बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए सपा को भी ठोस आधार की जरूरत थी.
परिवार के झगड़े में हुआ सपा का नुकसान
दरअसल इस बार सपा को गठबंधन की जरूरत इसलिए हुई क्योंकि परिवार में झगड़े के बाद यह प्रदेश की जनता में कमजोर सपा की छवि बनने लगी थी. सपा का मतदाता चाहे शहरी हो या ग्रामीण परमानेंट वोटर ही है. कुछ वोटर फ्लोटिंग होते हैं. फ्लोटिंग वोटर मीडिया में आ रही खबरों के आधार पर अपना मत तय करते हैं. परिवार की लड़ाई के चलते फ्लोटिंग वोटर के कहीं और शिफ्ट होने उम्मीद सपा को लग गई होगी. जिसके चलते अखिलेश को मुस्लिम वोटों के भी बीएसपी में शिफ्ट होने की संभावनाएं ज्यादा होती दिखने लगी होंगी. मुस्लिम वोट प्रदेश में निर्णायक की भूमिका रखते हैं. 19 फीसदी यह वोट सपा का कोर वोट बैंक है. सपा ने इसी वजह से कांग्रेस को साथ लाकर मुसलमानों को यह संदेश देने की कोशिश है कि एक राष्ट्रीय पार्टी हमारे साथ है, हम मिलकर बीजेपी से सीधा मुकाबला कर सकते हैं.
गठबंधन से होगा कांग्रेस का ज्यादा फायदा
सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा को कम और कांग्रेस को ज्यादा फायदा होगा. मुस्लिम सपा का परमानेंट वोटर है. गठबंधन की स्थिति में ट्रेडिशनल वोटर ही वोट ट्रांसफर करते हैं. सपा के पास यादव और मुस्लिम के तौर पर ये तो हैं लेकिन कांग्रेस के पास फिलवक्त कोई ट्रेडिशनल वोटर नहीं है. ऐसे में सपा को अपनी 298 सीटों पर बहुत फायदा तो नहीं होगा हालांकि कांग्रेस को उसकी सीटों पर जरूर फायदा पहुंचेगा. सपा जिन सीटों पर लड़ेगी वहां कांग्रेस पहले भी मजबूत स्थिति में नहीं रही होगी. कुछ सीटों पर जरूर मतों का अंतर कम करने में यह गठबंधन कारगर साबित होगा.
क्या अब मुस्लिम वोट शिफ्ट नहीं होगा
1991 के बाद आमतौर पर मुस्लिम वोट बीजेपी को हराने वाली पार्टी को ही जाता है. अब पहले जैसी स्थिति नहीं होगी. अब मुस्लिम वोटर की पहली प्राथमिकता यह गठबंधन ही बनेगा. हालांकि यह भी संभावना है कि जहां गठबंधन उम्मीदवार कमजोर होगा वहां बीएसपी को मुस्लिम वोट मिल सकते हैं. यानि जहां बीएसपी जीत रही होगी वहां बीएसपी के साथ और जहां गठबंधन जीतता दिखाई पड़ेगा, वहां गठबंधन के साथ.
प्रोफेसर के मुताबिक कांग्रेस की 105 सीटों में कुछ सीटें ऐसी होने की संभावना ज्यादा है जिनमें कांग्रेस के प्रत्याशी ऐसे न हों जो बीजेपी या बीएसपी से टक्कर ले सकें. उन सीटों पर मुस्लिम वोट गठबंधन से छिटक सकता है. इस तरह की वोटिंग को टेक्टीकल वोटिंग कहते हैं. कांग्रेस के उसी नेता को सपा वोट मिलेगा जो जीतता नजर आएगा. वरना, बीजेपी और बीएसपी के बीच सीधा मुकाबला होता नजर आएगा.
बीएसपी के मुस्लिम कार्ड का असर
यूपी का मुस्लिम वर्ग सपा में अपने आप को सहज पाता है. लेकिन अगर गठबंधन बीजेपी के सामने कमजोर पड़ता नजर आया तो उसे बीएसपी के साथ जाना मजबूरी होगी. बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी इस मनोस्थिति को बहुत अच्छे से समझती हैं. इसीलिए इस बार उन्होंने 97 मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारा है. मायावती की यह गणित अगर काम कर गई और 23 प्रतिशत दलित के साथ 19 प्रतिशत मुसलमान एक साथ आ गए तो फिर बीएसपी सत्ता में वापसी कर सकती है.
बीजेपी को क्या फायदा होगा
इस गठबंधन से बीजेपी को अपरोक्ष रूप से फायदा हो सकता है. मुसलमानों के बीच भ्रम होगा कि कौन कहां जीत रहा है, इससे उनके वोटों का डिवीजन होगा जो बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा.
अपने ही गढ़ में कमजोर हो चुकी है आरएलडी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का सबसे मजबूत जनाधार था. लेकिन अगर 2012 के आंकड़ों को देखें तो कमजोर आरएलडी ही नजर आती है. पिछले विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को 24, बीएसपी को 23, बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. मथुरा की मांट सीट उपचुनाव के दौरान बीजेपी के खाते में आ गई थी. वहीं मथुरा की गोवर्धन सीट से आरएलडी विधायक अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह से अलीगढ़ की बरौली विधानसभा से आरएलडी विधायक भी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. आरएलडी का परफॉर्मेंस लगातार चुनाव-दर-चुनाव गिरता रहा है. 2012 में उसका मत प्रतिशत 2.33% था जबक 2007 में 3.70%. ऐसे में उनके मत का गठबंधन पर असर पड़ने की संभावना बहुत ही कम है.