उज्जैन में कुंभ की तैयारियां जोरों पर, बनेंगे ग्रामीण पर्यटन केंद्र

अगले वर्ष लगने वाले उज्जैन कुंभ में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए ग्रामीण पर्यटन केन्द्र बनाए जा रहे हैं. आयोजकों का दावा है कि ये जनवरी तक तैयार कर लिए जाएंगे.

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मेधा चावला/IANS
  • भोपाल ,
  • 23 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 5:55 PM IST

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में अगले वर्ष होने वाले सिंहस्थ (कुंभ) की तैयारियां जोरों पर हैं. पंचक्रोशी मार्ग पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चार स्थानों पर ग्रामीण पर्यटन केंद्र बनाए जा रहे हैं. बता दें कि यह कुंभ मेला 22 अप्रैल से लेकर 16 मई तक चलेगा.

आधिकारिक तौर पर दी गई जानकारी के अनुसार, सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं और अन्य लोगों की सुविधाओं के मद्देनजर विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इसी क्रम में पंचक्रोशी मार्ग पर ग्रामीण पर्यटन केंद्र बनाए जा रहे हैं, जो जनवरी तक तैयार हो जाएंगे. बताया गया है कि वन विभाग द्वारा पंचक्रोशी मार्ग पर 61 हजार से ज्यादा पौधे रोपित किए गए हैं.

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वहीं विभाग द्वारा मेला क्षेत्र में लकड़ी के अस्थाई डिपो बनाए जाएंगे और इनके माध्यम से श्रद्धालुओं को जलाऊ लकड़ी उपलब्ध कराई जाएगी.

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मेला आयोजकों की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है कि मेला क्षेत्र में भूमि आवंटन की प्रक्रिया ऑनलाइन भी की जा रही है. मेला कार्यालय द्वारा भू-खण्ड स्वीकृति की स्थिति की जानकारी भी ऑनलाइन भेजी जा रही है. इसके लिए आवेदक को आवेदन पत्र में ई-मेल आईडी की जानकारी देना आवश्यक होगा.

आयोजकों के अनुसार, मेला क्षेत्र में विद्युत खम्भे भी स्थापित कर दिए गए हैं. हर सेक्टर के विद्युत खम्भों का रंग अलग-अलग होगा और प्रत्येक बिजली खम्भे पर नंबर अंकित किए जाएंगे.

जानें इस कुंभ का महत्व
यह आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है. उज्जैन के पर्व के लिए सिंह राशि पर बृहस्पति, मेष में सूर्य, तुला राशि का चंद्र आदि ग्रह-योग माने जाते हैं. इस दौरान इस स्थान पर स्नान पापों से मुक्त‍ि देकर पुण्य कमाने वाला माना जाता है.

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सिंहस्थ कुंभ के आयोजन के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. सबसे अधिक प्रचलित कथा मंथन की है. इसके अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन करने के बाद अमृत कलश प्राप्त किया. इस अमृत को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी रक्षा का दायित्व बृहस्पति, चन्द्रमा, सूर्य और शानि को सौंपा था.

देवताओं के प्रमुख इंद्र पुत्र जयन्त जब अमृत कलश लेकर भागे, तब दानव उनके पीछे लग गए. अमृत को पाने के लिए देवताओं और दानवों में भयंकर संग्राम हुआ. कहा जाता है कि यह संग्राम 12 दिन तक चला. चूंकि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर माना जाता है तो इस तरह यह युद्ध बारह वर्षों तक चला.

इस युद्ध के दौरान अमृत कलश पाने की जद्दोजहद में अमृत कलश की बूंदें इस धरा के चार स्थानों - हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में टपकीं. पौराणिक मान्यता है कि अमृत कलश से छलकीं इन बूंदों से इन चार स्थानों की नदियां - गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा अमृतमयी हो गईं.

अमृत बूंदें छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चन्द्र, गुरु की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में ग्रहों के संयोग पर आयोजन होता है. इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे. इसी कारण इन ग्रहों की उन विशेष स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परंपरा है.

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