
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में फ्लाईओवर के गिरने से हुई मौतों के मामले अब उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों और एजेंसियों में ही जंग छिड़ गई है.
सेतु निगम के चेयरमैन राजन मित्तल ने आरोप लगाया है कि वाराणसी प्रशासन ने उन्हें सहयोग नहीं किया. कई बार इस रास्ते को बंद करने की चिट्ठी लिखी गई, लेकिन उल्टे वाराणसी प्रशासन ने उनके अधिकारियों पर केस कर दिया. यही वजह है कि उन्हें खुले रास्ते में यह पुल बनाना पड़ा.
सेतु निगम के इन आरोपों से तिलमिलाए वाराणसी प्रशासन ने कहा है कि उनके पास दस्तावेजों का पूरा चिट्ठा मौजूद है. इसमें उन्होंने सेतु निगम को इस पुल को बनाने पूरी प्रशासनिक मदद दी है, यह कोई पहला पुल नहीं है. इससे पहले सेतु निगम के 3 पुल बनकर तैयार हो चुके हैं और जितने भी पत्राचार हुए हैं वह सभी इस ओर इशारा करते हैं कि प्रशासन से कहीं कोई चूक नहीं हुई है.
वाराणसी के डीएम योगेश्वर राम मिश्रा ने 'आजतक' से कहा कि जब जब इस पुल को बनाने को लेकर सेतु निगम ने उनसे जो-जो सहयोग मांगा उसे प्रशासन ने दिया है चाहे वह सड़कों के चौड़ीकरण का हो, रास्ते से धार्मिक स्थलों को हटाए जाने का हो, ट्रैफिक व्यवस्था सुदृढ़ करने का हो. सब कुछ प्रशासन ने किया है लेकिन हादसे के बाद इस तरह की बयानबाजी की वजह उन्हें समझ नहीं आ रही है.
योगेश्वर राम मिश्रा ने कहा कि सेतु निगम को मेट्रो की तरह अपने प्रोजेक्ट को चारों तरफ से टीन के शीट से घेरकर काम करना चाहिए था, लेकिन उन लोगों ने ज्यादातर जगहों पर ऐसा नहीं किया.
निर्माणाधीन पुल के दोनों ओर ट्रैफिक बंद करने की सेतु निगम की मांग पर डीएम ने कहा कि यह शहर का सबसे महत्वपूर्ण सड़क है जिसमें रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड से लेकर एयरपोर्ट को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क है. ऐसे में इसे बंद नहीं किया जा सकता.
साफ है योगी सरकार के दो विभाग और दो एजेंसियां इस हादसे के बाद आमने-सामने हैं और यह सरकार की और किरकिरी कराने के लिए काफी है.