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यूपी का सबसे बड़ा एनकाउंटरः ऐसे मारा गया था कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला

हिंदुस्तान में पहला एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला कॉलेज में हुआ था, जब मुंबई पुलिस की एक स्पेशल टीम ने गैंगस्टर मान्या सुरवे को छह गोलियां मारी थीं. आजाद हिंदुस्तान का ये पहला एनकाउंटर ही विवादों में घिर गया था. मगर इस देश में जो एनकाउंटर सबसे ज्यादा चर्चित हुआ वो उसी यूपी में हुआ था जहां आजकल मुठभेड़ की झड़ी लगी हुई है.

उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचने के लिए पुलिस ने एक करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च की थी उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचने के लिए पुलिस ने एक करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च की थी
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 23 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

एनकाउंटर यानी मुठभेड़ शब्द का इस्तेमाल हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बीसवीं सदी में शुरू हुआ. एनकाउंटर का सीधा सीधा मतलब होता है, बदमाशों के साथ पुलिस की मुठभेड़. हालांकि बहुत से लोग एनकाउंटर को सरकारी कत्ल भी कहते हैं. हिंदुस्तान में पहला एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला कॉलेज में हुआ था, जब मुंबई पुलिस की एक स्पेशल टीम ने गैंगस्टर मान्या सुरवे को छह गोलियां मारी थीं. आजाद हिंदुस्तान का ये पहला एनकाउंटर ही विवादों में घिर गया था. मगर इस देश में जो एनकाउंटर सबसे ज्यादा चर्चित हुआ वो उसी यूपी में हुआ था जहां आजकल मुठभेड़ की झड़ी लगी हुई है.

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आतंक का दूसरा नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला

साल भर में 1800 से ज्यादा मुठभेड़. 50 अपराधियों की मौत. 500 से ज़्यादा अपराधी घायल. ये तो है यूपी में मुठभेड़ की ताज़ातरीन तस्वीरें. मगर यूपी पुलिस 90 के दशक के उस एनकाउंटर को आज भी नहीं भूल पाई है जो बिना शक यूपी पुलिस के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एनकाउंटर था. एनकाउंटर कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का. जो 90 के दशक में यूपी में आतंक का सबसे बड़ा नाम था और जिसके लिए यूपी पुलिस को खास तौर पर स्पेशल टास्क फ़ोर्स तक बनानी पड़ी थी. श्रीप्रकाश शुक्ला का शूटआउट 23 सितंबर 1998 को दिल्ली के करीब गाज़ियाबाद में हुआ था.

11 जनवरी 1997, अमीनाबाद, लखनऊ

अपने ऑफिस में लाटरी का थोक व्यापारी पंकज श्रीवास्तव काम कर रहा है. तभी तीन बदमाश अंदर दाखिल होते हैं और उसे गोली मार देते हैं.

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12 मई 1997, लखनऊ

बिल्डर मूल चंद अरोड़ा की किडनैपिंग कर ली जाती है. करने वाला वही श्री प्रकाश शुक्ला. उसे मुक्त करने की एवज में वो एक करोड़ की फिरौती वसूलता है. और फिर उसे रिहा करता है.

अगस्त 1997, दिलीप होटल, लखनऊ

होटल का कमरा नंबर 206. कमरे में चार लोग ठहाके लगा रहे थे. चाय नाश्ता कर रहे थे. होटल के नीचे दो लोग कार से उतरते हैं. उनके हाथ में एके47 थी. ये दोनों धड़धड़ाते हुए होटल की सीढियां चढने लगते हैं. एक शख्स कमरे के दरवाजे पर लात मारता है और दरवाजा खुलते ही अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरु कर देता है. कमरे में बैठे चार लोगों में से तीन बेड के नीचे छुप जाते हैं जबकि एक की मौत हो जाती है. जाते-जाते गोली मारने वाला शख्स बोलता है. जान बचानी है तो भाग ले. जो भी मेरे और टेंडर के बीच में आएगा, वो गया काम से. दरअसल, वो श्रीप्रकाश शुक्ला था, जिसने होटल में घुसकर गोरखपुर के 4 ठेकेदारों को गोली मार दी थी. जिसमें एक की मौत हो जाती है, तीन घायल हो जाते हैं. ये सब टेंडर के लिए होता था.

