
हिन्दुस्तान के बेरोजगारों की अनूठी सूची सामने आई है, जो बहुत साफ-साफ बतलाती है कि देश भर में फैले रोजगार दफ्तरों में राज्य दर राज्य कितने रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं. चार करोड़ 75 लाख से ज्यादा बेरोजगारों की इस फेहरिस्त में नौकरी सिर्फ तीन लाख से कुछ ज्यादा बेरोजगारो को ही मिली है, और ये सूची भारत सरकार की ही है.
यानी सरकार को पता है कि
- 79,91,000 रजिस्टर्ड बेरोजगार तमिलनाडु में हैं.
- पं बंगाल में 76,71,700 रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं.
- यूपी में 68,56,300 रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं.
- दिल्ली में 11,98,200 रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं.
देश का हाल ये है कि 978 रोजगार दफ्तरों में 4,82,61,100 रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं, जिनमें सिर्फ 3,38,500 युवाओं को ही रोजगार मिल पाया है. वहीं रोजगार दफ्तरों की हालात भी बेहद खराब है. ऐसा लगता है मानो रोजगार कार्यालय ही बेरोजगार हैं, जहां बेरोजगार अपना नाम दर्ज जरूर कराते हैं, लेकिन नौकरी किसी को नहीं मिलती. ऐसे में सवाल है कि क्या रोजगार दफ्तरों को बंद कर देना चाहिए?
रोजगार दफ्तरों से नौकरी कितनों को मिलती है ये सबसे बड़ी लॉटरी की तरह है, क्योंकि दिल्ली में 100 रोजगार, तो बंगाल में 1500 और यूपी में 1300 लोगों को ही रोजगार दफ्तर से नौकरी मिली. 10 राज्य तो ऐसे जहां एक भी रोजगार नहीं मिला. पूरे देश में रोजगार दफ्तर ही एक फीसदी से कम 0.7 फीसदी रोजगार दे पाए.
रोजगार दफ्तर चलाने का मतलब यही है कि दफ्तर चलाने से ही जो रोजगार मिल जाए वही बहुत है, या सरकार के पास कोई काम ही नहीं है तो रोजगार दफ्तर चल रहे हैं, क्योंकि कम से कम एक से दो लाख रुपये तो हर रोजगार दफ्तर को चलाने में लगता ही होगा. ऐसे में देश के 978 रोजगार दफ्तरों पर एक साल का खर्च आया 12 से 22 हजार लाख रुपये खर्च होते ही होंगे.
हालांकि देश का संकट यही है कि हर सरकार कहती है रोजगार देंगे. रोजगार दिया जा रहा है और रोजगार का संकट नहीं है. लेकिन संकट है कितना भारी ये सरकारी दस्तावेज ही बता देते हैं.