
दागी कंपनी डीएचएफएल में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के कर्मचारियों की भविष्य निधि का पैसा निवेश किए जाने के मामले में सरकार और कर्मचारियों के बीच तकरार बढ़ती जा रही है. कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार उनकी मुश्किलों को लेकर गंभीर नहीं है. लिहाजा उन्होंने 48 घंटे के कार्य बहिष्कार का ऐलान किया है, जिसका मंगलवार दूसरा दिन था.
लखनऊ के शक्ति भवन में कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और एकजुट होकर संघर्ष करने का फैसला किया. वहीं दूसरी तरफ इस मामले में राजनीति भी जोरों पर है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके यूपी सरकार पर निशाना साधा और साथ ही निवेश के लिए ट्रांसफर किए गए पैसों के आरटीजीएस रिकॉर्ड को भी साझा किया, जिसमें साल दर साल दागी कंपनी में निवेश किए गए पैसों का पूरा ब्यौरा था.
सरकार इस मामले में बैकफुट पर है और लगातार दावा कर रही है कि वह हर हाल में कर्मचारियों का पैसा वापस दिलाएगी. इसके लिए बकायदा कोर्ट में भी गुहार लगाई गई है.
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार उन कर्मचारी नेताओं पर भी सवाल उठा रही है जो आज तो प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन वास्तव में यूपीपीसीएल के फैसलों में उनका भी हाथ रहता था. यानी साफ है निवेश के खेल में यूपीपीसीएल के बड़े अधिकारियों के अलावा संगठन के लोग भी शामिल हो सकते हैं.
इस मामले में जांच कर रही एजेंसी ईओडब्ल्यू ने अब तक कई आरोपी लोगों से पूछताछ की है और इस मामले में यूपीपीसीएल के अकाउंट विभाग के तीन अधिकारियों को सरकारी गवाह बनाने का भी फैसला किया है. ये वो अधिकारी हैं जिनका कहना है कि तत्कालीन एमडी ने नियम विरुद्ध उनसे नोटिंग चेंज कराई थी. जिसकी वजह से UPPCL में पीएफ घोटाला हुआ. ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने प्रियंका गांधी के हमले का जवाब देते हुए कहा कि वो सिर्फ ट्विटर की राजनीति करती है.
ईओडब्ल्यू जांच में ये भी आया है कि डीएचएफएल में निवेश कराने के लिए एसएमसी नाम की कंपनी की मदद ली गई. पहली बार एसएमसी के जरिये हुए निवेश में आठ करोड़ रुपये डीएचएफएल में निवेश किए गए. अब सरकार के सामने दो बड़ी चुनौती है. पहली तो कर्मचारियों के निवेश का पैसा वापस दिलाना, दूसरा इस मामले के मुख्य आरोपी तक पहुंचना.