अक्टूबर 1997, गोखले मार्ग, लखनऊ

दवा व्यापारी के.के. रस्तोगी कार में बैठते हैं. मार्निंग वॉक के लिए निकलते हैं. उनका लड़का ड्राइव कर रहा था. तभी पीछे से रस्तोगी की कार को एक दूसरी कार टक्कर मारती है. व्यापारी का लड़का कुनाल रस्तोगी गुस्से में कार से उतरता है. कुनाल टक्कर मारने वाले पर बरसता है और इतना कहते ही बदमाश कुनाल को दबोचकर कार में बैठा लेते हैं. बेटे को अगवा होता देख के.के. रस्तोगी कार का पीछा करते हैं. रस्तोगी बदमाशों की कार में टक्कर मारते हैं और बदमाश कार रोक देते हैं. श्रीप्रकाश कार से उतरता है और पिस्तौल निकालकर केके रस्तोगी को गोली मार देता है. लड़के को किडनैप करके ले जाता है. उसके लिए एक करोड़ की फिरौती मांगी जाती है.

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तारीख 18 जनवरी 1998, शिवनारायण पेट्रोल पंप, लखनऊ

यूपी कोऑपरेटिव के चेयरमैन उपेंद्र विक्रम सिंह अपने ऑफिस से कार की तरफ बढ़े ही थे कि उनके सामने एक कार आकर रुकती है. कार से एके-47 से लैस बदमाश उतरते हैं. और उपेंद्र पर हमला बोल देते हैं. सैकड़ों राउंड फायरिंग होती है. इस वारदात में उपेंद्र मारे जाते हैं. बदमाश अपनी कार छोड़ कर फरार हो जाते हैं. इस वारदात को अंजाम देता है श्रीप्रकाश शुक्ला. जो एक साथ 4 लोगों का कत्ल करता है. वो भी रेलवे के ठेके को लेकर.

कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था. उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे. वह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था. इसके बाद उसने पलट कर नहीं देखा और वो जरायम की दुनिया में आगे बढ़ता चला गया.

बैंकॉक भाग गया था शुक्ला

अपने गांव में राकेश की हत्या करने के बाद पुलिस शुक्ला की तलाश कर रही थी. मामले की गंभीरता को समझते हुए श्रीप्रकाश ने देश छोड़ना ही बेहतर समझा. और वह किसी तरह से भाग कर बैंकॉक चला गया. वह काफी दिनों तक वहां रहा लेकिन जब वह लौट कर आया तो उसने अपराध की दुनिया में ही ठिकाना बनाने का मन बना लिया था.

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सूरजभान गैंग में शामिल हुआ था श्रीप्रकाश

श्रीप्रकाश शुक्ला हत्या के मामले में वांछित था. पुलिस यहां उसकी तलाश कर रही थी और वह बैंकॉक में खुले आम घूम रहा था. लेकिन पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां नहीं रह सका. और वह भारत लौट आया. आने के बाद उसने मोकामा, बिहार का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया.

शाही की हत्या से उछला नाम

बाहुबली बनकर श्रीप्रकाश शुक्ला अब जुर्म की दुनिया में नाम कमा रहा था. इसी दौरान उसने 1997 में राजनेता और कुख्यात अपराधी वीरेन्द्र शाही की लखनऊ में हत्या कर दी. माना जाता है कि शाही के विरोधी हरि शंकर तिवारी करे इशारे पर यह सब हुआ था. वह चिल्लुपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता था. इसके बाद एक एक करके न जाने कितने ही हत्या, अपहरण, अवैध वसूली और धमकी के मामले श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम लिखे गए.

रेलवे ठेकों पर था एक-छत्र राज

श्रीप्रकाश शुक्ला पुलिस की पहुंच से बाहर था. उसका नाम उससे भी बड़ा बनता जा रहा था. यूपी पुलिस हैरान-परेशान थी. नाम पता था लेकिन उसकी कोई तस्‍वीर पुलिस के पास नहीं थी. कारोबारियों से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज. बस यही उसका पेशा था. और इसके बीच जो भी आया उसने उसे मारने में जरा भी देरी नहीं की. लिहाजा लोग तो लोग पुलिस तक उससे डरती थी.

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शुक्ला को पकड़ने के लिए बनी थी एसटीएफ

श्रीप्रकाश के ताबड़तोड़ अपराध सरकार और पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके थे. सरकार ने उसके खात्मे का मन बना लिया था. लखनऊ सचिवालय में यूपी के मुख्‍यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई. इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्‍पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई. 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई. इस फोर्स का पहला टास्क था- श्रीप्रकाश शुक्ला, जिंदा या मुर्दा.

