
अमेरिका का राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप को अभी कुछ ही दिन हुए हैं. ग्लोबल ट्रेड पर उनकी नीतियों का बड़ा असर दिखाई देना शुरू हो चुका है. 12 देशों की ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप समझौते से अमेरिका बाहर हो चुका हैं. जापान, चीन और दक्षिण कोरिया की ट्रेड नीतियों का ट्रंप लगातार विरोध कर रहे हैं. अमेरिका की बदलती नीतियों से फिलहाल भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम जैसे देशों को कोई नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन यह राहत ज्यादा दिनों तक नहीं जारी रह सकती है. इन सभी देशों से ट्रेड में अमेरिका को लगातार नुकासन उठाना पड़ रहा है.
न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक ट्रंप प्रशासन उन देशों के साथ व्यापार में कड़े फैसले ले सकता है जिसके साथ उसे लगातार घाटा उठाना पड़ता है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक ट्रंप के नैशनल ट्रेड काउंसिल के प्रमुख पीटर नवारो और कॉमर्स सेक्रेटरी के लिए प्रस्तावित विलबर रॉस का दावा है कि बीते दशकों में वैस्विक मंदी के बीच अमेरिका को उन एशियाई देशों के साथ कारोबार में बड़ा घाटा उठाना पड़ा है जो अमेरिका में बड़ी मात्रा में एक्सपोर्ट करते हैं और अमेरिका प्रति वर्ष इस ट्रेड डेफिसिट के नुकासन को वहन करता है. इस हकीकत पर सिंगापुर आधारित ग्लोबल ट्रेड के जानकारों का मानना है कि ऐसा किसी भी समय देखने को मिल सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप ट्विटर के जरिए इन देशों से कारोबार पर की बड़ा फैसला ले लें.
भारत-अमेरिका ट्रेड
भारत और अमेरिका के बीच कारोबार डब्लूटीओ नियमों और 2005 से चले आ रहे ट्रेड पॉलिसी फोरम के तहत होता है. 2005 से लेकर 2015 तक भारत अमेरिका कारोबार 29 बिलियन डॉलर से बढ़कर 65 बिलियन डॉलर पहुंच चुका है. इस व्यापार में भारत को आईटी सेवा क्षेत्र, टेक्सटाइल और महंगे रत्नों के कारोबार में बड़ा मुनाफा होता है. इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मधुर संबंध हैं, राष्ट्रपति पद की कमान संभालने के बाद ट्रंप ने बतौर पांचवे विश्व नेता मोदी से फोन पर बात की थी. इस वार्ता में कारोबार में अमेरिकी घाटे का मुद्दा नहीं उठा था.