पुलिस के साथ पहली मुठभेड़

श्रीप्रकाश के साथ पुलिस का पहला एनकाउंटर 9 सितंबर 1997 को हुआ. पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ सैलून में बाल कटवाने लखनऊ के जनपथ मार्केट में आने वाला था. पुलिस ने चारों तरफ घेराबंदी कर दी. लेकिन यह ऑपरेशन ना सिर्फ फेल हो गया बल्कि पुलिस का एक जवान भी शहीद हो गया. इस एनकाउंटर के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत पूरे यूपी में और ज्यादा बढ़ गई.

मुश्किल से पुलिस को मिली थी तस्वीर

सादी वर्दी में तैनात एके 47 से लैस एसटीएफ के जवानों ने लखनऊ से गाजियाबाद, गाजियाबाद से बिहार, कलकत्ता, जयपुर तक छापेमारी तब जाकर श्रीप्रकाश शुक्‍ला की तस्‍वीर पुलिस के हाथ लगी. इधर, एसटीएफ श्रीप्रकाश की खाक छान रही थी और उधर श्रीप्रकाश शुक्ला अपने करियर की सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देने यूपी से निकल कर पटना पहुंच चुका था.

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पटना में किया था मंत्री का मर्डर

श्रीप्रकाश शुक्‍ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्‍कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्‍या कर दी. मंत्री की हत्‍या उस वक्‍त की गई जब उनके साथ सिक्‍योरिटी गार्ड मौजूद थे. वो अपनी लाल बत्ती की कार से उतरे ही थे कि एके 47 से लैस 4 बदमाशों ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी और वहां से फरार हो गए.

ले ली थी मुख्यमंत्री की सुपारी

इस कत्ल के साथ ही श्रीप्रकाश ने साफ कर दिया था कि अब पूरब से पश्चिम तक रेलवे के ठेकों पर उसी का एक छत्र राज है. बिहार के मंत्री के कत्ल का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी. 6 करोड़ रुपये में सीएम की सुपारी लेने की खबर एसटीएफ के लिए बम गिरने जैसी थी.

मोबाइल सर्विलांस का इस्तेमाल

एसटीएफ हरकत में आई और उसने तय भी कर लिया कि अब किसी भी हालत में श्रीप्रकाश शुक्‍ला का पकड़ा जाना जरूरी है. एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश दिल्‍ली में अपनी किसी गर्लफ्रेंड से मोबाइल पर बातें करता है. एसटीएफ ने उसके मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया. लेकिन श्रीप्रकाश को शक हो गया. उसने मोबाइल की जगह पीसीओ से बात करना शुरू कर दिया. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्विलांस पर रखा है. सर्विलांस से पता चला कि जिस पीसीओ से श्रीप्रकाश कॉल कर रहा है, वो गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में है. खबर मिलते ही यूपी एसटीएफ की टीम फौरन लोकेशन की तरफ रवाना हो जाती है.

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ऐसे मारा गया था श्रीप्रकाश शुक्ला

23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्‍ला दिल्‍ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. श्रीप्रकाश शुक्‍ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्‍त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ था कि एसटीएफ उसका पीछा कर रही है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया. पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया. और इस तरह से यूपी के सबसे बड़े डॉन की कहानी खत्म हुई.

कई नेताओं और पुलिसवालों से थी दोस्ती

श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत के बाद एसटीएफ को जांच में पता चला कि कई नेताओं और पुलिस के आला अधिकारियों से उसके शुक्ला की दोस्ती थी. कई पुलिस वाले उसके लिए खबरी का काम करते थे. जिसकी एवज में उन्हें श्रीप्रकाश से पैसा मिलता था. कई नेता और मंत्री भी उसके सहयोगी थे. यूपी के एक मंत्री का नाम तो उसके साथ कई बार जोड़ा गया था. वह तत्कालीन मंत्री अब जेल में बंद है. इस मामले में कई अधिकारियों और नेताओं की खुफिया जांच पड़ताल भी की गई थी.

पुलिस ने खर्चे किए थे एक करोड़

माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला अपने पास हर वक्त एके47 राइफल रखता था. पुलिस रिकार्ड के मुताबिक श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए पुलिस ने जो अभियान चलाया. उस पर लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे. यह अपने आप में इस तरह का पहला मामला था, जब पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की थी. उस वक्त सर्विलांस का इस्तेमाल किया जाना भी काफी महंगा था. इसे अभी तक का सबसे खर्चीला पुलिस मिशन कहा जा सकता है.

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